Tuesday, February 2, 2016

सीताराम यचुरी - वामपंथ को मज़बूत करना ज़रूरी।

रिपोर्ट - वीर विनोद छाबड़ा
सीपीएम के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी को रूबरू देखने और सुनने की मुद्दत पुरानी मेरी चाह पूरी हुई। कल शाम दिवंगत कामरेड शंकर दयाल तिवारी के ९५ वें जन्मदिवस के अवसर पर वो लखनऊ पधारे थे।
Prof.RameshDixit&SeetaramYachuri

सभा में वो लगभग चार घंटे तक रहे। उन तक पहुंचना भी बहुत सहज था। कोई सेक्युरिटी नहीं। मुस्कुराता हुआ चेहरा। वाकपटु। हिंदी स्ट्रांग नहीं है
, लेकिन फिर भी बिंदास बोलते हैं। मुद्दे के दृष्टिगत बीच-बीच में चुटकुले भी छोड़े और हिंदी फ़िल्मी गानों की हेडलाइंस भी सुनाते चले। बात सहमति की नहीं, अपितु उनके विचारों को जानने की रही जो पूरी प्रतिबद्धता और लयबद्धता से प्रवाहित हुए।

जेएनयू में इंटरनेशनल रिलेशन की स्टडी कर रहीं उनकी सहपाठी वंदना मिश्रा जी ने बताया कि सीताराम तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। और हर बार हराया राजाराम को। सिर्फ़ राम नहीं, सीताराम ग्राह्य था। नारे लगते थे - बड़ी लड़ाई ऊंचा काम, सीताराम सीताराम। अल्पायु में इकोनॉमिक्स के पुरोधा बन गए। नेपाल में राजशाही ख़त्म हुई तो तमाम साम्यवादी गुटों को एक करके सरकार बनाने में अहम भूमिका येचुरी जी ने ही अदा की।


येचुरी जी ने फ़रमाया मुल्क में २००८ से पूंजीवाद कई बार लड़खड़ाया है। सोशल व्यू के बिना कोई वाद नहीं चल सकता, साम्यवाद भी नहीं। मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि सपने वही देखते हैं जो सोते हैं। लेकिन अपने देश में नौबत आ रही है - कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। यूपीए की सरकार को हमने बाहर से समर्थन दिया। कई दबाव बनाये। मज़दूरों-किसानो के हित वाले कई बिल पास कराये। आज चमकता भारत और तरसता भारत हैं। विदेशी पूंजी है। डब्ल्यूटीओ के दबाव में है। शासक वर्ग सबऑर्डिनेट के रूप में काम कर रहा है।

प्रांतीय पार्टियां सुबह हमारे साथ हैं तो शाम दूसरे के साथ। सबके अपने मिशन हैं। लेकिन सांप्रदायिकता के विरुद्ध लड़ने के लिए सबका साथ चाहिए। बिना वामपंथ आंदोलन को मजबूत किये सांप्रदायिकता से नहीं लड़ सकते। मोदी सरकार सांप्रदायिकता को पैट्रोनाइज़्ड करती है। संवाद अर्थात क्लैश ऑफ़ आइडियाज की स्थिति ख़त्म करने की कोशिश ज़ारी है। इंटॉलरेंस बढ़ रहा है। दाभोलकर, पंसारे और कलबुर्गी की हत्या इसी का परिणाम हैं। हमने पीएम से कार्यवाही करने का आश्वासन माँगा। लेकिन पीएम नाराज़ हो जाते हैं। विपक्ष की संख्या पर कटाक्ष करते हैं- सिटी बस। लेकिन जब वो दिल्ली हारे तो हमने भी कहा - ऑटो।


फिर हमने कहा - काला धन छोड़ो, पीएम वापस लाओ। कांग्रेस से असहमति रही, लेकिन विरोध नहीं। हम मानते हैं कि राजनैतिक आज़ादी के साथ आर्थिक आज़ादी देनी होगी। वर्ग संघर्ष दो टांग पर खड़ा है - आर्थिक और सोशल शोषण। धर्म निरपेक्ष का गणतंत्र खतरे में रहेगा जब तक हिंदू राष्ट्रवाद और उसका जुड़वा भाई मुस्लिम राष्ट्रवाद रहेगा। गांधी जी की हत्या इसी के चलते हुई। इंटॉलरेंट फासिस्ट राष्ट्रवाद का रूप सामने आ रहा है। इस खतरे से बचना ज़रूरी है।

मज़दूर और किसान की एकता कमजोर करने की तैयारी हो रही है। इसके लिए सांप्रदायिकता को तोड़ना ज़रूरी है। हम लैंड बिल पर पार्लियामेंट में सोनिया जी के साथ रहे। आरबीआई के चीफ़ ने हाल ही में कहा है - ९३ फ़ीसदी मज़दूर असंगठित हैं। कभी कानपुर के मज़दूर आंदोलन को लेनिन नोटिस करते थे। लेकिन आज वो मज़दूर नहीं है। आऊटसोर्सिंग हो रही है। छात्रसंघ नहीं हैं। राजनैतिक शिक्षा नहीं हो रही है। चैन्नई में अम्बेडकर ग्रुप डिस्कशन स्टडी सेंटर बैन कर दिया गया। यानि डिबेटिंग सोसाइटी ग़ैरक़ानूनी हो गयी। मज़दूर के साथ-साथ छात्र तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है।


आज देश में दो-तिहाई नौजवान है। निवेश नहीं आ रहा। कॉरपोरेट कह रहा है कि जब तक पिछले तीन साल से बने रखे माल की खपत नहीं हो जाती तब तक नया निवेश नहीं हो सकता। इसके लिए घर में ही बाज़ार तैयार करने की ज़रूरत है। बाहर गए नौजवान भी लौटेंगे। साधनों की कमी नहीं है। ५% के हाथ में ८५% संपत्ति है। बजट में एक छोटा सा पैरा होता है कि पांच लाख करोड़ टैक्स माफ़ कर दिया गया। जबकि गरीबों के लिए सब्सिडी फ़िज़ूलखर्ची मानी जाती है।


अमेरिका में प्रेजिडेंट रूज़वेल्ट ने एक पालिसी तैयार की थी - न्यू डील। यानि सरकार निवेश करेगी।
दुनिया का कोई मुल्क ऐसा नहीं है जहां हेल्थ, एजुकेशन, सड़क, बिजली और इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकार का दख़ल नहीं है। अपने निवेश पर रोज़गार दो। अब ग़ैर-कांग्रेस वाद के साथ भी चलना पड़ेगा। विकल्प यही है कि हम सब देशभक्त साथ चलें।

नोट - कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध फ़िल्म संवाद व कहानीकार अतुल तिवारी ने किया। सभा में दूधनाथ सिंह, रवींद्र वर्मा, आनंद यशपाल, राज बिसारिया, रूपरेखा वर्मा, वीरेंद्र यादव, अखिलेश, सुभाष राय, कमाल खान, सुनीता ऐरन, प्रो रमेश दीक्षित, केके चतुर्वेदी, सुशीला पुरी, दीपक कबीर, प्रदीप कपूर, ऋषि श्रीवास्तव, प्रत्तुल जोशी, बंधु कुशावर्ती, अंशुमान खरे, विजय वीर सहाय आदि अनेक जाने-माने साहित्यकार तथा गणमान्य मौजूद थे।
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