Thursday, October 6, 2016

थानेदार फूफा जी

- वीर विनोद छाबड़ा
पुलिस। बचपन से ही सुनते आये हैं - न इनकी दुश्मनी अच्छी और न दोस्ती। लेकिन हमें याद है कि हमारे खानदान में एक पुलिस वाले का खूब आना-जाना था।  यह दिल्ली में किसी इलाके के थानेदार हुआ करते थे। तुर्रेदार खाकी पगड़ी। और कलफ़ लगी खाकी वर्दी। सूर्ख रौबीला चेहरा। बड़ी बड़ी मूंछें, जिसके दोनों सिरे वो अक्सर मरोड़ा करते थे। आंखें भी उनकी लाल लाल होती थीं। कमर में भूरे रंग की चमड़े की बेल्ट। जिसमें कई गोलियां टंगी रहतीं थीं और साथ में भरा हुआ पिस्तौल। सिपाही से प्रमोटेड थानेदार थे। राजेंद्र नगर या देवनगर में इनका घर हुआ करते थे।
हमारे दादा जी सरहद पार से आये थे। सरकार ने उन्हें कुतब रोड पर एक बड़ा सा मकान अलॉट कर रखा था। इसकी डियोढ़ी और बहुत लंबी और चौड़ी थी। दोनों तरफ खटिया बिछी रहती थी। बड़ा परिवार था और आस-पास कई रिफ्यूजी खोलियां बना कर रहते थे। गर्मी के दिनों में ठंडी ठंडी हवा बहती थी। उनकी दोपहर वहीं कटा करती थी। वो थानेदार फूफा भी ड्यूटी करते-करते थक जाते तो वहीं सुस्ताने चले आया करते थे। कभी फुरसत में होते थे तो अपनी एक-आध वीर गाथाएं भी सुना जाते। बड़ी उत्सुकता से सुना जाता था उन्हें। बीच में कोई टोकता तो गुस्सा हो जाते थे। उनकी पोस्टिंग कहीं आस-पास हुआ ही करती थी।
हमने सुना था कि वो बड़े सख्त किस्म के थानेदार थे। चोर-डकैतों का उनको देखते ही पेशाब छूट जाता था।
साठ के दशक में एक मुकद्दमे के सिलसिले में लखनऊ आये। हमारे ही घर पर ठहरे। हमारे आस-पास के कई लोग कौतूहलवश उन्हें देखने हमारे घर आये। उन्हें देख हम इतना डरे कि स्टोर में जाकर छिप गए। लेकिन उन्होंने हमे ढूंढ निकाला। हमें गोद में उठा लिया। हम रोने लगे थे। लेकिन जब उन्होंने प्यार से हमें चूमा और और टॉफी दी तो हम शांत हो गए।
आश्वस्त हए कि पकड़ कर ले नहीं जाएंगे। वो हमारे घर दो तक ठहरे थे। दोनों समय मीट बना था और रात को दारू की बोतल भी खुली थी। खूब जोर-जोर से हंस रहे थे। जाते हुए वो हम भाई-बहनों के हाथ में पांच-पांच का नॉट पकड़ा गए थे। वर्दी में उनकी एक बड़ी सी तस्वीर हमारे घर में कई साल तक टंगी हमने देखी। हम समझते थे कि अगर कोई चोर-डकैत आया तो डर कर भाग जाएगा। बाद में हम चंदर नगर से चारबाग़ शिफ्ट हुए। उसी शिफ्टिंग में वो तस्वीर जाने कहां चली गई।
उनकी पत्नी यानी हमारे पिताजी की बुआ का नाम यों तो रूपा देवी मगर कहलाती वो थाणेदारनी बुआ थीं। उन थानेदार फूफा जी की सत्तर के दशक में डेथ हो गयी थी।

आज भी हम जब किसी वर्दीधारी मुच्छड़ सिपाही को देखते हैं तो हमें अपने थानेदार फूफा ही याद आते हैं।
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06-10-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016 

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