Tuesday, April 11, 2017

फूलन को हम फिल्मायेंगे, गांधी को एटनबरो!

- वीर विनोद छाबड़ा
Gandhi
कोई पैंतीस बरस पहले १९८२ में इंग्लैंड से आये जाने-माने एक्टर और फ़िल्म मेकर रिचर्ड एटनबरो ने एक फ़िल्म बनाई थी - गांधी। भारत सरकार का पैसा लगा था उसमें। हमने एक बार नहीं दो तीन मरतबा देखी वो फ़िल्म।
दो राय नहीं कि गांधी बहुत अच्छी फ़िल्म थी और दस्तावेज़ी कहलाने के काफ़ी करीब रही। लेकिन हम एटनबरो की गांधी को एक अंग्रेज़ की नज़र से बनाई फिल्म मान कर देखते रहे। उनका गांधी को देखने का अपना नज़रिया था। और अच्छी बात यह थी कि उनका नज़रिया पॉज़िटिव था।
लेकिन जब हम यह देख रहे तो हमें रह-रह कर बहुत गुस्सा भी आ रहा था। एक अंग्रेज़ को ही क्यों फ़िक्र हुए गांधी बनाने की? यह पहल हमने क्यों नहीं की? क्या हमारे पास संसाधन नहीं थे या सोच की कमी? क्या इसलिये कि हमें डकैतों पर और क्राईम पर फ़िल्में बनाने से फुरसत ही नहीं मिलती? हालांकि बाद में हमने गांधी पर फ़िल्में बनायीं। गांधी - माई फादर, महात्मा, हे राम, द मेकिंग ऑफ़ महात्मा, नाइन आवर्स तो राम, मैंने गांधी को नहीं मारा आदि। लेकिन एटेनबरो के 'गांधी' पहले थे और अभी तक टॉप पर हैं।
Saeed Jaffary as Sardar Patel in Gandhi
गुणवत्ता और तथ्यात्मक पहलूओं के दृष्टिगत 'गांधी' अच्छी थी। ऐतिहासिक तथ्यों को टुकड़ों-टुकड़ों बांटने के बावजूद कसी हुई पटकथा। 
इसके लगभग सारे आर्टिस्ट लगभग अनजान थे। ज़हन में किसी की कोई इमेज नहीं थी। जैसे बेन किंग्सले (गांधी), रोहिणी हट्टंगड़ी (कस्तूरबा) अमरीश पुरी (खान), वीरेंद्र राज़दान (मौलाना आज़ाद) रोशन सेठ (नेहरू) आदि। सभी बेहतरीन और मंझे हुए आर्टिस्ट। तभी तो अपने किरदारों में भी रचे-घुले दिखे। 

लेकिन, सरदार पटेल की भूमिका में सईद जाफ़री बिलकुल फबे नहीं। दो राय नहीं वो बहुत अच्छे आर्टिस्ट रहे। यहां उन्हें अपनी सईद जाफ़री की इमेज से, काया से बाहर आना था और लौह पुरुष सरदार पटेल की भूमिका में रच-बस जाना था। यह भी सही है कि बहुत मेहनत की उन्होंने। मगर हर इंच पर वो सईद जाफ़री ही दिखे। मानो लखनऊ के कोई नवाब हों। एक समीक्षक ने लिखा था - सईद जाफ़री को देख कर बार-बार डर लग रहा। अगले पल कहीं वो ये न कह दें कि लीजिये हुज़ूर, पान नोश फरमायें।
उन्हीं दिनों हमने आज़ादी में फिल्मों और फिल्मवालों की भूमिका पर एक लेख लिखा। अपने शहर के दैनिक 'अमृत प्रभात' में प्रकाशनार्थ दे दिया।

उन दिनों अमृत प्रभात का फ़ीचर पेज विनोद श्रीवास्तव देख रहे थे। याद नहीं कि हमने शीर्षक क्या डाला था। लेकिन विनोद ने जो शीर्षक लगाया, वो हमें अभी तक याद है - फूलन को हम फिल्माएंगे, गांधी को एटनबरो। 
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11-04-2017 mob 7505663626
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Lucknow - 226016 

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