Sunday, April 2, 2017

संस्कृत सीखने का जुनून

- वीर विनोद छाबड़ा
सर विलियम जोंस (1746 से 1794) एक विख्यात भाषाविद थे। उन्हें 13 भाषाओँ में महारत हासिल थी। इसके अलावा 28 अन्य भाषाओँ के बारे में जानकारी थी। तीन वर्ष के थे वो जब पिता का साया सर से उठा था। मां ने ही उनका लालन-पोषण किया। भाषाओँ के बारे में जानने की अदम्य इच्छा शक्ति बालकाल से थी। रॉयल सोसाइटी की फ़ेलोशिप थी।
उनके अदभुत ज्ञान भंडार के दृष्टिगत ब्रिटिश एम्पायर ने उन्हें 1783 में 'सर' के उपाधि से विभूषित किया। उन्होंने कई पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इसमें अरबी भाषा की 'तारिक-ए -नादरी' भी शामिल है।
सर विलियम जोंस एक ईमानदार न्यायविद भी थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के अनुरोध पर उन्हें 17 सितंबर 1783 को कलकत्ता हाई कोर्ट का जज बना कर भेजा गया। भारत आते ही सर विलियम की सर्वप्रथम भारतीय भाषाओँ के बारे में ज्ञान अर्जन की उत्कंठा जगी ताकि स्थानीय जनता से खुद को जोड़ सकें, उनकी भावनाओं को समझ सकें।
भारतीय भाषायों में उनको सबसे ज्यादा संस्कृत भायी। उन्होंने इसे सीखने की इच्छा ज़ाहिर की। परंतु कोई भी ऐसा शिक्षक नहीं मिला जो उन्हें विधिवत संस्कृत सिखा सके। कई दिनों की अथक भाग-दौड़ के बात आख़िर एक इच्छुक पंडित जी मिले। परंतु दिक्कत यह हुई कि पंडित जी को अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं था और सर विलियम को संस्कृत का। बस टूटी-फूटी हिंदी जानते थे। आख़िर एक-दूसरे से कनेक्ट करें तो कैसे?
इधर पंडित जी ने कुछ कठोर शर्तें भी रख दीं। पहली यह कि सर विलियम को कक्षा में पढ़ने आना होगा। कक्षा में सिर्फ दो कुर्सी और एक मेज़ होगी। प्रतिदिन कक्षा को साफ़-सुथरा किया जाएगा।

सर विलियम को शुरू शुरू में महसूस हुआ कि जान ही निकल जायेगी। लेकिन वो जुनूनी आदमी थे। पंडित जी ने उनकी सीखने के प्रति लगन को देखते हुए बहुत परिश्रम से पढ़ाया भी। पूरा एक वर्ष लग गया सर विलियम को संस्कृत का ज्ञान अर्जन करने में।
कुछ समय बाद वो धाराप्रवाह संस्कृत बोलने भी लगे। उन्होंने कालिदास के संस्कृत नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया जो बहुत सराहा गया।
सर विलियम  कलकत्ता में 27 अप्रैल 1794 को आकस्मिक निधन हो गया। उस समय उनकी आयु मात्र 48 बरस थी। उन्हें कलकत्ता में ही साउथ पार्क स्ट्रीट समेटरी में दफ़नाया गया। उनकी कब्र आज भी वहां मौजूद और महफूज़ है। इंग्लैंड में बसे उनके वंशज खास मौकों पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।
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