Tuesday, April 4, 2017

सूरज डूबने के बाद उन्हें दिखता नहीं था

-वीर विनोद छाबड़ा
उस दिन एक पार्टी में हमें जाने का न्यौता मिला। लगभग तीन साल पहले सेवानिवृत मोहन बाबू से मुलाक़ात हो गयी। वो स्टेनो-टाईपिस्ट हुआ करते थे। 
हमें याद आया कि कैरियर के आख़िरी आठ दस-सालों में उन्होंने बहुत शारीरिक बड़ा कष्ट झेला था।
जहाँ भी उनकी पोस्टिंग हुई, पहले ही बता दिया - सर, सूरज डूबते ही दिखना बंद हो जाता है। इसलिए शाम पांच बजे के बाद नहीं रुक पाऊंगा। इस सिलसिले का एक सर्टिफिकेट भी हमेशा इनकी जेब में रहा जिसे वो सबसे पहले अधिकारी की मेज़ पर रख दिया करते थे। 
इन्हें इसी बीमारी के चलते कोई अधिकारी अपने पास रखने को तैयार नहीं हुआ। जैसे-तैसे कभी इधर तो कभी उधर भटकते हुए वो ज़िंदगी काट लाये। अब हम चूंकि इस्टैब्लिशमेंट में थे तो उनकी बहुत मदद कर दिया करते थे। किसी ऐसे ऑफिस में पोस्ट कर देते थे जहां कोई काम-धाम नहीं होता था।
उस दिन रात होने के बावज़ूद हमने मोहन बाबू को अत्यंत सहजता से इधर-उधर टहलते हुए देख कर हमने पूछा - मोहन जी, तो अब सूरज डूबने के बाद दिखाई न देने वाली बीमारी से आप निजात पा चुके होंगे।
मोहन जी बोले - ये कौन सी बीमारी है?
हम उन्हें हक्का-बक्का देखने लगा।
हमें इस मुद्रा में देख वो जोर से हंसे - बीमारी-ठीमारी कोई नहीं थी। शाम को टाइप-शॉर्टहैंड का इंस्टीट्यूट भी तो चलाना था मेरे भाई।
यों हम सरकारी नौकरी में काम करने वाले ऐसे कई बाबूओं को जानते थे जिन्हें घोषित तौर पर न कभी ठीक से दिखाई नहीं दिया और सुनाई दिया।
कुछ लोगों को सुझाई भी नहीं देता था।

लेकिन सच्चाई ये थी अगर पचास मीटर दूर ज़मीन पर गिरी चवन्नी भी उन्हें दिख भी जाती थी और उसके गिरने की आवाज़ भी सुन लेते थे।
और सजग इतने रहते थे कि एरियर का भुगतान समय से हो। एक-आध दिन भी अगर आगे-पीछे हो जाए तो आसमान सर पर उठा लेते थे। लेकिन ऐसे  लोगों को रिटायरमेंट का बाद बहुत काम करना पड़ा था। दरअसल, ज़िंदगी भर कुछ किया नहीं। ज्ञान अर्जन के नाम पर शून्य रहे। न किसी की सहायता में काम आये और न उनकी सहायता करने के लिए कोई आगे बढ़ा।

अभी पिछले ही महीने की बात है। हम ट्रेजरी गए। ऐसे ही कुछ निठल्ले सज्जन मिले। न अपना लाईफ़ सर्टिफिकेट भर पा रहे थे और न ही इनकम टैक्स का फॉर्म। इनमें अपने मोहन जी भी थे। लपक कर आये हमारे पॉस। प्लीज़ थोड़ी सहायता कर दें। अब हम चूंकि सहायता करने की आदत के आदी थे, इसलिये न नहीं कर पाए। 
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