Tuesday, June 13, 2017

ड्रेसिंग के बहाने लूट

-वीर विनोद छाबड़ा
हमारे पड़ोस में एक डॉक्टर हैं, पक्के एमबीबीएस। लेकिन बहुत ही ख़तरनाक, उनके लिए जिन्हें उनकी दवा सूट नहीं करती।
कभी इमरजेंसी में हमने भी उनसे दवा ली है। लेकिन एक से ज्यादा ख़ुराक कभी नहीं खा पाये। बहुत सस्ती दवा देते हैं। गरीबों के लिए तो यों समझिए मसीहा हैं। आजकल एक दिन की सौ रूपए फीस है, इसमें एक दिन की दवा भी शामिल है। बच्चों के लिए मिक्सचर का फार्मूला है।
इंजेक्शन लगा दिया तो कम से कम पचास रूपए बढ़ गए। इंजेक्शन महंगा हुआ तो सौ से दो सौ तक का इज़ाफ़ा। उनकी कोशिश रहती है कि मरीज़ इंजेक्शन लगवा ले। कहते हैं बहुत जल्दी फायदा हो जाएगा। दिहाड़ी वाले मज़दूर और कामग़ार को इंजेक्शन सूट करता है। इंजेक्शन लगवाईये और काम पर चलिए। लेकिन सुबह से शाम तक बीस-पच्चीस को तो इंजेक्शन ठोक ही देते हैं। लेकिन कुछ लोग तो सुई को देख कर रोने लगते हैं। सयाने टिकिया खाना पसंद करते हैं। तुरंत आराम नहीं मिलेगा, कोई बात नहीं। शाम या सुबह तक तो मिल ही जाएगा। 
अभी कुछ दिन पहले की बात है। बीच बाज़ार हमारा छोटा सा एक्सीडेंट हो गया। हाथ, कोहनियां और घुटने छिल गए। सामने ही एक डॉक्टर दिखा। उन्होंने एटीएस लगा दिया और ड्रेसिंग भी कर दी। बोले, आपका घर दूर है। बेहतर होगा कि पड़ोस के किसी डॉक्टर से एक-आध ड्रेसिंग करा लें।
छोटी-मोटी चोटें हमें लगती ही रहती हैं। घर में मरहम-पट्टी का इंतज़ाम भी हम रखते हैं। लेकिन उस दिन जाने कैसे मेडिकल बॉक्स इधर-उधर हो गया। साप्ताहिक बंदी के कारण बाजार भी बंद था। मजबूरन पड़ोस वाले डॉक्टर के पास जाना पड़ा।
डॉ साहब बातें बहुत करते हैं। ढंग की हों, तो बंदा सुने भी। फ़िज़ूल की बातें। वर्तमान हालात और अपने बाप-दादाओं के नीरस किस्से।
यों बातें नहीं खलती। लेकिन काम रोक कर बातें करना अखरता है। और उस पर तुर्रा यह कि उनकी हां में हां मिलाते चलिए। नहीं तो बहस करिये। नतीजा यह कि बात और भी लंबी। किसी को दफ्तर पहुंचना है या कोई दर्द से बिलबिला रहा है, उनकी बलां से। भाग भी नहीं सकते क्योंकि नस उनके हाथ में होती है। 

भीड़ बढ़ती रहती है। यह नज़ारा उन्हें बहुत आह्लादित करता है। एक नौजवान ने टोक दिया तो गुस्सा हो गये -  सौ रूपए की फीस में दवा भी है। तजुर्बे की बात  फ्री में दे रहा हूं। सब्र तो करना ही पड़ेगा।
घंटे भर बाद हमारा नंबर आया। हमने मिनट भर में चोटिल होने की पृष्ठभूमि बता डाली और दरख़्वास्त की कि सिर्फ़ ड्रेसिंग करवा दें।
लेकिन वो पसड़ गए कि दवा भी लेनी पड़ेगी। आप समझते नहीं हैं। मौसम बरसात का है। वायरल भी फैला है।
हमने बहस नहीं की। बिल आया - सौ रूपए फीस और दवा के प्लस दो जगह पट्टी के तीन सौ रूपए। कुल चार सौ रूपये डॉक्टर साहब ने हमसे खींच लिए।
मेरे पहले बंदे की तो पांच ड्रेसिंग हुई थीं। पीछे वाले को भी डॉक्टर साहब कह रहे थे - मच्छर ने भी काटा हो तो ड्रेसिंग ज़रूर करानी चाहिए वरना सेप्टिक हो सकता है। उन्होंने एक आदमी का किस्सा डाला जिसका कुछ दिन हुए सेप्टिक के कारण हाथ तक काटना पड़ा था। सुन कर मरीज़ डर गया। तब तो डबल ड्रेसिंग कर दीजिये

अगले दिन हम मेडिकल स्टोर से ड्रेसिंग का सामान खरीद लाये। साठ रूपए खर्च हुए। घर पर ही ड्रेसिंग करने लगे। सामान भी बच गया। आगे काम आएगा। 
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13 June 2017
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