Sunday, June 25, 2017

फ्लाई ओवर

- वीर विनोद छाबड़ा
मित्रों लखनऊ के गोमती नगर इलाके के जिस फ्लाईओवर पर मैं खड़ा हूं इसके नीचे सिंगल रेलवे लाइन है जो लखनऊ से वाया बाराबंकी गोंडा और गोरखपुर जाती है।
मुझे 1984 के वो दिन याद आ रहे हैं जब यहाँ सिर्फ़ रेलवे लाइन थी। क्रासिंग भी नहीं थी। दो लेन की सड़क थी। मैं अपनी मोपेड रेलवे लाइन पर से किसी तरह फंदा कर इंदिरा नगर से गोमती बैराज और डालीबाग़ होते हुए अशोक मार्ग स्थिति अपने ऑफिस आया जाया करता था।
गोमती नगर का इलाका आबाद हो गया, जो आज वीआईपी हो गया है। जल्दी ही रेलवे क्रासिंग बन गयी। यहां पर सड़क संकरी हो गयी। दो लेन से सिंगल लेन हो गयी। भीड़ होने लगी। अक्सर जाम लगने लगा। फाटक बंद होने का मतलब होता था कम से कम आधे घंटे का इंतज़ार। गर्मी और उमस के दिनों में हालत ख़राब हो जाती थी। मुझे याद है 2001 तक यही हालत रही।

यहां कार वाले स्क्रेच से बचने के लिए देर तक खड़े भीड़ छंटने का इंतज़ार करते मिलते। फिर फ्लाईओवर बन गया। एक साल से भी कम रिकॉर्ड समय में। आज तो इससे जुड़े दो फ्लाई ओवर बन गए हैं। शुरुआत में इरादा इसे साईकिल और स्कूटर के लिए बनाना था। लेकिन सरकार बदल गयी। इसका डिज़ाइन बदल गया इसे चौड़ा कर दिया गया। आज इन पर हैवी ट्रैफिक दौड़ता है। वीवीआईपी मूवमेंट के मौकों को छोड़ कर ट्रैफिक जाम का नामो-निशान नहीं रहा। अभी कुछ महीने पहले फैज़ाबाद रोड हाई कोर्ट की नई बिल्डिंग बन जाने के परिणाम स्वरूप ट्रैफिक बढ़ गया है। एक और फ्लाई ओवर बनाना पड़ बन गया है। लोहिया चौराहे से आने वाले वाहन सीधा हाई कोर्ट के क़रीब उतरते हैं। 
उस ज़माने में रेलवे क्रासिंग से पॉलीटेक्निक तिराहे तक के सात-आठ सौ मीटर के रास्ते के दोनों ओर  हरियाली थी। एचएएल की साइड पर दूर तक ऊंचे-ऊंचे घने पेड़ थे। दूसरी तरफ़ खेत खलियान होते थे। नतीजा होता था कि यह पूरा इलाका भयंकर गर्मी के बावजूद तन-मन को ठंडा करने वाली बयार से खुशनुमा रहता था। मैं और मेरे जैसे कई प्रकृति प्रेमी यहां की ठंडक का आनंद लेने के लिए सालों तक इस मार्ग से लगभग ज़ीरो स्पीड पर वाहन चलाते रहे। कुछ लोग किनारे बैठ कर सिगरेट फूंका करते थे।
फिर धीरे धीरे समय ने करवट बदली। हरियाली साफ़ हो गयी। एक तरफ़ कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए। लखनऊ का पहला शापिंग मॉल प्लस मल्टीप्लेक्स अंगड़ाई लेने लगा। दूसरी तरफ़ एचएएल की बॉउंड्री पीछे खिसक गयी। अनेक पेड़ आधुनिक लखनऊ को खड़ा करने के लिए शहीद कर दिए गए।
आज भी जब उधर से गुज़रता हूँ तो पाता हूं कि उस दौर की ठंडक का हल्का सा अहसास अभी बाकी है।
लेकिन यह भी कब तक रहेगा? आबादी बढ़ रही है और इसके साथ ही उनकी सुरसा की आंत की तरह लंबी होती ज़रूरतें भी।
अब तो स्मार्ट सिटी के नाम पर गावों को भी शहर बनाने की तैयारी हो रही है। शहर की हदें बाराबंकी को छू रही हैं।    
ऐसे में याद आता है - सूरज न बदला चंदा न बदला, बदल गया इंसान। इसने प्रकृति को समूचा बदल दिया।
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26 June 2017
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D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
mob 7505663626


2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ईद मुबारक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत अच्छा लगा आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर ..हाँ सच कहा आपने ..शहर बदल रहे हैं

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