Saturday, June 17, 2017

हेलो पिताजी

-वीर विनोद छाबड़ा
आज सब अपने पिता को अलग अलग तरीकों से याद कर रहे है। जिनके पिता हैं, उनको बच्चे गिफ़्ट दे रहे हैं। जिनके नहीं हैं वो वक़्त की मोटी धूल को हटा रहे हैं। किसी-किसी की आंख से दो बूंद भी टपकते दिख जाती है। हमे तो पिताजी का ज़न्नाटेदार थप्पड़ भी याद आ रहा है।
सच तो यह है कि हमें तो रोज़ ही पिताजी की याद आती है। दिल में रहते हैं। जब जी चाहा, गर्दन झुकाई और दर्शन हो गए। हमारे दिवंगत चाचा नंदलाल जी कहा करते थे कि मरने के बाद आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है। दिवंगत माता-पिता को याद करने का मतलब है, भगवान को याद करना।
हमे तो सपने में आये दिन माता और पिता को देखते हैं। सुबह सर्वप्रथम उन्हें मन ही मन प्रणाम करते हैं। वही भगवान हैं। शक्ति हैं और भटकने की स्थिति में मार्गदर्शक भी। 
कुछ दिन हुए हमने अपने मित्र से ये फीलिंग शेयर की।
उन्होंने समझा कि हमारे माता-पिता की आत्मा अभी तक भटक रही है। उन्हें शांति की ज़रूरत है। कई उपाय बता डाले। तावीज़ वाले एक मौलाना के नाम के साथ-साथ एक सर्वज्ञानी पंडित का नाम भी सुझा दिया। गारंटी दी कि वे निश्चित ही सपने में आना बंद हो जाएंगे। 
हमने कहा ऐसे तावीज़ और पूजा-पाठ हमें नहीं चाहिए कि माता पिता सपने में आना बंद हो जायें। सपने में उनका आना सुहाना लगता है। और जिस कमरे में पिता जी का देहांत हुआ था हम तो उसी में दिन-रात रहते हैं। हरदम उनके वहां होने का अहसास होता है।
हमारे मित्र ने हमें भुतहा और साइको करार दिया। माथे पर आई पसीने की बूंदें पोंछीं और बिना चाय पिए तिड़ी हो गए।
अब कुदरत ने कुछ सूरत भी ऐसी दी है कि जिन्होंने पिता जी देखा है, हमें देखते ही उन्हें पिता जी की याद आती है। वो जब थे तब भी उनका बेटा होना हमारी पहचान थी और अब वो नहीं हैं तब भी उनके बेटे के नाते लोग जानते हैं। हमें गर्व है इस पर।

आईने के सामने जब हम खड़े होते हैं तो कन्फ्यूज़न होता है कि हम उनकी तस्वीर तो नहीं निहार रहे हैं। कई बार तो कहने का मन करता है - हेलो पिताजी।
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18 June 2017
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1 comment:

  1. माँ बाप से बड़ा मार्ग दर्शक कोई हो ही नहीं सकता ... बहुत अच्छी पोस्ट ...

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