Tuesday, June 20, 2017

तन्हाई की साथी नलिनी जयवंत

- वीर विनोद छाबड़ा
छोटा कद व गठीला बदन। बड़ी-बड़ी आंखें, आमंत्रित करते होंट और चेहरे पर टपकता चुलबुलापन। नलिनी जयवंत बरबस ही किसी का भी ध्यान आकर्षित कर लेती थी। वो एक जगह टिक कर बैठ नहीं सकती थी। सेट पर भी इधर से उधर डोला करती थी। मगर अंदर ही अंदर उसे अकेलेपन का गम खाता रहा। उसका कोई स्थायी साथी नहीं था जो उसके मन को पढ़ सके, उसके दुख और अकेेलेपन को शेयर कर सके। मां-बाप, भाई-बहन और परिवार, दोस्तों सभी ने ठुकराया। पहले पति वीरेंद्र देसाई से पटी नहीं। उम्र में बहुत बड़ा था। ज़ालिम था। मार-पीट भी करता था। अशोक कुमार से उनका दस साल तक दिल का नाता रहा। लेकिन ज़माने के डर से अपना न सके। तन्हाई से छुटकारा पाने के लिए प्रभुदयाल से शादी कर ली। लेकिन वो अपने ही ग़म से खाली नहीं था।
साठ के दशक के मध्य तक नलिनी एक्टिव रही। फिर नई नायिकाओं की आमद, बदलते सामाजिक मूल्य और नये आसमान। नलिनी का वक़्त खत्म हो चुका था। उसने अकेलेपन के अंधेरे को अपना साथी बना लिया। उसने मान लिया कि उसका अपना कोई नहीं। यहां आदमी सिर्फ खुद से प्यार करता और जीता है। अस्सी के दशक में बंदिश और नास्तिक को छोड़ कर नलिनी ने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी। उनके कुछ ही नाते रिश्तेदार थे। कुछ मित्रगण उनसे मिलने आते थे। लेकिन उनकी मौजूदगी नलिनी को अच्छी नहीं लगती थी। वो चुपचाप बैठी रहती। फिर यह जान कर कि नलिनी अपनी तनहाईयों से खुद ही बाहर नहीं आना चाहती तो उन्होंने भी किनारा कर लिया।

नलिनी के एक मित्र का कहना था कि वो असुरक्षा की भावना से पीड़ित थी। आस-पास रहने वालों से यदा-कदा ही कभी बात हुई हो। सच तो यह था कि उनमें से अधिकतर को नहीं मालूम था कि उनके पड़ोस में कभी लाखों दिलों पर राज करने वाली बीते दिनों की शोख हसीना रहती है जिसने अनोखा प्यार, समाधी, संग्राम, नौजवान, शिकस्त, नास्तिक, फिफ्टी फिफ्टी,दुर्गेश नंदिनी, हम सब चोर हैं, आनंद मठ, हम सब चोर हैं, मिस बॉम्बे, कालापानी, मुनीम जी जैसी मशहूर फिल्मों में काम किया है और दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर और प्रदीप कुमार की नायिका रही है।
नलिनी ने दो कुत्ते पाल रखे थे। वही उसके अभिन्न साथी थे। उन्हीं से वो बात करती थी। उसे डर लगता था कि उन्हें कुछ हो न जाये। इसीलिए उसने उनकी सेहत का बहुत ध्यान रखा। उनको बढ़िया खाना दिया। उन्हें कभी तन्हा नहीं रहने दिया।
एक पड़ोसी ने एक दिन नलिनी को लंगाड़ते हुए देखा। शायद पैर में चोट लगी थी। उसने चिंतित होकर डाक्टर की मदद का प्रस्ताव दिया। मगर नलिनी ने मना कर दिया।
नलिनी चेंबूर में एक बहुत बड़े बंगले में पिछले 60 साल से रहती थी। 22 दिसंबर 2010 को बंगले पर पुलिस और एंबुलेंस की मौजूदगी को देख कर अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले चौंके। बंगले से बदबू आ रही थी। पता चला कि नलिनी की दो दिन पहले मृत्यु हो चुकी है। वो उस वक्त तन्हा थी। उसे दिल का दौरा पड़ा था। वो किसी को बता भी नहीं सकी। उसके कुत्ते इधर-उधर भटक रहे थे। लेकिन ज़ुबां नहीं होने के कारण वो भी किसी को कुछ बता नहीं पाए। कुछ लोगों को यह जान कर ताज्जुब हुआ कि यह लाश गुज़रे वक्त की मशहूर अदाकारा नलिनी जयवंत की है। जब उनका शव एंबुलेंस से जा रहा था तो कोई भी रिश्तेदार, मित्र मौजूद नहीं था। बाद में किसी दूर के रिश्तेदार ने उनके शव को पहचानने की औपचारिकता निभाई और अंतिम संस्कार किया।
नलिनी की मृत्यु पर सिर्फ पुराने सिनेमा से जुड़े मीडिया के एक हिस्से ने शोक व्यक्त किया। इलेक्ट्रिानिक मीडिया ने कोई त्वजो नहीं दी। जब कभी कोई म्यूज़िक चैनल गोल्डन इरा के गोल्डन दिनों की बात चलाता है तो पचास के दशक की शोख हसीना नलिनी दिल की ओर इशारा करते हुए गा उठती है - नज़र लागी राजा तोहे बंगले पे...जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछुड़ जाने को...ठंडी हवाएं लहरा के आएं...।
मृत्यु के समय तन्हाई की दोस्त नलिनी की आयु 84 साल थी। कभी-कभी पीछे मुड़ कर लाखों दिलों की मलिका नलिनी के बारे में सोचता हूं तो बरबस मुंह से यही निकलता है कैसे-कैसे लोग होते है? क्यों दुनिया से अलग एक तन्हा दुनिया बसा लेते हैं लोग?
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20 June 2017
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