Saturday, June 24, 2017

तजुर्बे को सम्मान दो

- वीर विनोद छाबड़ा
अपने मुल्क में पढ़े-लिखे लोगों की कमी नहीं है। लेकिन हर आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर, जज, शिक्षक, मास्टर या डिग्रीधारी विद्वान नहीं होता। अगर ऐसा होता तो हम आज जहां हैं, वहां बहुत पहले पहुंच गए होते। और आज की तारीख़ में अमेरिका, जापान, रूस और और चीन जैसे विकसित मुल्कों से कहीं आगे निकल गए होते। मुल्क में सकून होता। सोने की चिड़ियाँ चहचहा रही होतीं।
यों कई बार ऐसा भी होता है कि बिना डिग्री वाले डिग्री वालों से ज्यादा होशियार होते हैं।
एक बार हमने देखा कि एक सरकारी अस्पताल में बुढऊ कंपाउंडर अपने बॉस डॉक्टर को डांट रहा था - इतने छोटे बच्चे को इतनी स्ट्रांग एंटीबॉयटिक टेबलेट दी जाती है भला? पहले दवा टैस्ट कराइए, तब आगे बढ़िए। एमडी क्या कर लिए हैं कि जैसे तोप हो गए।
राज मिस्त्रियों को ही लीजिये। कई राजमिस्त्री बड़े बड़े आर्टिटेक्ट और सिविल इंजीनियर से भी ज्यादा जानते हैं। एक बड़े आदमी का घर बन रहा था। छोटी सी जगह से जीना निकालना था। आर्किटेक्ट की समझ में नहीं आ रहा था। सिविल इंजीनियर उनके दोस्त थे। वो भी फेल हो गए। उन दिनों हमारा मकान बन रहा था। हमारे मिस्त्री को बुला ले गये। उसने जुगाड़ निकाल लिया। आमतौर पर आम आदमी मकान-दुकान बनाते वक़्त राज-मिस्त्री के तजुर्बे का ही सहारा लेता है।
हम बिजली विभाग से रिटायर हुए हैं। संविदा पर काम करने वाले बिजली मज़दूर और मकैनिक अपने दम पर खुद ही फूंका हुआ ट्रांसफार्मर बदल लेते हैं। ऐसे ही लोगों के तजुर्बे के दम पर ही टिका है यह विभाग। डिप्लोमा या डिग्रीधारक इंजीनियर तो अंत में मुआयाना करने आते हैं।

हमारे एक मित्र अपनी पत्नी से अक्सर डांट खाते हैं - इतने बड़े बिजली इंजीनियर हो लेकिन अभी तक फ्यूज़ बांधना नहीं आया तुम्हें।
हम उन मेहनतकश लोगों की बात कर रहे हैं जिन्होंने अपने तजुर्बे के दम पर कड़ी धूप में पसीना बहाया, कड़ाके की ठंड की परवाह नहीं की और मूसलाधार बारिश की भी अनदेखी करते हए बड़े-बड़े डैम बना डाले, बिजलीघर खड़े कर दिए। इनके पास कोई डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट नहीं है। सिर्फ़ तजुर्बा है।
लेकिन जब प्रंशंसा बटती है तो इनकी अनदेखी की जाती है। इन्हें किसी ने 'प्रदेश का गौरव' नहीं समझा, पद्मश्री तो बहुत दूर की बात है। उलटे होता यह है कि जब किसी मज़दूर की मौत होती है तो कुछ ले-देकर जल्दी से जल्दी मामला रफा-दफा करने की कोशिश होती हैं।

हम वक़ालत करते हैं कि जब भी कोई इमारत खड़ी हो, बांध बने या बिजली घर का निर्माण हो तो सबसे पहले मज़दूर को और उसके तजुर्बे को सम्मानित किया जाए। प्रतीक चिह्न के साथ नक़द पुरस्कार भी दिया जाए। 
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25 June 2017
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