Tuesday, August 16, 2016

हेलमेट ने बचाया हर बार।

- वीर विनोद छाबड़ा
स्कूटी हो या कार, हम बहुत एहतियात से चलाते हैं। लेकिन जब कोई दूसरा ही ठोंकने पर ही आमादा हो तो क्या किया जा सकता है। फुटपाथ पर खड़े हों और वहां भी आकर कोई ठोक दे तो हैरानी नहीं। इसकी वज़ह बेहिसाब स्पीड से आड़े तिरछे होकर उड़ते हुए बाइकर हैं। इनको ऊपर वाले का खौफ भी नहीं है। यह हमारा आधुनिक लखनऊ है।

उस दिन दोपहर भी यही हुआ। एक संगठन के जलसे में शिरकत करने हम बारास्ता हज़रतगंज से गुज़र रहे थे, बिलकुल सड़क के किनारे किनारे से। तभी एक नाशुक्रा बाइकर, खुदा माफ़ करे उसको, हवा में कुदालें खाता हुआ हमारे बाएं बाज़ू से शाएं करता हुआ हमारी स्कूटी के ठीक आगे आ गया। हमने ब्रेक लगाया। पीछे कार वाला था जो ऐसी स्थिति के लिए तैयार नहीं था। कंट्रोल नहीं कर पाया और ठोंक दिया। शुक्र है कार की स्पीड कम थी।
हमने तीन कलाबाजियां खायीं और ये जा तो वो जा। अब यह करतब ६५ प्लस की उम्र में हमारी मर्ज़ी से होनी तो मुमकिन थी नहीं। यों अपनी जवानी में भी हमने ऐसा करने कभी हिम्मत नहीं की।
बहरहाल, गंगा-ज़मुनी तहज़ीब और इल्मो अदब के मरकज़ इस शहर-ए-लखनऊ में बाकी भले सब तहस नहस हो गया हो, लेकिन लेकिन शुक्र है कि इंसानियत भरपूर ज़िंदा है। हमें ज़मीन पर बिलकुल फ्लैट गिरा देख कर फ़ौरन ही कई लोग जाने कहां भागते हुए आये। मुझे सहारा दिया।
हमारे यों दिल की धड़कन उस वक़्त यकीनन नार्मल से बहुत ज्यादा रही होगी। हमने तो समझा कि हम यमलोक में हैं। लेकिन अगले ही पल हमारे अंदर ही अंदर कई दिन से पल रहे एक नामालूम जनून ने हमें हाथ पैर झाड़ कर खड़ा कर दिया। हमने हाथ-पैर जोर-जोर से हिला कर चेक किये। सारे हिस्से सलामत और अपनी जगह पर थे। आजू-बाजू और आगे पीछे भली-भांति देखा। ऐसा तो नहीं कि जिस्म को कोई हिस्सा कहीं अलग होकर गिर पड़ा हो और हमें पता ही नहीं चला हो। लेकिन शुक्र था कि सब इन्टेक्ट था। मन ही मन हमने खुद को शाबाशी दी - गुड यार।
एक नौजवान ने ज़मीन पर औंधा पड़ा हमारा स्कूटी उठाई। स्कूटी सही सलामत थी। और दूसरा बंदा आहिस्ता-आहिस्ता हमें किनारे तक लाया। कायदे से हमारी खैर-सल्लाह पूछी। किसी भी किस्म की मदद की पेशकश की। यह बंदा वही था जिसकी कार ने हमें पीछे से ठोका था और उस वक्त कार भी वही ड्राईव कर रहा था।
हमने उस भलेमानुस का शुक्रिया अदा किया। उसका नाम पूछा। उसने नाम बताया, मोहम्मद हैदर। हमने पूछा - फेस बुक पर हो? उसने हां में सर हिला दिया। हमने फ़ौरन अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसे थमाया और कहा फेस बुक पर मिलो। उसने हमें हैरान-परेशान होकर देखा। शायद सोच रहा हो। ये बुढ़ऊ अभी तीन कलाबाजियां खा चुका है और अपने ज़ख्म टटोलने की बजाय फेस बुक पर मिलने की बात कर रहा है। वो हमें अजीब सी नज़रों से देखता हुआ भीड़ में गुम हो गया।
हमने स्कूटी स्टार्ट की। और ज़रूरी प्रोग्राम में हाज़िरी देने पहुंचे। प्रोग्राम खत्म होने को था। आयोजक जी को सलाम किया। और फिर अपने दोस्त राजन प्रसाद के घर पहुंचे। वहां बैठ कर इत्मीनान से खुद को टटोला। घुटनों पर कुछ घिस्से आये थे। सोफ्रामाइसिन क्रीम मौजूद थी। वही लगाया। राजन बोला- शुक्र है कोई गंभीर चोट नहीं आयी।
हमने कहा - हां दोस्त। दो वज़ह से। एक - हेलमेट। यह हेलमेट मेरी पहचान भी है। कई बार बचाया है इसने। और दूसरा - मोटापा। जिस्म पर चर्बी न चढ़ी होती तो दो-चार हड्डी-पसली तो निसंदेह टूट ही गयी होतीं।
शाम को हमने एक क्लीनिक गए। एहतिहातन टिटबैक का इंजेक्शन लगवाया। रात को हम फेसबुक पर बैठे। मोहम्मद हैदर का मेसेज भी आ गया। अब आप कैसे हैं। हमने कहा - ठीक हैं।

एक्सीडेंट का एक साइड इफ़ेक्ट यह भी है कि एक अंजाना हमदर्द और मददगार मिला जो फेस बुक फ्रेंड भी बन गया। मित्रों, एक अनुरोध है कि स्कूटी हो या बाईक हेलमेट ज़रूर सर पर हो। हमारे एक बार नहीं कई बार एक्सीडेंट हुए, लेकिन हर बार हेलमेट सर पर होने के कारण जान बच गयी।
---
16-08-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016 

No comments:

Post a Comment