Monday, August 8, 2016

हॉर्न पे हॉर्न।

- वीर विनोद छाबड़ा
लखनऊ वालों को हार्न बजाने की मानो बीमारी है। सड़क पर तो हॉर्न बजाते ही हैं घर से जाते हैं तो भी दस दफे हार्न दबाते हैं और शाम लौटते हैं तो भी हार्न पर हार्न। दरअसल आजकल जिनके पास कार है, उनमें से ज्यादतर की पिछली जनरेशन ने कार नहीं देखी है। हमारे पिताजी को भी बेटे की कार में बैठना नसीब नहीं हुआ।

सबसे ज्यादा परेशानी होती है सड़क पर। राज्य सरकार हो या भारत सरकार, इनकी नंबर प्लेट और लाल-नीली बत्ती व्यू फाइंडर में दिखी नहीं कि समझिए कि हमने रास्ता दे दिया। इसमें ज़रूर कोई बड़े साहब या नेता होंगे, हमारे बेहतर भविष्य की योजना से संबंधित कोई अर्जेंट मीटिंग अटेंड करने जा रहे हैं।
राजनैतिक दलों के झंडे वाली बड़ी सुव और फार्चूनर को देख कर हम किसी पतली गली को तलाशते हैं। न मालूम कब ठोंक दें। हमारे नुकसान की भरपाई तो दूर उलटा देना पड़ जाएगा।
अभी कुछ दिन पहले की बात है। हम एक जाम में फंस गए। आगे-पीछे और दायें-बायें बंपर टू बंपर कारें ही कारें। और इन सबके बीच अड़ी अनेक बाईकें और स्कूटियां स्थिति को और भी विकराल बना रही थीं। हमारे पीछे एक लाल बत्ती वाली सफ़ेद एम्बेस्डर का ड्राईवर हॉर्न पर हॉर्न बजा रहा था। शीशे पर काली फिल्म भी चढ़ी थी। हम भी मजबूर थे। क्या करें? आगे की कार हिले तो हम आगे बढ़ें। कैसा पागल है? इसे स्थिति का आभास तक नहीं है। तभी उसने हमारे पिछले बंपर पर हल्की सी
ठोकर मार दी। हमें गुस्सा आ गया। सरकारी गाड़ी है तो मेरा क्या बिगाड़ लेगा? इसमें बैठा बंदा न हमें सस्पेंड कर सकता है और न डिसमिस। पेंशन भी नहीं रुकवा सकता। हम सीनियर सिटीजन हैं। माननीय मुख्य मंत्री जी के घर के बाहर धरना दे कर बैठ जाएंगे। वैसे भी आजकल लॉ एंड आर्डर को लेकर सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा बहुत है। कुछ उल्टा-सीधा बोला तो पिट जाएगा।
हम बाहर निकले और दनादन उसे संसदीय भाषा में कोसना शुरू किया - अबे अंधा है क्या? जाम लगा है। कहां घुसेड़ दूं गाड़ी? हेलीकॉप्टर तो लगा नहीं है गाड़ी में। दो चार लोग और भी कार से बाहर आ गए।
इतने में एम्बेसडर में पीछे बैठे एक जेंटलमैन बाहर निकले। हमें सॉरी बोला और ड्राईवर को बहुत डांटा। काहे की जल्दी है? पापुलेशन गिर जाएगी क्या? दो मिनट के लिए सोने भी नहीं देते हो।
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08-08-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016



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