Monday, August 22, 2016

बंदे की समाज सेवा

- वीर विनोद छाबड़ा
बंदे को दारू छोड़े छब्बीस साल हो गए हैं। लेकिन दारू छोड़ने की सजा भुगतनी पड़ी। हर पार्टी के बाद दो-चार टुन्न मित्रों को अपनी गाड़ी में ढोकर उनके घर छोड़ा किया। बंदे की भी मजबूरी होती थी कि अगर ऐसा नहीं करूंगा तो नुकसान भी हो सकता है। कोई वाहन के नीचे आ गया तो क्या होगा? सिपाही ने चालान कर दिया? सरकारी नौकरी हो तो सस्पेंशन तो पक्का समझो। ऐसे में बंदा कभी खुद को माफ़ नहीं कर पायेगा।
सत्तर के दशक में ऐसा हादसा हो चुका था। इस नाते भी बंदा सतर्क रहता था। उस दिन शाम को ऑफिस बंद हुआ। एक सहकर्मी मिला, बिलकुल फुलटॉस। ज़िद करने लगा कि हमें घर छोड़ दो। बंदे ने सख्ती से मना कर दिया। और जैसे-तैसे पिंड छुड़ा कर भाग निकला। दूसरे दिन सुबह ऑफिस पहुंचा तो पता चला कि  सहकर्मी पिछली रात दारू के अड्डे पर बेहोश पड़े मिले। अस्पताल पहुंचाये गए। वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। बंदा बहुत पछताया था कि अगर घर छोड़ दिया होता तो शायद यह 'होनी' टल गयी होती। उस दिन बंदे ने क़सम खाई थी कि मित्रों को यों सड़क पर झूम बराबर झूम के लिए न छोड़ेगा। दारूबाज़ मित्रों के लिए बंदा ही एकमात्र काबिले ऐतबार प्राणी रहा। बंदे की इस समाज सेवा के दृष्टिगत कई मित्रों की पत्नियां भाभियां आश्वस्त रहती थीं कि भाई साहब साथ हैं ही, फिर भला चिंता की क्या बात!
हां तो बात हो रही थी टुन्न मित्रों के ढोने की। एक प्रीतिभोज में मित्रों ने जम कर दारू पी। वापसी पर तीन को लादना पड़ा। मेजबान ने भी रिक्वेस्ट की। मित्रता और फिर मानवीय दृष्टिकोण का मारा बंदा। नो प्रॉब्लम। रास्ते में एक टुन्न मित्र कार ड्राईव करने की ज़िद करने लगे। बड़ी मुश्किल से उसे पीछे डिक्की में डंप किया। बंदे ने बामुश्किल एक-एक करके उनको घर छोड़ा।
तीसरे साहब ज्यादा ही टुन्न थे। उनकी पत्नी घबड़ा गयीं - भाई साहब, प्लीज़ इन्हें हॉस्पिटल पहुंचा दें। वही मानवीय दृष्टिकोण और बंदा मज़बूर। इसी कारण रात काफ़ी देर हो गयी। घड़ी देखी। हे भगवान, ढाई बज गया है! इस बीच बंदे को ध्यान ही नहीं रहा कि घर पर भी फ़ोन करके बताना है कि किस कारण विलंब हो रहा है। इतनी रात कहीं पीसीओ भी खुला नहीं दिखा।

बहरहाल, जब बंदा घर पहुंचा तो देखा कि कोहराम मचा है। बंदे का दिल धड़क उठा। कोई अनहोनी हो गयी है क्या? ढेर अड़ोसी-पड़ोसी जमा थे। वो सब बंदे को देख हैरान हुए और बंदा उन्हें देखकर । पता चला कि जब बंदा डेढ़ बजे तक घर नहीं पहुंचा तो चिंतित पत्नी ने पड़ोसी से मदद मांगी और अति उत्साहित पड़ोसी ने पड़ोसी धर्म का निर्वाह करते हुए थाने पर गुमशुदगी की सूचना भी लिखवा दी थी। पुलिस तफ्तीश भी कर गयी थी।
लेकिन पिक्चर अभी ख़त्म नहीं हुई। तभी दो सिपाही आये, यह बताने के लिए कि थाने पर एक डेड बॉडी आई है, चल कर शिनाख़्त कर लें। बंदे ने लाख समझाया कि जिस बंदे की तलाश थी, वो लौट आया है। लेकिन सिपाही नहीं माने - ठीक है, शिनाख्त करके बताओ कि यह तुम्हारी डेड बॉडी नहीं है।
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Published in Prabhat Khabar dated 22 Aug 2016
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