Thursday, August 18, 2016

गीला समझती हैं सब!

- वीर विनोद छाबड़ा 
बाज लोगों को बड़ा शौक होता है कि लोग उसके बारे में सोचें। और कुछ को बड़ी उत्सुकता होती है कि फलां-फलां की उसके बारे में क्या धारणा है।
यूनिवर्सिटी के दिनों में हम भी ऐसे ही कुछ उत्सुक प्राणियों में रहे। शरीफ़ आदमी थे। इसलिए सीधे-सीधे पूछने की हिम्मत नहीं थी।

एक मित्र से जासूसी करायी। कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। एक बोली कि बंदर लगता है। दूसरी ने उसकी बात काटते हुए कहा - चल हट बंदर तो फिर भी गनीमत होता है। मुझे तो यह भालू लगता है। दरअसल, उन दिनों के फ़ैशन के मुताबिक़ हम आमतौर पर लंबे बाल रखते थे, कान पूरे-पूरे ढके रहते थे। हम छात्र नेता नहीं थे, लेकिन दाढ़ी पूरी बढ़ी रहती है। बालों का रंग थोड़ा भूरा था। इसलिए कभी कभी कमेंट सुनने को मिल जाता था - वो देख, भूरे लाल। तुझी को घूर रहा है।
कुछ समय के बाद हम बेपरवाह हो गए कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। मच्योर भी हो गए।
अभी कुछ साल पहले की बात है। हमारे अधीन मानव संसाधन विभाग था। इंडस्ट्रियल रिलेशन का भी लंबे काल तक अतिरिक्त चार्ज रहा।
एक भद्र महिला को न जाने किसने हमारे बारे में बता दिया कि हमारे बैंक में समस्त महिला और पुरूष कर्मियों के बारे में पर्याप्त ज्ञान जमा है और हम उनकी विशेषताओं और व्यक्तित्व का सटीक विश्लेषण करके टिप्पणी देने में भी सक्षम हैं। इसी आधार पर हम बाबू लोगों की ट्रांसफर/पोस्टिंग करते हैं।
वास्तव में हमारे पास कार्मिकों के काम-काज की जानकारी थी। ऐसे ऐसे मुरहे दोस्त थे कि अलग से दुश्मनों की हमें कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। बाकी किसी ने ऐसे ही अफ़वाह फैला रखी। 
हमने उन भद्र महिला को बहुतेरा समझाया कि हमारे पास ऐसा कोई बैंक नहीं और न ही हमारे में बुद्धिमत्ता है। लेकिन वो आये दिन हमारा सर खाने बैठ जाती थीं। एक दिन तो डील करने लगीं - आप हमारे बारे में बताओ। फिर हम आपके बारे में बताएंगे कि पीठ पीछे लोग आपको क्या कहते हैं।
एक दिन हमने पिंड छुड़ाने के लिए उनसे कह दिया - अरे, आप को तो लोग झांसी की रानी कहते हैं।

उन्होंने हमारे मुंह पर थैंक्स मारा। और चलीं गयीं। हमने चैन की सांस ली। चलो बलां टली।
लेकिन दो मिनट भी न गुज़रा था कि वो तूफ़ान की मानिंद पलट कर आ गयीं - आप अपने बारे में भी जान लीजिये कि पीठ पीछे क्या कहते हैं लोग।
हमने उत्सुकतावश मुंह उठाया।
वो बोलीं - गीला समझती हैं आपको सारी महिलायें, गीला।
हम सन्न रह गये। इससे पहले कि हम कुछ कहते कि वो भूत की तरह गायब हो गयीं। हम माथा पकड़ कर बैठ गए - हे राम! किसी को कॉम्प्लीमेंट देना भी गुनाह है आजकल।

इसके बाद वो ऑफिस में हमें कई बार दिखीं। मुस्कुराईं भी। लेकिन हमने कोई तवज्जो नहीं दी। न इनकी दोस्ती अच्छी और न ही दुश्मनी।
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18-08-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016 

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