Wednesday, April 5, 2017

जाने हम कहां होते?

- वीर विनोद छाबड़ा
कई बरस हुए। तब हम पैदल हुआ करते थे यानि बेकार थे। अब चूंकि बेकार थे तो स्वयं को व्यस्त रखने के लिए ऐवें ही डबल एमए करे थे। एक अदद नौकरी की बड़ी शिद्दत से तलाश थी। कभी हिंदी-इंग्लिश टाईप का ज्ञान था, लेकिन प्रैक्टिस बिलकुल नहीं थी। 
एक लेखक बंधु थे, हमारे हमदर्द। बाबू थे सिंचाई विभाग के किसी डिवीज़न में। उन्हें हम पर बहुत तरस आया। उन्होंने अपने एक्सईन से मिलाया। बंधु का एक और भी बेरोज़गार परिचित था। वो शॉर्टहैंड भी जानता था। मतलब हमसे एक कदम आगे। यों कायदा भी यही था कि प्रतियोगिता होनी चाहिए। जो जीता वही सिकंदर। हम दोनों का टाईप टेस्ट हुआ। शॉर्टहैंड वाला ही पास होना था। हालांकि हमने लेखक बंधु की ग़लती नहीं थी। लेकिन हमने उन्हें को खूब कोसा। अब किसी न किसी पर तो गुस्सा निकालना ही था।

हम सड़क से सड़क पर आ गए। पहले से ज्यादा अवसाद से ग्रस्त।
तभी एक और मित्र मिले। कटहल की कोठी वाले मिश्रा जी। इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में थे। उन दिनों लोअर डिवीज़न असिस्टेंट यानी बाबू की वैकेंसी निकली थी। हम ठहरे फक्कड़ आदमी। उन्होंने फॉर्म खरीद कर हमसे भरवाया। अपनी जेब से फ़ीस भी दी। एक-आध दिन हमें परीक्षा के लिए तैयारी भी कराई। हमने जैसे-तैसे लिखित परीक्षा दे दी।
पांच महीने हो गए। हम रोज़ खबर लेने मिश्रा जी के ऑफिस जाते। वो हमें चाय-समोसा खिलाते और आश्वासन देते बस दो-चार दिन की बात और है। एक हमें मायूस करने वाली ख़बर मिली कि पिछले दरवाज़े से अपॉइंटमेंट हो चुके हैं। हम पर बिजली सी गिरी। ऐसे हालत में हमारे दि बनारस स्टेट बैंक वाले मित्र शर्मा जी काम आये। हमारी बदहाली देखी न गयी उनसे। बैंक में लीव वैकेंसी पर रखवा दिया था। रोज़ के रोज़ बैंक जाते थे। हम भगवान से मनाते कि कोई बीमार पड़ जाए या उसके साले-साली की शादी निकल आये या ट्रेन छूट जाए तो उस दिन हमें काम मिल जायगा। एक बार तो सीट पर बैठे ही थे कि रेगुलर बंदा आ गया। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
लेकिन अगले दिन ही मिश्रा जी इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का बुलावा लेकर आ गए। वो खबर झूठी थी कि बैकडोर से भर्ती हो गयी है। मगर यहां एक और मुसीबत।  टाईप टेस्ट दो। हमारे पास तीन दिन का समय था। फ़ौरन के पेश्तर टाईप कॉलेज ज्वाइन किया। टाईप हमें आती ही थी, हिंदी-इंग्लिश दोनों। बस प्रैक्टिस की कमी थी। जम कर प्रैक्टिस की। टाईप टेस्ट दिया। हिंदी में पास, अंग्रेजी में फेल। अब यह हमारी किस्मत अच्छी थी इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में हिंदी टाईप जानने वालों का जबरदस्त अकाल था। इसलिए रख लिए गए। कम से कम इस लड़के को हिंदी तो आती है।

फिर हमने पीछे मुड़ नहीं देखा। दो साल बाद एक और परीक्षा। अपर डिवीज़न असिस्टेंट हो गए। समझिये हमें कम से कम अट्ठारह साल का लीप मिला। उसके बाद हम ३६ साल ०८ महीने बाद डिप्टी जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए।
पीछे मुड़ सोचता हूं कि अगर सिंचाई विभाग वाले हमारे मित्र बंधु जी हमें अकेले ही ले टंकण का टेस्ट दिलाने ले गए होते तो हम कहां होते? शायद सिंचाई विभाग से बड़े बाबू हो कर रिटायर हुए होते। या यह भी हो सकता है नौकरी छोड़-छाड़ कहीं छोले-भठूरे का ढाबा खोल लिया होता और वो ढाबा आज के दिन फ़ाईव स्टार होता। या यह भी सकता है कि स्ट्रगल करने कहीं बाहर निकल गए होते। या फिर किसी गटर में पड़े ज़िंदगी गुज़ार चुके होते।

दोस्तों, डेस्टिनी बड़ी चीज़ है। ये तीन मददगार मित्र, बंधु, शर्मा और मिश्रा, जो हमारी ज़िंदगी में आये ये लोग उसी डेस्टिनी का ही हिस्सा थे। हम आज भी डेस्टिनी को ईश्वर से ऊपर मानते हैं।
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05-04-2017 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow-226016 

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’सौन्दर्य और अभिनय की याद में ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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