Saturday, July 1, 2017

मीठी वाणी बोल जग जीतो

- वीर विनोद छाबड़ा
हमारे दिवंगत प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विदेशी दौरे से लौटने पर एक बड़े पत्रकार ने टिप्पणी की थी कि उन्होंने जब भी मुंह खोला, दोस्त कम बनाये और दुश्मन ज्यादा। वज़ह थी उनकी जीभ।
भाषा में न तो मिठास थी और न शालीनता।
कबीरदास को लोग भूल गए हैं। भले किसी के काम न सको लेकिन कम से कम ऐसी वाणी बोलिए कि खुद भी शीतल हों और दूसरों को भी शीतल करें।
दो दिन हुए मैं अपने शहर लखनऊ के गोमती की भूतनाथ मार्किट गया। ख़्याल आया कि पिछले पांच बरस से मैंने कोई शर्ट या पतलून नहीं सिलवाई है। जेब में हाथ डाला। पर्स लगभग खाली था। फिर भी जायज़ा लेने एक कपड़े की दुकान में घुस गया। यह कोई एक्सक्लूसिव ब्रांडेड कपड़े का शो रूम नहीं था। हर कंपनी के कपड़े थे।
मैंने उत्सुक दुकानदार को अपना मंतव्य भी बता दिया - खरीदना नही है। अभी जेब में पैसे नहीं हैं। बस देखने आया हूं। इसी बहाने माइंड मेक अप हो जायेगा।
लेकिन दुकानदार के चेहरे पर कतई शिकन नहीं आई। बहुत ही विनम्रता से पेश आया। थान पर थान खोल कर दिखाये। यहां तक ऑफर दिया - बाऊ जी ले जाईये, पैसे बाद में आते रहेंगे।
मुझे जिज्ञासा हुई - इतना भरोसा कैसे कर लेते हैं। आजकल इंसान की नीयत का क्या भरोसा?
वो बोला - बाऊ जीहम भी बजाजे का ख़ानदानी काम है। सौ साल तो हो ही गए। ग्राहक की नस नस से वाकिफ़ हैं। चेहरा देख दकर बता सकते हैं कि नीयत कैसी है? अमीनाबाद और हज़रतगंज में भी दुकानें हैं।
लेकिन मैंने मना कर दिया - लेकिन अपना भी उसूल है। जेब में पैसा नहीं तो माल नहीं खरीदते।
चलते समय दुकानदार ने मिठास घोलते हुए कहा - अपनी ही दुकान समझो बाऊजी। दर्शन देने फिर ज़रूर आईयेगा।
तबियत खुश हो अपनी तो। अपनी मीठी वाणी से उसने मुझे अपना मुरीद बना लिया। अब यह पक्का है कि हफ़्ते या महीने बाद जब कोई कपड़ा लेना होगा तो मैं उसी से लूंगा।
मक़सद यह है बताने का कि शीतल और मीठी भाषा जाननी हो या धैर्य की पराकाष्ठा देखनी हो तो किसी पुराने क्लॉथ मर्चेंट के स्टोर में प्रवेश करें। उसके व्यवहार में पर्सनल टच मिलेगा। दुकान उसके लिए किसी मंदिर से कम नहीं।
मैं बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स में भी गया हूं। कोई पूछता ही नहीं - आप यहां किसलिये? माल बिके या न बिके, कंपनी जाने। उधार तो बहुत दूर की बात है। सेल्स मैन को बस वेतन चाहिए। निर्विकार चेहरों को लाली-लिपस्टिक पोत कर ख़ूबसूरत तो बनाया जा सकता है, लेकिन भावपूर्ण नहीं। आपने मुंह फेरा नहीं कि चेहरा भावहीन हो गया।
कार, बाईक, मोबाईल और टीवी-फ्रिज विक्रेताओं की वालों की ऑफ्टर सेल पुअर सर्विस से तो आप वाक़िफ़ होंगे ही - कौन हो तुम?
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01 July 2017
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Lucknow - 226016
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