Tuesday, July 4, 2017

बाबू, अफ़सर और भ्रष्टाचार

-वीर विनोद छाबड़ा
सरकारी नौकरी में कई विभागों की कुछ सीटें ऐसी होती हैं जिस पर पोस्टिंग के जुगाड़ में बाज़ लोग भर्ती होते ही जुट जाते हैं। ये वो सीटें हैं जिनमें बदनीयती प्रोग्राम्ड होती है। यानी आप चाहें न चाहें, कमीनापन तो दिखाना ही पड़ेगा। अपनी कथनी और करनी दोनों में।
हम बिजली विभाग के एक ऐसे नवागंतुक सहायक अभियंता को जानते हैं जो एक मामूली इलज़ाम में ससपेंड हुआ। ट्रिब्यूनल ने उसके हक़ में फैसला दिया। लेकिन पैरवी करने वाला बाबू इतना आहत हुआ कि इसे नाक का बाल बना लिया। इतना ज़बरदस्त नोट लिखा कि विभाग ने माननीय हाई कोर्ट में अपील कर दी। वहां भी हार हुई। बाबू तिलमिला गया। उसने लिखा कि आगे ऑडिट आपत्ति कर सकता है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गए? अफसरान डर गए। लेकिन विभाग वहां भी हार गया। लेकिन पीड़ित फिर भी बहाल नहीं हुआ। इस बीच बाबू का एक्सीडेंट में देहांत हो गया। नया बाबू आया। उसने खुद को मामले से अनिभिज्ञ बताते हुए बरसों केस को लटकाये रखा। पीड़ित ने कहा मरते मर जाऊंगा लेकिन घूस नहीं दूंगा। किसी मंत्री जी की सिफारिश ले आया। झाड़-पोंछ कर फाईल निकाली गयी। बाबू ने पुनर्विचार याचिका दाख़िल करने का सुझाव दिया। मगर आला अफसर कानून का जानकार था। फैसला आये पांच साल हो गए। केस कालातीत हो गया है। नतीजा यह हुआ कि पीड़ित चौंतीस साल बाद बहाल हुआ और वो भी सेवानिवृति से दो महीने पहले।
जुगाड़ू येन-केन-प्रकारेण मलाईदार सीटों पर काविज़ हो लेता है। जल्दी ही ये जुगाड़ू बाबू खुद को विभाग का दरोगा घोषित करता है। सीट की कमीनगी और जुगाड़ू बाबू का मिलन यानि हम तुम बने इक दूजे के लिए। बरसों उसी कुर्सी से फेविकोल लगा कर चिपका रहेगा। दुधारू 'थन' की तलाश में भटकते अफसर को बड़ी आसानी से यह जुगाड़ू बाबू ट्रैप कर लेता है। दूसरों को तंग करने का वायरस रिटायर होने तक इनसे चिपका रहता है। हज़ारों निरीह और मज़बूर प्राणियों को लूटेगा। अपना घर भरेगा और ऊपर वालों का हिस्सा उनके घर पहुंचाएगा। इस बीच धर्मराज को छोड़ दुनिया की कोई भी सुनामी उसे हटा नही सकती। 
लाखों की हाय भी इस जुगाड़ बाबू का बाल भी बींका नहीं कर सकती। हमारे एक जानकार बाबू सुबह ऑफिस आने से पहले आईने के सामने खड़े होकर लंबा-चौड़ा चंदन, केसर वगैरह का टीका लगाते हैं। आला अफ़सरान के अलावा मंत्री-संत्री तक के दुलारे हैं ये। हर समस्या का हल और जुगाड़ इसकी जेब में हर वक़्त मिलता है। मंत्री जी के एक 'दुलारे' के प्रमोशन में एक सीनियर बाधा बन रहे थे। उसकी रिपोर्ट संतोषजनक थी। उसे पीछे खिसकाने का उपाय बाबू ने बता दिया। संतोषजनक के पहले '' बढ़ा दें। एक टेंडर में मंत्री जी के दबाब में अफसर को स्वीकृत लिखना पड़ा। तभी सरकार बदल गयी। शिकायत हो गयी। अफसर के हाथ-पांव फूल गए। बाबू ने सुझाया - स्वीकृत से पहले '' बढ़ा दें। अफसर बच गया।
एक विभाग के भ्रष्ट बाबू के दूसरे विभाग के अपने काउंटर पार्ट से अच्छी सांठ-गांठ रहती है। यानि माया को माया मिले करके लंबे हाथ।
हमने एक जन्म से ईमानदार बाबू को देखा है। विभाग को दुरुस्त करने के बड़े-बड़े सपने लेकर तैनात हुए। लेकिन कुर्सी में घुसी कमीनगी की प्रकृति और सिस्टम में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों के कारण वो परेशान हो गया। उधर उसका डीएनए उसे बार बार चैलेंज करता रहा। इधर बात-बात पर ऊपर के अफसर से बेवज़ह डांट खाता रहा। अंततः उसने हाथ जोड़ दिए। बाबू 'बेवकूफ' की पदवी से विभूषित करके शहर से बाहर ट्रांसफर कर दिया गया। जो अपने जेब के पैसों से चाय पियेगा और दूसरों को भी पिलायेगा, उसका यही हश्र तो होना ही था।

जब किसी मलाईदार सीट से हमने किसी बाबू को जल्दी ट्रांसफर होते देखा है तो हमारे विश्लेषण के अनुसार इसके लिए कई किवदंतियां प्रचलित हैं। एक, ग़लत काम के लिए इसका ज़मीर गंवारा नहीं करता। दूसरा, इनके अंदर कमाने की चतुराई नहीं होती। और तीसरा, न ज़मीर न चतुराई, ये जन्मजात भीरू होते हैं। 
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04 July 2017
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1 comment:

  1. वाह वाह क्या खूब अ लगाया ,अफ़सोस मगर हकीकत यही है

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