Sunday, July 9, 2017

सास-बहु की जंग में मरता पुरुष ही है

- वीर विनोद छाबड़ा

आज पति बहुत खुश है। ऑफिस से लौटते हुए पत्नी के लिये गजरा ले कर आया। पत्नी खुश। बोली - अपने हाथों से लगा दो। 
मां ने मुंह बिचका कर कहा - जोरू का गुलाम कहीं का।
मां को नाराज़ देख बेटा अगली सुबह मां की मनपसंद जलेबी ले आया।
पत्नी ने मुंह बिचकाया - चम्मच।

पत्नी का एक पुराना दोस्त मिलने आया। पति ने पूछा - कबसे जानते हो एक दूसरे को?
पत्नी ने सफाई दी - बचपन से।
पति शंकित हुआ - शादी हुए दस बरस हो गए। आज कैसे याद आई?
पत्नी भड़की  - शक़ कर रहे हो?
पत्नी का रौद्र रूप देख पति ठंडा पड़ गया  - नहीं, नहीं ऐसे ही पूछ रहा हूं।
मां की प्रतिक्रिया - बुज़दिल कहीं का। दे एक रैप्टा कान के नीचे। सब कबूल देगी अभी।

संडे का दिन। पति के विश्राम का दिन। पत्नी ने कहा - क्यों निठल्लों की तरह बैठे हो? बाज़ार से राशन ले आओ।
मां बुदबुदाई - बेचारे को आराम से बैठने भी नहीं देती एक पल को।

पत्नी को पति सिनेमा दिखाने ले गया।
मां मन ही मन बड़बड़ाई  - आवारागर्दी हो रही है।
लौटते हुए गोलगप्पे और टिक्की खाई दोनों ने।
मां के लिये रसगुल्ले पैक कराये।
पत्नी बोली - बहुत फ़िज़ूलखर्ची हो रहे हो आजकल।

सास-बहु की धींगा- मुश्ती के बीच पिसता बेचारा पुरुष ही है, कभी पति बन कर तो कभी बेटा बन कर. 
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10 July 2017
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D-2290 Indira Nagar
Lucknow-226016
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7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह बहुत खूब। रोचक प्रस्तुति।

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  3. रोचक प्रस्तुति बात तो बिल्कुल सत्य है ।

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  4. बहुत सुन्दर....

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  5. बहुत रोचक प्रस्तुति।

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