Tuesday, July 25, 2017

मन से आज़ादी

- वीर विनोद छाबड़ा
कई साल पहले की बात है। हमारे पेट में बहुत दर्द उठा। डॉक्टर से मिले। वो सिगरेट फूंक रहे थे। हमें देख कर सिगरेट बुझा दी। हमें सर से पांव तक देखा। कायदे से परीक्षण किया। दवा लिख दी और साथ में एडवाइस किया - बरखुरदार, सिगरेट पीना बंद कर दो। यह कह कर उन्होंने बुझी सिगरेट दोबारा सुलगा ली।
हमारे पिताजी कैंसर से पीड़ित थे और एसजीपीजीआई में भर्ती थे। हम यूरोलॉजी के एक प्रोफ़ेसर से मिलने उनके चैंबर में गए। वो सिगरेट के लंबे लंबे कश खींच रहे थे। बोले - अपने पिताजी से कहना कि सिगरेट छोड़ दें।
यूं हम जिस विभाग में कार्यरत थे, वहां पांच प्रोजेक्ट हॉस्पिटल थे। उनमें तैनात डॉक्टर्स का इस्टैब्लिशमेंट कुछ समय हमने देखा। इस नाते डॉक्टरों के संपर्क में अक्सर रहना पड़ा। कई डॉक्टर धुआंधार सिगरेट पीते दिखे जो दूसरों को सिगरेट न पीने की सलाह दिया करते थे। हमने एक डॉक्टर साहब से कहा - दूसरों को एडवाइस करते हैं, लेकिन खुद अमल नहीं करते। क्या प्रभाव पड़ता होगा मरीज़ों पर?
उन्होंने हमें घूरा - ज़हर पीयेंगे, तभी तो पता चलेगा कि यह ज़हर है।
एक बार डॉक्टर ने हमारा लिपिड प्रोफ़ाइल टेस्ट कराया। रिपोर्ट आई। डॉक्टर बोले ठीक है।
हमें राहत मिली। इसी ख़ुशी में एक सिगरेट धौंकी। ख़्याल आया कि हमारे एक अधिकारी महोदय दो बार एंजियोपलास्टी के माध्यम से हार्ट में स्टेंट डलवा चुके हैं। उनके दो पुत्र भी डॉक्टर हैं। ज़ाहिर है कि उनकी अच्छी जानकारी होगी। हम उनसे मिले तो वो सिगरेट पी रहे थे। हमारी रिपोर्ट देखी तो बोले - बहुत सीरियस मामला है। फ़ौरन सिगरेट छोड़ दो।
हम तीसरे डॉक्टर से मिले। उन्होंने कहा - सब ठीक तो है। पियो सिगरेट इत्मीनान से।
लेकिन कुछ समय बाद हमें महसूस हुआ कि सिगरेट ने हमें अपना गुलाम बना लिया है और हमें इससे आज़ादी चाहिए। और हमने येन-केन-प्रराक्रेण सिगरेट से आज़ादी हासिल कर ही ली। तबसे हमने बहुत सी बुराइयों से आज़ादी हासिल की है।

लेकिन अभी 'मन' से आज़ादी नहीं हो पायी है। यह मन ही हमें बहुत भटकाता है। 
---
26 July 2017
---
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
---
mob 75056636

No comments:

Post a Comment