Sunday, July 16, 2017

झूमो-नाचो कि मुनिया आई है...

- वीर विनोद छाबड़ा
हमें याद है कि जब गुड़िया पैदा होती थी तो महीने बाद सूचना दी जाती थी। वो चिट्ठी का ज़माना था। लेकिन गुड्डू पैदा होते ही एक बंदा टेलीग्राफ़ ऑफिस दौड़ा दिया जाता था। उसके हाथ में एक सूची होती थी जिनको तार भिजवाना होता था। मौसा, फूफा, मामा और चाचा सबको, किसी को न छोड़ना। साथ में यह भी लिख दिया जाता था - Inform all.
हमें याद है जब हमारी बेटी हुई थी तो हम दौड़े दौड़े अपनी बुआ को बताने गए थे। हमने खुश होकर बताया था कि हमने खानदान की रवायत भी कायम रखी है। बुआ ने हमारा माथा चूमा था और आशीर्वाद में पांच रूपए दिए थे। साथ ही यह भी कहा था कि हौली बोल, कोई सुणेगा ते पागल कहेगा। 
आज बहुत कुछ बदल चुका है। टेकनोलोजी बदल गई बस। मोबाईल क्रांति हो गई है। यात्रा की पहली पसंद हवाई जहाज है। हाथ में महंगा मोबाईल है।
लेकिन मानसिकता वही है। अभी उस दिन अस्पताल के बाहर एक नौजवान के ख़ुशी के मारे पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। दद्दा, पाये लागी। आपके आशीर्वाद से अभी अभी बेटा हुआ है...अड़ोस-पड़ोस सबको ख़बर दे दियो। वो इसी तरह के दस-पंद्रह फ़ोन और मारता है।
अस्पतालों में अक्सर मिठाई के डिब्बे खुलते देख हम समझ जाते हैं कि कोई गुड्डू, मुन्नू या चिंटू ने दुनिया में क़दम रखा है। किसी को मोबाईल पर उदास उदास सा बात करते देखता हूं तो हम तुरंत अंदाज़ा लगा लेते हैं कि ज़रूर किसी गुड़िया या मुनिया ने जन्म लेकर परिवार को घोर चिंता और संकट में डाल दिया है।

लेकिन आज भी कुछ परिवार हैं, जिनके घर मुन्नी के पैदा होने पर बड़ा भारी उत्सव मनाया जाता है। कहते हैं, लक्ष्मी आई है। हमें ऐसे उत्सवों में जाने से जो ख़ुशी हासिल होती है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल हो जाता है। 
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16 July 2017
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