Tuesday, July 18, 2017

मर्दों से बेहतर अचार बनाने वाला नहीं

- वीर विनोद छाबड़ा
किसी मॉडल या सिनेमा की नायिका के हाथ बना अचार!
नहीं, मैं तो कतई नहीं लूंगा। क्योंकि मुझे मालूम है कि इनके पास आउटडोर के इतने ज्यादा काम हैं कि दम मारने की फुरसत नहीं। यह तो सिर्फ बेचने के लिए खड़ी है। इसके लिए इन्हें ढाई-तीन लाख से कम नहीं मिलेंगे।
फिर खतरे भी तो बहुत हैं। पत्नी देखेगी तो मीन मेख निकालेगी - इससे अच्छा तो मैं बना लेती हूं।
हालांकि मुझे मालूम है वो झूठ बोल रही है। वो भी इससे बढ़िया और टेस्टी नहीं बना सकती।
हम तो उस विचारधारा के लोगों में से है जो मानते हैं कि मर्दों से बेहतर न कोई कुक है और न कोई अचार बनाने वाला। अब बाज़ारवाद के और बिक्री के इस दौर में किसी नायिका को खड़ा करना मजबूरी है ताकि कोई सवाल न उठा सके। अब किसी में अनुष्का शर्मा को चैलेंज करने की हिम्मत है भला
यों धारणा है कि पड़ोसन के हाथ का बना अचार सबसे बढ़िया होता है। लेकिन राज की बात बताऊं आजकल की पड़ोसनों को किटी पार्टियों से फुरसत नहीं। वो भी बाज़ार से ही खरीद कर लाती है और जलाने के लिए कह देती है - मैंने अपने हाथों से बनाया है। शर्मा जी तो बस नाम के हैं। कुछ नहीं आता जाता है। दिन भर तो फेस बुक से चिपके रहते हैं।
पुराने ज़माने में बाज़ार के अचार का चलन नहीं था। मातायें घर में बनाती थीं। मेरी मां भी बनाती थी। आम का और शलजम का। हरी मिर्च, लाल मिर्च और नींबू भी। आम को मुझे पसंद नहीं था। स्कूल जाते हुए एक पराठे के साथ थोड़ा नींबू का अचार रख देती। और डब्बा खाली, पेट फुल्ल।

अब तो अचार खाये मुद्दत हो गयी। अब अचार अच्छा नहीं लगता। पत्नी की जली-कटी सुन लेता हूं, इसमें भी किसी भी बेहतरीन चटपटे अचार जैसा मज़ा है। न हींग लगी न फिटकरी। बिलकुल फ्री में।
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19 July 2017
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