Tuesday, November 24, 2015

अब्दुल्लाह टी स्टॉल।

- वीर विनोद छाबड़ा 
कल शाम अमीनाबाद से गुज़रना हुआ। भीड़ ही भीड़। तिल रखने को जगह नहीं। मैं तलाश रहा था प्रकाश कुल्फ़ी और बर्मा बिस्कुट वाली लेन में अब्दुल्लाह टी स्टाल।
इस लेन में कई-नई दुकानें दिख रही हैं। नई-नई इमारतें खड़ी हो गयी हैं। लेकिन अब्दुल्लाह टी स्टाल नहीं दिखा। शायद नहीं रहा।

पिछले ४२ साल में दुनिया इधर से उधर सरक गयी है। लेकिन मैं ४२ साल पीछे सरक जाता हूं।
अब्दुल्लाह टी स्टाल पर खड़ा हूं। क्या दौर था वो भी । रात का डेढ़ बजा है। यहां निशाचरों की एक अलग ही दुनिया आबाद है। जगत, मेहरा और नाज़ सिनेमा हाल कब के छूट चुके हैं। थोड़ी दूर कैसरबाग़ वाला आनंद, लिबर्टी और निशात भी। ज्यादातर तमाशबीन यहीं जमे हैं। फ़िल्मी डिस्कशन चल रहे हैं। कोई चारबाग़ जाने की फ़िराक में है। किसी को बस पकड़नी और किसी को ट्रेन।
मेरे साथ रवि मिश्रा है, प्रमोद जोशी, विजय वीर सहाय और उदयवीर। हम विजय वीर के फर्लांग भर दूर मॉडल हाउस स्थित घर में कंबाइंड स्टडी के बहाने गपशप करने आते है। रिफ्रेश होने यहां अब्दुल्लाह टी स्टाल पर आ गए। सर थोड़ा बचा कर। हल्का सा अंडरग्राउंड है यहां। यहां आना हमारा तकरीबन रोज़ का शगल है। कभी-कभी बंद-मक्खन के साथ कड़क चाय पीते हैं। एक बंद के पांच हिस्से और कभी-कभी पूरे पांच बंद भी। धनाढ्य मिश्रा तो है ही साथ में। कभी-कभी उधार भी चल जाता है।
यहां करीब घंटा- डेढ़ घंटा डिस्कशन चलता है। टॉपिक कोई भी हो। राजनीति, सामाजिक या अर्थनीति। कई बार लड़की पर भी चर्चा होती है। आख़िर है तो हम लोग जवान ही न। सबके सब दिलवाले।
यूनिवर्सिटी क्या छूटी कि बहुत कुछ बिखर गया। इसमें अब्दुल्लाह टी स्टाल भी शामिल है। सब अपनी रोज़ी रोटी कमाने के फेर में बिज़ी हो गए। 
चल आगे बढ़ ले। सिपाही डंडा फटकारता है।
मैं वर्तमान में लौटता हूं। सिपाही से पूछा - यहां ४२ साल पहले एक अब्दुल्लाह टी स्टाल होता था। उसी को देखने आया हूं। दिख नहीं रहा।

सिपाही मुझे ऊपर से नीचे तक घूरता है। मानों कह रहा हो - अबे, लल्लू हो क्या? दुनिया चांद-सितारों की बात कर रही है और तुम्हें अब्दुल्लाह टी की पड़ी है। कब्रें खोदने वाले बुढ़ऊ। 
मुझे धीरे से जोर का झटका लगा। न वो लोग रहे और न तहज़ीब। शायद अब निशाचरों का बाज़ार भी नहीं लगता।
सिपाही कह रहा था - स्कूटी बढ़ाओ। चालान कट जायेगा।
मैं स्कूटी स्टैंड पर खड़ी करता हूं। बैटरी कबकी ख़त्म हो चुकी है। किक से स्टार्ट करता हूं। फिर धीरे-धीरे भीड़ में से रास्ता बनाता हुआ सरक लेता हूं।
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24-11-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

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1 comment:

  1. ​​​​​​सुन्दर रचना ..........बधाई |
    ​​​​​​​​​​​​आप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #​असहिष्णुता पर | ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |

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