Friday, November 6, 2015

चोर चोरी से जाए, हेरा-फेरी से नहीं।

- वीर विनोद छाबड़ा
हमारे एक जॉइंट सेक्रेटरी रहे हैं मो.उज़ैर। भले अधिकारी थे। उन दिनों हम इस्टैब्लिशमेंट में पोस्ट थे। सबकी रग रग से वाकिफ़। इसी वज़ह से थोड़ी बहुत जासूसी भी डीएनए में घुस गयी थी।
  
एक दिन उज़ैर साहब ने हमें सुबह-सुबह बुलाया। टेबुल लैंप की ओर ईशारा किया - रोज़ सुबह बल्ब फ्यूज़ मिलता है। इलेक्ट्रीशियन ने सारी लाईन देख ली हैं और बल्ब होल्डर भी। सॉकेट भी चेक किया है और प्लग भी। सब सही है। फिर क्यूं बल्ब फ्यूज़ होता है? केयरटेकर भी हैरान है। आप कुछ रोशनी डालो।
हमने उनसे पूछा - सुबह सुबह कौन आता है आपके कमरे में।
उन्होंने बताया - हमारा चपरासी.... ।
उस ज़माने में लाल रंग के करेक्टिंग फ्लूइड का चलन था जो स्टैंसिल पर टाईप हो गए ग़लत शब्द पर लगाया जाता था। हमने बल्ब पर लाल रंग के करेक्टिंग फ्लूइड का निशान लगा दिया- अब चोर पकड़ा जायेगा।
दूसरे दिन सुबह सुबह उज़ैर साहब का बुलावा आ गया। हम फ़ौरन हाज़िर हुए। देखा, बल्ब फ्यूज़।
हमने फ्यूज़ बल्ब टेबुल लैंप से बाहर निकाला। लाल निशान नहीं था। ज़ाहिर था कि किसी ने नया बल्ब निकाल फ्यूज़ बल्ब लगाया है। तय है कि यह चोरी  है।
हमने कहा - सुबह सुबह सबसे पहले आपके कमरे में एक आदमी आता है। आपका चपरासी। अच्छी तरह जानते हैं हम उसे। खाने-पीने को भरपूर है उसके पास। शायद सबसे धनी चपरासी। दूसरों को ब्याज पर उधार भी दिया करता है। लेकिन आदतन चोरी करता है। सुख मिलता है दूसरों को दुखी करके। पूछताछ आप कर लें।
थोड़ी ही देर बाद उज़ैर साहब ने हमें बुलाया। चोर पकड़ा गया। वही है सबको दुखी करने वाला। देखो ट्रांसफर नहीं करना। जहां जायेगा वहां दुखी करेगा। हमें तो दुःख सहने की आदत है।
उन्होंने हमारा शुक्रिया अदा किया। हमने भी अपनी पीठ थपथपाई। केस सॉल्व।
हो गए हैं इस घटना को ३२-३३ साल। वो चपरासी रिटायर हो चुका है। हम भी रिटायर हैं। मिलता है, कभी-कभी। कोई न कोई बहाना बना कर कभी पचास तो कभी सौ रूपये मांगता है। लेकिन हम नहीं देते। हम अच्छी तरह जानते हैं कि वो आदतन भिखमंगा भी है।
एक दिन अस्पताल में मिल गया। रोने लगा - दवा लेनी है। पैसे कम पड़ गए हैं। वाईफ़ भर्ती है।

हमें तरस आ गया। आदमी हर सौ झूठ के बाद एक बार सच बोलता है। हो सकता है कि सच ही बोल रहा है। दे दिए सौ रूपए। 
थोड़ी देर बाद देखा कि वो ढाबे पर बैठा बंद-मक्खन खा रहा था।
अभी पिछले हफ़्ते फिर दिखा। अब उसे ठीक से दिखता नहीं है। पहचान नहीं पाया। सड़क क्रॉस करने के लिए खड़ा था। हम भी अपनी आदत से बाज़ नहीं आये। उसे सड़क क्रॉस करा दी।
बोला - धन्यवाद छाबड़ा साहब।
इससे पहले कि वो कुछ आगे बोल कर हमें दुखी करता हम तुरंत खिसक लिए।
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06-11-2015 mob 7505663626
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