Thursday, November 26, 2015

क़ैदी हूं जेलर नहीं - बलराज साहनी।

- वीर विनोद छाबड़ा 
बलराज साहनी एक बेहतरीन नेचुरल आर्टिस्ट थे। साथ ही साथ वो एक सक्रिय राजनीतिज्ञ भी थे। वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। उनका एजेंडा साफ़ था। मज़दूरों, किसानों और मजलूमों के हक़ के लिए लड़ना, उन्हें इंसाफ़ दिलाना। इसकी वज़ह से उन्हें १९४९ में जेल भी जाना पड़ा। वहां मजरूह सुल्तानपुरी के साथ वो कई दिन तक रहे भी।

उसी दौरान के.आसिफ़ एक फिल्म बना रहे थे - हलचल। इसमें दिलीप कुमार और नर्गिस के साथ बलराज साहनी की भी अहम भूमिका थी।
बलराज इसमें एक जेलर के रोल में थे। लेकिन त्रासदी यह थी कि बलराज खुद जेल में क़ैदी थे। शूटिंग रुक गयी। प्रोड्यूसर के.आसिफ़ को माली नुकसान हो रहा था। कर्ज़ लेकर फिल्म बना रहे थे वो।
के.आसिफ़ माननीय कोर्ट पहुंच गए। अपने नासाज़ हालात बयान किये। अगर बलराज शूटिंग नहीं करेंगे तो कुफ़्र टूट पड़ेगा।
माननीय कोर्ट ने रहम फ़रमाया। हुक्म हुआ कि शूटिंग के लिए बलराज को रिहा किया जाए और शूट के बाद फिर जेल वापस।
अगले दिन बलराज क़ैदी की ड्रेस में चार सिपाहियों के घेरे में स्टूडियो पहुंचे। के.आसिफ़ को राहत मिली। 
बलराज मेकअप रूम में दाख़िल हुए। सिपाहियों को बाहर बैठा दिया गया।
थोड़ी देर बाद बलराज जेलर की ड्रेस में बाहर निकले। नेचुरल आर्टिस्ट होने के साथ-साथ रोबीला चेहरा तो बलराज का था ही। सिपाहियों ने उन्हें असली जेलर समझ लिया। हड़बड़ा कर सब खड़े हो गए। जोरदार सल्यूट मारा।

बलराज ने भी उनका अभिवादन स्वीकार किया। लेकिन अगले ही क्षण मुस्कुरा दिए - अरे भई, मैं कोई असली जेलर नहीं हूं। नकली हूं, तुम्हारा क़ैदी।
कुछ घंटे शूट चला। बलराज ने कैदियों की ड्रेस पहनी और वापस जेल में।
यह क्रम कई दिन तक चला। कुछ अरसे बाद सरकार की ग़लतफ़हमी दूर हुई कि बलराज और उनके साथियों का असली मक़सद किसानों, मज़दूरों और मजलूमों पर हो रहे ज़ुल्म का विरोध करना है और ऐसा करना राजद्रोह नहीं है। बलराज और उनके साथी जेल से बाहर आ गए।
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२६-११-२०१५ mob 7505663626
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