Wednesday, November 25, 2015

अंधे ज्यादा या नैनों वाले।


- वीर विनोद छाबड़ा 
एक बहुत पुरानी कहानी है। अक़्सर माता-पिता और शिक्षक बच्चों को सुनाया करते थे। अब शायद नहीं सुनाते। मुझे याद आई अभी-अभी। शेयर कर रहा हूं ताकि सनद रहे।

एक दिन अकबर और बीरबल में छिड़ गई जुबानी जंग। देखने वाले ज्यादा हैं या अंधे?
अकबर देखने वालों के पाले में खड़े थे। जबकि बीरबल बता रहे थे कि अंधों की संख्या दुनिया में ज्यादा है।
अकबर को गुस्सा आया। हम बादशाह सलामत हैं। भला ग़लत कैसे हो सकते हैं?
बीरबल को चैलेंज किया। साबित करो कि तुम सही हो।
बीरबल ने चौबीस घंटे की मोहलत मांगी।
अगले दिन सुबह बीरबल बीच बाज़ार में बैठ गए। खटिया बीनने लगे। साथ में दो मुलाज़िम भी कागज़ क़लम-दवात सहित बैठा दिए।
लोग हैरान और परेशान। बीरबल खटिया बीन रहे हैं? दिमाग फिर गया है क्या? उनसे जाकर पूछा - हुज़ूर, ये आप कर क्या रहे हैं?
पूछने वालों का तांता लग गया। ट्रैफ़िक जाम हो गया। इधर मुलाज़िमों ने पूछने वालों के नाम दर्ज कर लिये।
ख़बर की ख़ासियत है उड़ना। बादशाह सलामत अक़बर को भी ख़बर हुई। बीरबल सठिया गये हैं। बादशाह लाव-लश्कर के साथ चौराहे पर पहुंचे। उन्होंने न भी वही सवाल किया- बीरबल यह तुम क्या कर रहे हो?
बीरबल चुप। अपना काम करते रहे। इधर मुलाज़िम ने बादशाह सलामत का नाम दर्ज कर लिया।
यह देख बादशाह सलामत को और भी गुस्सा आया। उन्होंने मुलाज़िम से कागज़ छीन लिया। देखा, उस पर उनका का नाम दर्ज था। बादशाह सलामत फ़नफ़नाए - बीरबल यह क्या बदतमीज़ी है?
बीरबल ने शांत भाव से जवाब - गुस्ताख़ी माफ़ सरकार-ए-आलिया। यह अंधो की फ़ेहरिस्त है, जिसमें आपका भी नाम दर्ज है।

बादशाह सलामत के नथुनों से धुआं निकलने लगा - अहमक़। मैं तुम्हें अंधा दिखता हूं?
बीरबल मुस्कुराये - नहीं हुज़ूर। मैं तो सिर्फ़ यह साबित करना चाहता हूं कि अंधों की संख्या ज्यादा है। अब देखिये न, हर आदमी आंखें होते हुए भी अंधों की तरह पूछ रहा है कि बीरबल क्या कर रहे हो? और इसमें आप भी शामिल हैं।

यह सुनते ही बादशाह अक़बर ने ठहाका लगाया - तुम जीत गए बीरबल। वाकई इस दुनिया में अंधों की संख्या ज्यादा है।
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