Sunday, April 20, 2014

घरेलू कुत्ता बनाम बाज़ारू कुत्ता!

-वीर विनोद छाबड़ा

घर के अंदर रहने वाला दुलारा कुत्ता भले ही तमाम सुख-सुविधाओं से संपन्न हो परंतु उसका स्टेट्स है तो कैदी का ही न। इसी तरह बाज़़ारू कुत्ता कहने को तो स्वतंत्र हवा में विचरता है, लाख मन का राजा है मगर है तो इंसानों की झूठन पर पल कर ज़िंदा और हर खासो-आम द्वारा दुत्कारा गया। मज़े़ की बात तो ये है कि दोनों ही अपने-अपने भाग्य से संतुष्ट नज़र आते हैं।

एक दिन बंदे ने देखा कि एक आलीशान कोठी की चारदीवारी में रहने वाला झक सफेद पैमेरीयन कुत्ता चीटू
लोहे की मोटी चादर से बने मजबूत ऊंचे फाटक के नीचे हवा के लिये बनी जाली में से बाहर झांक रहा था और बाज़ारू भूरा-सफेद कुत्ता भूखू उससे अपनी थूथन मिला कर कूं-कूं करके अपनी खुशी का इज़हार कर रहा था। वाचमैन ये देख कर खी-खीं करके हंस रहा था। शायद उसको दो कुत्तों की औकात और किस्मत का ये नज़ारा बहुत अच्छा लग रहा था। वो सोच रहा था कि मैं तो खामख्वाह ही अपनी किस्मत को कोस रहा था, यहां तो हर कुत्ते की भी जिंदगी फ़र्क़ है। अचानक भूखू को वहां से दुत्कार भगा देता है। उसको अपने साहब के आने की भनक मिल गयी थी।

इसके बाद मिलने का यह रोज़ाना का सिलसिला बन गया। दोपहर चढ़ने के आस-पास जब अलग-अलग गाड़ियों से बच्चे स्कूल चले जाते। साहेब आफ़ि़स रवाना हो जाते। और मेमसाब् किसी किट्टी पार्टी में शिरकत करने निकल जातीं। और वाचमैन झपकी लेने के लिये अपने लकड़ी के केबिन में घुस जाता था। ऐसे ही मौके का
इंतज़ार करता बाज़ारू भूखू फाटक के पास आकर धीरे से दो-तीन बार कूं-कूं करता और फाटक के उस पार भूखू इस परिचित कूं-कूं का शिद्दत से इंतज़ार करता चीटू गेट पर जाता था।

फिर चीटू और भूखू घंटों वहीं बैठे-बैठे एक-दूसरे को निहारते धीमे-धीमे अपनी भाषा में जाने क्या बतियाते रहते! नहीं, नहीं। ये प्यार नहीं था। दोनो मेल थे। सिर्फ़़ और सिर्फ़़ दोस्ती का रिश्ता था। इस बीच वाचमैन की कई बार नींद वाली झपकी टूटती थी। वो कनखियों से दोनों को देखता और फिर सो जाता था। उसे इत्मीनान हो जाता था कि दोनों कुत्ते अलग बिरादरी के सही, मगर वाचमैन  की उसकी ड्यूटी अंजाम दे रहे हैं। दोपहर चार के आस-पास वाचमैन एलर्ट हो जाता। चीटू और भूखू भी समझ जाते कि उनकी मुलाकात का वक़्त खत्म हो चुका है। इससे पहले कि वाचमैन की दुत्कार पड़े दोनों दोस्ती के इस सिलसिले पर क्रमशः लगा कर बिदा हो जाते थे। सबसे पहले मेमसाब, फिर बच्चे और आखिर में शाम ढलते ही साहेब का आगमन होता था। घर में चहल-पहल फिर शुरू हो जाती थी जो अगले दिन सुबह तक जारी रहती।


बंदा चीटू और भूखू की इस मूक सी दिखती दोस्ती को कई दिन से ग़ौर कर रहा था। बंदा इतना तो श्योर था
कि दोनों में किसी मूक भाषा में कुछ कुछ बात तो होती है। मगर उसकी समझ नहीं रहा था कि ये कौन सी भाषा है? बातें क्या होती हैं? यह जानने के लिये बंदे का कौतुहल इस सीमा तक बढ़ गया कि अचानक बंदे को कुत्तों की भाषा को समझने का दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया।

बंदे ने सुना कि घरेलू कुत्ता चीटू बता रहा था कि घर के पिछवाड़े में तीन ख़तरनाक बड़े भाई समान कुत्ते-लैबराडोर, बुलडाग और जर्मन शेपर्ड- भी लोहे की मोटी ज़ंज़ीरों में बंधे हैं। इन्हें सिर्फ़ रात के वक़्त खोला जाता है। चारों ओर गश्त करते हुये इस विशाल कोठी की रखवाली करते हैं...मैं घर के अंदर मेमसाब के पायताने सोता हूं...कभी-कभी साहेब कमरे में आते हैं तो मैं ना जाने क्यों दूसरे कमरे में बंद कर दिया जाता हूं...मैं ज्यादा भौंकता नहीं क्योंकि साहेब और मेमसाब दोनों की ज़बरदस्त डांट पड़ती है। सिर्फ़ बाहरवाले अंजाम लोगों पर
भौंको। यही सिखाया गया है...बच्चों का कमरा अलग है। वहां ज्यादा जाने की इजाजत नहीं है क्योंकि सब मुझसे खेलना शुरू कर देते हैं। गोदी में बैठा कर खूब प्यार करते हैं। इससे उनकी पढ़ाई डिस्टर्ब होती है...डाईनिंग टेबुल पर सब मिल कर नाश्ता करते हैं। मैं भी तब उस वक़्त उनके आस-पास मंडराता हूं। सब अपनी प्लेट से मेरी तरफ खाने का टुकड़ा फेंकते हैं, जिन्हें मैं उछल कर हवा में ही लपक लेता हूं। मेरे इस करतब पर बच्चे ताली बजाते हैं...सब आपस में अंग्रजी में बात करते हैं। मुझसे भी उसी भाषा में बात होती है। लेकिन मुझे हिंदी भी अच्छी आती है। क्योंकि घर के नौकर-नौकरानियां और हमारा ये सो रहा दोस्त वाचमैन हिंदी में बात करते हैं। ये बेचारे क्या जानें अंग्रेज़ी...मुझे तीन वक़्त भोजन मिलता है। दूध-रोटी और बाज़ार से लाया गया ग्रेनूल्स। बड़ा टेस्टी होता है। हफते में दो बार उबला हुआ मीट का कीमा भी...महीने में सब एक दफे पिक्निक पर भी जाते हैं। मुझे भी साथ ले जाते हैं। बताते हैं कि मेरे साथ जाने से परिवार का स्टेटस सिंबल ऊंचा होता है। वहां सब खूब खेलते हैं। संग में मैं भी...मौजां ही मौजां हैं...कभी तबीयत खराब हो जाती है तो डाक्टर हमें देखने घर आते हैं। शायद हमारे और इंसानों के अलग-अलग डाक्टर हैं। मझे नहलाने वाली आया को उस दिन वाचमैन बता रहा था कि मेमसाब को बोलो कुत्तों वाले डाक्टर आये हैं।


बाज़ारू कुत्ता भूखू ये सब सुन ईर्ष्या से भर उठता है। बताता है...हमें दिन भर खाने-पीने के लिये सारा दिन ईधर-उधर भटकना पडता है। हर छोटे-बड़े एैरे-गैरे की दुत्कार अलग से सुननी पड़ती है...ये बताते-बताते भूखू की आंखों में आंसू जाते हैं। फिर किसी तरह सहज होते ही बताता है...उधर मीट मार्किट है। वहां दूसरे कुत्तों के गैंग का कब्ज़ा है। फिर सात गली के बाद एक बड़ा मंदिर है...वहां एक बड़ा कुत्ता गैंग है। वो तो बहुत ही
खतरनाक है। हमें दूसरे गैंग के कुत्ते पास भी नही फटखने देते...इधर आगे-पीछे की कुल मिला कर तीन गलियां हैं अपुन के गैंग के अधिकार में। साहब लोगों की बाहर फेंकी गयी झूठन और जमकर चूसी गयी हड्डियां मिल जाती हैं जिन्हें चूसते-चूसते मुंह में खून जाता है। अपना ही खून चूस कर मजा लेते हैं। बताते हैं कि टेस्ट बढ़िया है...गर्मी हो या सर्दी या फिर बरसात, हमारी सेहत पर असर नहीं पड़ता। जहां भी जगह मिली पनाह ले ली। कभी सामने बनी मार्किट के बरामदे में या किसी पेड़ के नीचे। तुम्हारे साहेब की कार जब कभी बाहर खड़ी होती है तो उसके नीचे भी सुस्ताने का कभी-कभी मौका मिल जाता है...

भूखू उवाच जारी था...ये तुम्हारा वाचमैन बहुत ज़ालिम है। एक बार साहब को खुश करने के लिये इसने मेरे चूतड़ पर बड़ी जोर की लात मारी थी। कई दिन तक दर्द रहा...बीमार पड़ने पर या चोट लगने पर हमें कोई अस्पताल ले जाने वाला नहीं है। चोट वाली जगह को अपनी लार का लेप चाट-चाट कर लगाते है। उसी से ठीक
हो जाते है...हमें पकड़ने के लिये नगर निगम की एक कुत्ता गाड़ी आती है। तब हम सब छिपने के लिये इधर-उधर भागते है। एक दिन मैं भी पकड़ लिया गया था। सुना था गोली मार देंगे। मजबूत दिल वाले जोर जोर से भौंक कर विरोध कर रहे थे और कमजोर भूंउं-भूंउं करके रो रहे थे। मगर ऐसा कुछ नही हुआ। हमें थोड़ी दूर जाकर छोड़ दिया। जय हो करप्पशन बाबा की। गोली बाज़ार में बेच खायी। मैं किसी तरह ढूंढ़ता-ढांढ़ता यहां अपनी गली वापस गया...

...बचपन से लेकर आज तक हर कहीं दुत्कारे गये हैं दोस्त। प्यार क्या होता है? मालुम नही। हां, मां का प्यार थोड़ा-थोड़ा याद आता है। जब छोटा था तो चाट-चाट कर प्यार करती थी। बड़े होने पर मुझे यहां छोड़ कर जाने कहां चली गयी। सुना है सड़क के उस पार किसी गली में ठाठ कर रही है। वहां किसी कुत्तों के गैंग की रानी है। मन होता है जाकर मिल आऊं। मगर ट्रेफिक इतना ज्यादा है कि हिम्मत नही होती। पता है दो बार कोशिश कर चुका हूं। मगर दोनों बार ट्रक के नीचे आते-आते बचा। अब रिस्क लेने की हिम्मत नही है...

भूखू धारा प्रवाह बोल रहा था और चीटू सिर हिला-हिला कर बड़े ध्यान से सुन रहा था...यों ये तय है कि मरूंगा तो इक दिन ट्रक-बस के नीचे आकर ही। हम अपनी मौत मरते ही कब हैं? मौका ही नहीं मिलता! हममें से कोई किस्मत वाला ही पांच साल की ज़िंदगी जी पाता है। वरना ज्यादा से ज्यादा तीन-चार साल...मेरे पांच भाई-बहन थे। दो तो बचपन में ही मेरे सामने स्कूटर से टकरा कर मर गये। बाकी जाने कहां चले गये। कहीं मर-खप गये होंगे। आखिर कुत्ते ही तो हैं। मैं भी दो-ढाई साल का हो चुका हूं मेरा अंत कभी भी हो सकता है। क्योकि अब सड़क पार दूसरी दुनिया देखने को बहुत मन करता है। अगर एक दो-दिन ना दिखाई दूं तो समझ लेना कि परलोक सिधार गया। क्या मालूम सड़क क्रास करते हुए किसी बस-ट्रक के नीचे जाऊं...

....अगले जन्म में फिर शायद कुत्ते की योनि मिले। क्योंकि मैंने एक साहब को उस दिन कहते ही सुना था-कुत्ता है साला। देखना अगले सात जन्म तक भी ऐसे ही कुत्ता पैदा होगा...हां, हमें तब बड़ी खुशी होती है तब कोई आदमी दूसरे आदमी से कहता है-कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा... अबे तेरे से तो कुत्ता ही भला...तू कुत्ता है क्या? इतना दुत्कारा, डांटा, फिर भी कुत्तों की तरह दुम हिलाता हुआ चला आया।

ये सुनते-सुनते घरेलू कुत्ते चीटू की आंखों से आंसूं छलक पड़ते हैं, जो किसी को दिखाई नहीं पड़ते। बाज़ारू कुत्ता भूखू उसे चुप कराता है-जो हमने दासतां अपनी सुनाई तो आप क्यों रोये?...तब घरेलू कुत्ता चीटू कहता है- दोस्त तुम बड़े किस्मत वाले हो।...भूखू ये सुन हैरान होता है- वो कैसे भला?

चीटू बड़े कातर स्वर में बोला- तुम्हारे पास मां थी। मुझे तो मां याद ही नहीं। जब कुछ ही दिन का था तो मेरे ये साहेब मेरी मां के मालिक से मुझे खरीद लाये थे। आया बोतल से दूध पिलाती थी...मगर सबसे बड़ी बात तो यह है कि मरते ज़रूर अपनी मौत हैं। मगर बड़ी तकलीफ़ देह मौत होती है। अभी साल भर पहले की बात है।
हमारे घर में एक अल्सेशियन कुत्ता था। बहुत बूढ़ा हो गया था। बताते हैं बारह साल की उम्र थी। दिन-रात दर्द से कराहता था। डाक्टर कहता था कि इसे पैरालिसिस हो गया है और अर्थराईटिस भी ज़बरदस्त है। किडनियां भी तकरीबन काम नहीं कर रहीं है। लीवर फंक्शन भी इसी से अफेक्टेड है। मल्टीपल डीसीज़ है। तब साहेब ने उसे डाक्टर से कह कर ज़हर का इंजेक्शन लगवा कर दर्दभरी जिंदगी से छुटकारा दिला दिया था...तब उसे बोरे में डालकर नगर निगम की गाड़ी उठा कर जाने कहां ले गयी थी। तुम्हारी जिंदगी छोटी ही सही मगर अच्छी है, खुद की तो है ! भले ही खाने को कम मिले, मिले। जब तक जीते हो, जीने की आज़ादी तो है...

तभी एकाएक हड़कंप सा मचा। कहीं दूर से हार्न बजने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मेमसाब के आने की आहट थी ये। वाचमैन बाज़ारू भूखू को भगाने के लिये चीखा-अबे हट्ट...कुत्ता साला।


भूखू वहां से दुम दबा कर चुपचाप खिसक लेता है। इधर चीटू रूंआसा हो जाता है कि जाने कल भूखू के दर्शन होंगे कि नहीं। वो भगवान से प्रार्थना करता है कि भूखू को सबुद्धि मति देना कि वो सड़क क्रास नहीं करे।

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- वीर विनोद छाबड़ा
डी. 2290, इंदिरा नगर,
लखनऊ- 226016
मो. 7505663626

दिनांक 20.04.2014    

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