-वीर विनोद छाबड़ा
आज सुबह-सुबह एक मित्र आ धमके।
देखते ही आगबबूला हो गए। अब कितने दिन और पहनोगे? जब आता हूं यही काला
स्वेटर पहने दोहरी-तिहरी रज़ाई में घुसे दिखते हो। दस-बारह साल से देख रहा हूं। कब तक
पहनोगे? रिटायर करो।
मैं शून्य में निहारते हुए बताता हूं - दस बारह नहीं यार पूरे बाईस साल हो गए हैं।
मित्र थोड़ी देर तक बकर-झकर किये। चाय सुड़के और चलते बने। इस ताकीद के साथ कि अगली
बार आऊं तो ये पहने न दिखना।
उनके जाते ही मैंने कमरे में उनकी मौजूदगी से बने माहौल को फूं-फां किया। और अपने
स्वेटर की ओर मुखातिब हुआ - दोस्त, एक और पैदा हुआ तुम्हारा
दुश्मन। लेकिन तुम घबराना नहीं। कोई कुछ भी कहे। बाइस साल का लंबा सफ़र साथ-साथ तय किया
है हम दोनों ने। कोई मज़ाक नहीं। तुम्हें नहीं छोड़ सकता ऐ काले दोस्त। मेरे फेयर रंग
के साथ काला रंग बहुत मैच करता है। गोरे रंग पे इतना न गुमान कर.…मुझे ये बात कई लोगों
ने बताई। काले दिल वालों की काली नज़र से बचाया है तुमने। नज़र न लग जाये किसी की राहों
में.…पांच बार स्कूटर से गिरा हूं। तीन बार तो तुम्हीं थे मेरे तन पर।
मेरी फरमाइश पर मेमसाब ने तुम्हें रिकॉर्ड समय में बनाया। तुम एक मात्र आइटम हो
जो मेरी पसंद से बनाये गए और आज तक मेरी मर्ज़ी से मेरे घर में हो।
पहले दो साल तक मैं तुम्हें सिर्फ पार्टियों में पहनता रहा। लेकिन बाद में रेगुलर
पहनने लगा। ऑफिस में और बाहर भी। कई साल तक ये सिलसिला चला। तुम्हें मेरे तन पर देख
लोग आजिज़ आ गए। जलने लगे।
तुम मेरी पहचान भी बने। कोई बाहर से आता तो मातहत कहते - जाओ भैया देख लो किसी
फ्लोर पर कहीं विचर रहे होंगे। जो फुल आस्तीन काला स्वेटर मिले, समझना साहब इसी में
धरे हुए हैं।
जब एक से बढ़ कर एक नए स्वेटरों की आमद हो गयी तो पुराने पीछे चले गए। लेकिन पुराना
होने की बावज़ूब मैंने इसे छोड़ा नहीं। घर में पहनने लगा।