-वीर विनोद छाबड़ा
शाम का वक़्त। पार्क में रूचि के आधार पर भिन्न-भिन्न गुट। महिलाओं
के भी कई ग्रुप हैं।
एक महिला ग्रुप है बूढ़ी महिलाओं का। एक वृद्धा को व्हील चेयर
पर रोज़ाना उसकी बहु लेकर आती है। वहां पहले से ही कई उम्रदराज़ महिलाएं मौजूद हैं। वो
उस व्हील चेयर वाली वृद्धा को देखते ही ख़ुशी से लगभग उछल पड़ती थीं। उन्हें उसी का बड़ी
शिद्दत से इंतिज़ार होता है। वो इनकी रिंग लीडर है।
वृद्धा कहती है - अब तू जा बहु। दो घंटे बाद आना। मोबाइल कर
दूंगी।
आओ बहन, तुम्हारा ही तो इन्तिज़ार था। मेरे तो पेट में
बड़ी देर से दर्द हो रहा है। चलो अब कार्यक्रम शुरू करें। शिकायतों की पोटली खुलती है।
.…आज मेरी बहु ने हद कर दी.…रोटी को घी तक
नहीं दिखाया…मेरी वाली तुझसे बड़ी दुष्टा है। अपना पराठा मक्खन से चुपड़ती
है। मुझे कहती है, डॉक्टर ने ज्यादा चिकना-चुपड़ा देने से मना किया है…मेरी तो कहती
है आपकी आतों में पहले जैसी ताक़त नहीं है। नासपीटी कहीं की।
रोज़ाना एक जैसे मुद्दे और घंटनाएं। बस थोड़ा नमक-मिर्च कभी तेज
और कभी हल्का होता है।
बहु-पुराण में तक़रीबन दो घंटे बीत जाते हैं उन वृद्धाओं के।
मैं देखता हूं वो वृद्धाएं जब पार्क में घुसती हैं तो थकी-थकी सी होती हैं। लगता था
बस कुछ घंटों की मेहमान हैं। इच्छा मृत्यु की बात करती हैं। लेकिन परंतु बहु-पुराण
के दो घंटो में उनमें बला की एनर्जी और फुर्ती पैदा हो जाती है। भरपूर जीने की उमंग
पैदा होती है, सौ साल से एक दिन भी कम नहीं।
तभी उस व्हील चेयर वाली वृद्धा की बहु आ गयी। वो उसे देखते ही
अपनी मुख-मुद्रा एक कुशल अभिनेत्री की मानिंद बदल देती है। बहु की ओर बड़े प्यार-दुलार
देखती है - आ गयी मेरी बहु, मेरी सयानी बहु, मेरी अच्छी-अच्छी
बहु। बहुत ख्याल रखती है मेरा। बहु नहीं बेटी है यह मेरी। ईश्वर ऐसी बहु सबको दे। चल
बहु, घर ले चल मुझे। बड़ी भूख लगी है.…आज आइसक्रीम
खिला दे। बड़ी इच्छा हो रही है.…