- वीर विनोद छाबड़ा
किसी के भाग्य में
क्या लिखा है? उसे आसमान छूना है या गटर में गिरना है, इसकी स्क्रिप्ट तो
उसके पैदा होते ही लिखनी शुरू हो जाती है। यह बात अलबत्ता दूसरी है कि कोई इसी पढ़ नहीं
पाता। इसी को नियति कहते हैं। अब अमिताभ बच्चन को देख लीजिये। मन में ख्वाईश थी एक्टर
बनने की। लेकिन उनका ऊंचा कद और लंबी लंबी टांगें देख कर नहीं लगता था कि सिनेमा के
वो सुपर स्टार बनेंगे। साठ के दशक में सिनेमा में लंबू हीरो नहीं चलता था। मध्यम ऊंचाई
होनी चाहिए। हीरोईन को उसके कंधे तक पहुंचने में तकलीफ न हो। और दर्शक को भी लगे कि
हमारे बीच का ही कोई बंदा है।
एक दिन अमिताभ किसी
काम से बंबई आये। यह १९६० की बात है। किसी तरह जुगाड़ किया शूटिंग देखने का। आरके स्टूडियो
में 'छलिया' का सेट लगा था। मनमोहन देसाई की पहली फिल्म
थी वो। अब अमिताभ को क्या मालूम था कि सत्तर और अस्सी के दशक में इसी मनमोहन देसाई
की कई फिल्मों के वो हीरो बनेंगे। बहरहाल, जब अमिताभ अंदर घुसे
तो सामने प्राण साहब को पाया। सिनेमा के सबसे खूंखार विलेन। पाकिस्तान से आये ख़तरनाक
खान की भूमिका में थे वो और अपनी मुंहबोली हिंदू बहन की तलाश में भारत आये थे। अमिताभ
तो डर ही गए उनको देख कर। लेकिन जब ऑटोग्राफ लिया तो पता चला कि वो बहुत शालीन इंसान
हैं। अमिताभ बहुत इम्प्रेस हुए। अब उन्हें क्या मालूम था कि आगे चल कर प्राण साहब उनके
चमकीले भाग्य के विधाता बनेंगे। और एक नहीं पंद्रह हिट फ़िल्में साथ-साथ करेंगे।
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Pran & Amitbh in Don |
कई साल बाद अमिताभ
बच्चन ने किसी तरह से ख्वाजा अहमद अब्बास के 'सात हिंदुस्तानी'
से फिल्मों में एंट्री कर ली। इसके बाद बंसी बिरजू, रेशमा और शेरा,
एक नज़र और बॉम्बे तो गोवा भी कर लीं। लेकिन मज़ा नहीं आया। किसी बड़े प्रोडक्शन घराने
की तलाश में थे वो, जो उन्हें 'लिफ़्ट' करा दे।
इधर हसीना मान जायेगी,
मेला और समाधी के लगातार तीन हिट से कुप्पा हुए प्रकाश मेहरा सलीम-जावेद की लिखी
'जंजीर' की स्क्रिप्ट लिए घूम रहे थे। इस स्क्रिप्ट के एक और भी मालिक
थे - धर्मेंद्र। वास्तव में मूल मालिक भी वही थे। दोनों ने 'समाधी' में साथ-साथ काम किया
था। लेकिन धर्मेंद्र लंबे टाईम के लिए व्यस्त थे। उन्होंने मेहरा को स्क्रिप्ट बेच
दी।
प्रकाश मेहरा ने सबसे
पहले तो पठान की पावरफुल रोल के लिए प्राण को साईन किया। उन्होंने कभी 'छलिया' में प्राण को खान के
गेटअप में देखा था। तभी से मन में वो बसे थे। बस हीरो मिल जाए किसी तरह।
प्रकाश मेहरा देवानंद
के पास पहुंचे। आपकी रोमांटिक इमेज को बदल देगा यह रोल - एंग्री यंग मैन। आज मुल्क
को इसी की ज़रूरत है। लेकिन देव ने शर्त लगा दी - इसमें दो-तीन गाने डाल दो या फिर स्क्रिप्ट
मुझे दे दो। नवकेतन के बैनर तले फिल्म बनेगी और तुम उसे डायरेक्ट करना।
प्रकाश मेहरा उठ लिए
वहां से। मैं तो उन्हें काम देने आया था और वो मुझे ही काम दे रहे हैं।
अगला पड़ाव था - राजकुमार।
उन्हें बहुत पसंद आयी स्क्रिप्ट। खासतौर पर हीरो का रोल - 'जानी, फिल्मों में आने से
पहले हम पुलिस इंस्पेक्टर ही थे।' लेकिन उन्होंने भी शर्त लगा दी। फिल्म मद्रास
में शूट होगी। प्रकाश मेहरा तैयार नहीं हुए। फिल्म में बैकग्राउंड बंबई है।
इधर इंडस्ट्री में
मेहरा का मज़ाक उड़ने लगा कि दर्जनों हीरो इधर-उधर घूम रहे हैं, लेकिन इन्हें नहीं
मिल रहा है। प्राण साहब ने मेहरा का लटका चेहरा देखा। उन्होंने बताया - मेरे बेटे सुनील
के दोस्त का भाई है - अमिताभ बच्चन। उसकी 'बॉम्बे टू गोवा'
रिलीज़ हुई है। मैंने देखी नहीं। बेटा बता रहा था कि फाइट सीन बहुत ज़बरदस्त हैं।
सलीम-जावेद को लेकर
प्रकाश मेहरा फिल्म देखने चले गए। फाइट सीन देखते ही वे फिल्म छोड़ कर सिनेमाहाल से
बाहर आ गए। बहुत खुश थे वे - मिल गया हीरो।
जब अमिताभ बच्चन को
प्रकाश मेहरा साईन करने पहुंचे तो वो सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ 'आनंद' की शूटिंग कर रहे थे।
किसे मालूम था कि वर्तमान सुपर स्टार की मौजूदगी में भविष्य का सुपर स्टार साईन फ़िल्म
कर रहा है।
बाकी तो हिस्ट्री है।
लेकिन इस कहानी के साथ एक पुछल्ला भी है।
प्राण साहब आमतौर पर
अपनी फ़िल्में नहीं देखते थे। करीब बीस साल बाद उन्हें 'ज़ंजीर' देखने का संयोग हुआ।
फ़ौरन अमिताभ को फ़ोन मिलाया - दोस्त, बहुत अच्छा काम किया
था। बधाई।
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Published in Navodaya Times dated 21 Jan 2017
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