-वीर विनोद छाबड़ा
एक ज़माना था जब इंग्लैंड में क्रिकेट के किसी रोमांचक मैच की समाप्ति पर मैदान में दर्शकों का सैलाब उमड़ पड़ता था। कोई विकेट उखाड़ कर ले भागता था तो किसी खिलाडी का बल्ला। एक बार तो एक मनचला अंपायर की टोपी ले भागा था।
ऐसी ही घटना हुई थी २३ जून १९७५ को लॉर्ड्स में। ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के मध्य पहले एक दिवसीय वर्ल्डकप फाइनल का मुक़ाबला। बेहद रोमांचक नोट पर खत्म हुआ मैच। वेस्टइंडीज समर्थकों का हुजूम मैदान में कूद पड़ा।
ऐसा होना है, ये पुलिस को मालूम था। उन्होंने खिलाडियों और दोनों अंपायर को सुरक्षा घेरे में लेने की कोशिश की। लेकिन हुजूम का सुनामी इतना ज़बरदस्त था कि सुरक्षा घेरा एक बार तो छिन्न-भिन्न हो ही गया। बल्लेबाज़ डेनिस लिली और जेफ्फ थामसन मूलत: तेज़ गेंदबाज होने के कारण बच कर निकल भागे। लेकिन उम्रदराज़ अंपायर डिक्की बर्ड फंस गए। अच्छा हुआ कि वक़्त पर सुरक्षा पहुंच गए वरना डिक्की के पुर्ज़े-पुर्ज़े होने निश्चित थे।
लेकिन इस बीच मौका पाकर एक मनचला डिक्की की गोल्फ कैप ले उड़ा। डिकी को बहुत अफ़सोस हुआ। ये बड़ी खबर भी बनी।
दरअसल जितने मशहूर डिक्की थे उतनी ही मशहूर थी उनकी कैप भी। डिक्की को भी बेहद मोहब्बत थी अपनी इस कैप से। अब तक के ज्यादातर मैचों में उन्होंने यही कैप पहनी थी। ये कई रोमांचक मैचों की गवाह रही थी।
मज़बूरन उन्होंने दूसरी कैप खरीद ली। लेकिन पिछली कैप वो फिर भी नहीं भूल पाये। जिस किसी के सर पर गोल्फ कैप देखते, उन्हें शक होने लगता कि ये उन्हीं की हो सकती है।
कई रोज़ गुज़र गए। एक दिन वो घर जाने के लिए बस पर सवार हुए। कंडक्टर आया। डिक्की ने टिकट कटाया। तभी उनकी निगाह कंडक्टर के सर पे गयी। बिलकुल वही कैप पहने था वो। डिक्की के यकीन का कारण ये भी था कि वो कंडक्टर वेस्टइंडीज़ के नीग्रो मूल का था। उस दिन लॉर्ड्स के मैदान पर ख़ुशी के उन्माद में उमड़ा हुजूम उन्हीं का था।