वीर विनोद छाबड़ा
उस दिन भोर में बंदे के घर में ही नहीं आस-पड़ोस में भी हाहाकार मचा था। वजह-बिजली नहीं थी। अरे भाई, इतने परेशान क्यों हो? कोई नयी बात है क्या? ऐसा तो अक्सर होता है। एक-आध घंटे में आ जाएगी। तभी पड़ोसी पांडे जी ने गेट पीटते हुए बंदे को ललकारा-‘‘बाहर निकलिए। सो रहे हैं? मालूम है, ट्रांसफारमर दग गया है। अभी बम फूटने जैसी भयंकर आवाज़ हुई है। सुने नहीं? चैबीस घंटे लगेंगे। नहाना तो दूर पीने तक के लिए पानी नहीं है। नाश्ता-पानी भी नहीं बना है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाए है। नहाएंगे नहीं तो हम दफ़्तर कैसे जाएंगे? बताईए। हमारे तो इंनवर्टर की बैटरी भी लो है। बस टा-टा होने ही वाला है। आपका क्या? आप तो ठहरे रिटायर्ड बिजली बाबू। पावरफुल इंनवर्टर है आपके पास।’’ पांडे जी एक सांस में दिल की सारी भड़ास बंदे पर उड़ेल गए। बंदा पांडे जी को कुछ सांत्वना देता कि इस बीच पांच-छह पड़ोसी और आ गए। उनके तेवर देखकर बंदे को डर लगा कि कहीं पिट ना जाऊॅ!
भयाक्रांत बंदे ने ढांढ़स बंधाने की कोशिश की-‘‘भैया, मैंने ख़बर कर दी है सब-स्टेशन पर। एस0डी0ओ0 साहब से भी बात हो गयी है। वो ट्रांसफारमर का बंदोबस्त कर रहे हैं। चार-पांच घंटे में सब नार्मल हो जाएगा। और फिर देखिए, गर्मी भी कितनी भीषण है! घर घर में एसी-कूलर चैबीसों घंटे चलते हैं। ज्यादा लोड बर्दाश्त नहीं कर पाया होगा बेचारा ट्रांसफारमर।’’ वहां जमा हो चुकी छोटी सी भीड़ बंदे के स्पष्टीकरण से कतई संतुष्ट नहीं होती है। बंदे को बेतरह घूरा और बिजली विभाग के लिए चुनींदा अभद्र शब्दों का उवाच करते हुए विसर्जित हो गयी। बंदे के दिल पर साथ ही छुरी भी चली। बंदे के परिवारजन ने भी भीड़ के सुर में सुर मिलाया और बंदे को निशाना बनाते हुए बिजली वालों को जी भर कर कोसा।