- वीर विनोद छाबड़ा
सुंदर लेखनी का अपना महत्व है। यों हस्तलिपि विशेषज्ञ लिखावट की बनावट देखकर लिखने
वाले का मिज़ाज़, भूत, वर्तमान और भविष्य भी बता देते हैं। लेकिन हमारा तो सिंपल सा मंतव्य है कि सुंदर
लिखावट पढ़ने वाले का मन मोह लेती है। यदि आपने उनके मन के विरुद्ध भी कुछ लिखा है तो
सबसे पहले वो लिखावट की ही प्रशंसा करेगा, बाकी लानत-मलानत बाद में।
हमें कभी संदेह नहीं रहा कि सामान्य ज्ञान और बुद्धि चातुर्य में काफ़ी कमज़ोर रहे
हैं। लेकिन इसकी कमी को हमने सदैव अपनी सुंदर हैंड राइटिंग से पूरा किया। हमें याद है कि पाठशाला के दिनों में तख्ती पर सेठे
के क़लम से इसीलिए लिखवाया जाता था कि सुलेख मन को सकून देता है। हमारी सोच को भी प्रभावित
करता है। परीक्षा में कुछ नंबर भी जुड़ते थे। इसके लिए बाक़ायदा प्रतियोगिता भी आयोजित
होती थी। इसीलिए हम बड़े मनोयोग से नित्य तख्ती को धोते थे और फिर सफ़ेद मुल्तानी मिट्टी
से पालिश किया करते थे।
कई साल बाद हमने निजी कार्य हेतु एक पोर्टेबल टाईपराइटर भी ख़रीद लिया था। हिंदी
तथा इंग्लिश टाईप का भी हमें अच्छा ज्ञान था, लेकिन हाथ से लिखना सदैव हमारी पहली पसंद रही। ताकि पढ़ने वाले
को यह अहसास हो कि हमने बड़ी तबियत से लिखा है। उच्चाधिकारी हमारी हैंड राईटिंग के कायल
रहे। हम अख़बारों/पत्रिकाओं के लिए अपने ज्यादातर लेख हाथ से लिखे हुए ही भेजते थे।
करीब तीन साल पहले जब हमने कम्प्यूटर का ज्ञान प्राप्त किया, तब भी हमने पहले हाथ
से लिखा और फिर टाईप किया। लेकिन कुछ माह बाद हाथ से लिखना छोड़ सीधे टाईप करने लगे।
आज स्थिति यह है कि लिखने की प्रैक्टिस ही छूट गई है। चिठ्ठी लिखे तो मानो सदियां गुज़र
गई हों। मोबाईल पर बात तो ही जाती है। बैंक से पैसे निकालने के लिए ही पेन खोलते हैं।
लेकिन बैंक का बाबू एक बार में संतुष्ट नहीं होता, चेक पर दो-तीन बार
हस्ताक्षर करवाता है।
लेकिन कुछ लोगों की सोच हमसे बिलकुल उलट है।
हमारी एक मित्र हैं। सहकर्मी भी रही हैं। अब वो भी रिटायर हैं। उनका सामान्य ज्ञान
तो हमसे भी गया बीता है। लेकिन दुनियाबी ज्ञान भरपूर है। बड़ी ख़राब हैंडराइटिंग है उनकी, डॉक्टरों को भी मात
करती है। अपना लिखा पांच मिनट के बाद खुद ही नहीं पढ़ पातीं। मगर हाई स्कूल, इंटरमीडिएट और बीए आदि सब परीक्षाएं प्रथम प्रयास में ही उत्तीर्ण कर गईं। विभाग
की कठिन परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। यद्यपि मेरिट काफी नीचे रही। हम लोग अंदाज़ा लगाते
थे कि परीक्षक ज़रूर कभी न कभी किसी अंग्रेज़ी दवाखाने में केमिस्ट रहा होगा।
वो स्वयं अपने पास होने का श्रेय भी अपनी इस खराब हैंड राइटिंग को ही देती थीं।
परीक्षक ने सोचा होगा कि बेहतर है कि इसे इसी साल उत्तीर्ण कर दो, ताकि अगले साल फिर
इसी हैंडराइटिंग के पढ़ने का झंझट ख़त्म।
हमें उनकी बात में दम लगा क्योंकि उन्हें ऑफिस में लिखने-पढ़ने वाली सीट पर कभी
नहीं बैठाया गया। जिस भी बॉस के अंडर में उन्होंने काम किया उसने उन्हें जासूसी के
काम पर लगा दिया गया। जाओ ऑफिस की गली गली घूमो, देखो, सुनो और सूंघो कि हमारे
विरुद्ध क्या क्या षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।
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27-01-2017 mob 7505663626
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Lucknow - 226016
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