-वीर विनोद छाबड़ा
मित्रों, भारत सरकार ने 15 जुलाई से ‘तार‘ को इसकी उपयोगिता समाप्त हो जाने के कारण बंद कर दिया था। ग़म व खुशी और आपातकालीन स्थिति के कभी प्रतीक रहे गुलाबी रंग के तार का बंद होना भले बाध्यकारी था मगर हृदय विदारक घटना थी। एक इतिहास का अस्त होना था। इस इतिहास की बंदी के साक्षी बनने की गरज़ से हमने एक लेख तैयार किया था। दरअसल तार हमारे जीवन के कई मोड़ पर साथी रहा था या यों कहा जाए कि हमारे जीवन का तार ही तार से जुड़ा था। बहरहाल, लेख हमने एक बड़े अखबार में प्रकाशनार्थ प्रेषित किया। परंतु छपा नहीं। ज्ञात हुआ संपादक जी बाहर थे। परिणामतः तार को आखिरी लम्हों में श्रध्दांजलि अर्पित करने वालों की सूची में हम अपना नाम लिखवाने से वंचित हो गये। दिल के बहुत भीतर तक चुभन हुई ये। अब ऐसा मौका दोबारा तो कभी आएगा नहीं। पांच माह से ज्यादा गुज़र चुके हैं, मगर ये चुभन रह-रह कर परेशां करती है। आखिर सांसों से जुड़ा मामला जो ठहरा। इस लेख के निम्मांकित कुछ अंश आपसे शेयर कर कुछ हल्का होना चाह रहा हूं। इससे मोक्ष मिलने में भी आसानी होगी।
......अपना तो पैदाईशी रिश्ता रहा है तार से। सन 1950 की कड़ाके की ठंड में मां बनारस से अपने मायके अंबाला आयी थी, मुझे पैदा करने। पैदा होने की पहली ख़बर नाना ने पिताजी को तार से बनारस भेजी। फिर पिताजी ने तार द्वारा दिल्ली में रहने वाले बाकी रिश्तेदारों को ख़बर की... साठ के दशक में लखनऊ के चारबाग स्टेशन के सामने मल्टी स्टोरी, जो अब ज़मींदोज़ हो चुकी है, में रहते थे हम। रेलवे के दावा विभाग में कार्यरत पिताजी को सरकारी काम-काज़ से संबंधित ‘तत्काल’ सूचनाएं तार द्वारा हेड आफिस बनारस भेजनी पड़ती थीं। चारबाग़ स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म स्थित स्टेशन मास्टर आफिस के ऊपर था रेलवे का अपना तारघर। तारघर तक तार पहुंचाने का ज़िम्मा हम बड़े शौक से उठाते थे। तार बाबूओं को मोर्स कोड सिस्टम द्वारा मशीन पर टक-टक करके तार भेजते हुए एकटक देखना बहुत भाता था। संयोग से उनमें से एक तार बाबू हमारी मल्टी स्टोरी में ही रहते थे। उन्हें हम बड़े श्रद्धा भाव से देखते थे....
...पिताजी उर्दू अदीब थे। उन दिनों के मशहूर उर्दू रिसालों-शमा, बीसवीं सदी, रूबी, शायर, खिलौना, बानों आदि से अफ़साना फ़ौरन भेजने की गुज़ारिश तार द्वारा आती थी। इस लिए तार के नाम पर हम कतई बौखलाते नहीं थे... बिजली विभाग में नौकरी मिलने का तार भी तार से जुड़ा है। दरअसल लिखित परीक्षा में प्रश्न था - तार द्वारा छुट्टी बढ़ाने की अर्ज़ी कैसे भेजी जाएगी? अब तार का प्रारूप और इबारत तो हमारे दिलो-दिमाग में बचपन से समाई थी। लिहाज़ा कतई दिक्कत न हुई। हमें आज भी पक्का यकीन है कि इसी की बदौलत हम उतीर्ण हुए थे... तत्पश्चात टाईप परीक्षा हेतु हमें तार सें बुलावा भेजा गया। तार तो नहीं मिला। मगर भला हो बिजली दफ़्तर में कार्यरत मित्र रवि मिश्रा का जिसकी सूचना पर हम ऐन मौके पर टाईप टेस्ट हेतु हाज़िर हो गये... उन दिनों सरकारी दफ़्तरों में ज़रूरी सूचनाएं टेलीग्राम से भेजने का रिवाज़ था... नियुक्ति के बाद पहला कार्य भी टेलीग्राफिक रिमांडर टाईप करने को दिया गया...
....साढे़ छत्तीस साल की बिजली विभाग में सेवा कर रिटायर हुए दो साल गुज़र चुके हैं। टाईप टेस्ट हेतु भेजे गए तार का हमें अभी कल तक इंतज़ार था। अब तारबंदी के बाद ये इंतज़ार पूरी तरह ख़त्म हो गया... साथ ही ये आखिरी ख्वाहिश भी स्वाहा हो गयी कि बाद मरने की ख़बर तार से रिश्तेदारों को रवाना हो.....
मित्रों, आप भी अपना इतिहास खंगालिए। आपमें भी बहुत से होंगे जिनके जीवन का तार ’तार’ से जुड़ा होगा। अगर हां तो शेयर करिए। अभी तारबंदी की बरसी में वक़्त बाकी है।
मित्रों, भारत सरकार ने 15 जुलाई से ‘तार‘ को इसकी उपयोगिता समाप्त हो जाने के कारण बंद कर दिया था। ग़म व खुशी और आपातकालीन स्थिति के कभी प्रतीक रहे गुलाबी रंग के तार का बंद होना भले बाध्यकारी था मगर हृदय विदारक घटना थी। एक इतिहास का अस्त होना था। इस इतिहास की बंदी के साक्षी बनने की गरज़ से हमने एक लेख तैयार किया था। दरअसल तार हमारे जीवन के कई मोड़ पर साथी रहा था या यों कहा जाए कि हमारे जीवन का तार ही तार से जुड़ा था। बहरहाल, लेख हमने एक बड़े अखबार में प्रकाशनार्थ प्रेषित किया। परंतु छपा नहीं। ज्ञात हुआ संपादक जी बाहर थे। परिणामतः तार को आखिरी लम्हों में श्रध्दांजलि अर्पित करने वालों की सूची में हम अपना नाम लिखवाने से वंचित हो गये। दिल के बहुत भीतर तक चुभन हुई ये। अब ऐसा मौका दोबारा तो कभी आएगा नहीं। पांच माह से ज्यादा गुज़र चुके हैं, मगर ये चुभन रह-रह कर परेशां करती है। आखिर सांसों से जुड़ा मामला जो ठहरा। इस लेख के निम्मांकित कुछ अंश आपसे शेयर कर कुछ हल्का होना चाह रहा हूं। इससे मोक्ष मिलने में भी आसानी होगी।
......अपना तो पैदाईशी रिश्ता रहा है तार से। सन 1950 की कड़ाके की ठंड में मां बनारस से अपने मायके अंबाला आयी थी, मुझे पैदा करने। पैदा होने की पहली ख़बर नाना ने पिताजी को तार से बनारस भेजी। फिर पिताजी ने तार द्वारा दिल्ली में रहने वाले बाकी रिश्तेदारों को ख़बर की... साठ के दशक में लखनऊ के चारबाग स्टेशन के सामने मल्टी स्टोरी, जो अब ज़मींदोज़ हो चुकी है, में रहते थे हम। रेलवे के दावा विभाग में कार्यरत पिताजी को सरकारी काम-काज़ से संबंधित ‘तत्काल’ सूचनाएं तार द्वारा हेड आफिस बनारस भेजनी पड़ती थीं। चारबाग़ स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म स्थित स्टेशन मास्टर आफिस के ऊपर था रेलवे का अपना तारघर। तारघर तक तार पहुंचाने का ज़िम्मा हम बड़े शौक से उठाते थे। तार बाबूओं को मोर्स कोड सिस्टम द्वारा मशीन पर टक-टक करके तार भेजते हुए एकटक देखना बहुत भाता था। संयोग से उनमें से एक तार बाबू हमारी मल्टी स्टोरी में ही रहते थे। उन्हें हम बड़े श्रद्धा भाव से देखते थे....
...पिताजी उर्दू अदीब थे। उन दिनों के मशहूर उर्दू रिसालों-शमा, बीसवीं सदी, रूबी, शायर, खिलौना, बानों आदि से अफ़साना फ़ौरन भेजने की गुज़ारिश तार द्वारा आती थी। इस लिए तार के नाम पर हम कतई बौखलाते नहीं थे... बिजली विभाग में नौकरी मिलने का तार भी तार से जुड़ा है। दरअसल लिखित परीक्षा में प्रश्न था - तार द्वारा छुट्टी बढ़ाने की अर्ज़ी कैसे भेजी जाएगी? अब तार का प्रारूप और इबारत तो हमारे दिलो-दिमाग में बचपन से समाई थी। लिहाज़ा कतई दिक्कत न हुई। हमें आज भी पक्का यकीन है कि इसी की बदौलत हम उतीर्ण हुए थे... तत्पश्चात टाईप परीक्षा हेतु हमें तार सें बुलावा भेजा गया। तार तो नहीं मिला। मगर भला हो बिजली दफ़्तर में कार्यरत मित्र रवि मिश्रा का जिसकी सूचना पर हम ऐन मौके पर टाईप टेस्ट हेतु हाज़िर हो गये... उन दिनों सरकारी दफ़्तरों में ज़रूरी सूचनाएं टेलीग्राम से भेजने का रिवाज़ था... नियुक्ति के बाद पहला कार्य भी टेलीग्राफिक रिमांडर टाईप करने को दिया गया...
....साढे़ छत्तीस साल की बिजली विभाग में सेवा कर रिटायर हुए दो साल गुज़र चुके हैं। टाईप टेस्ट हेतु भेजे गए तार का हमें अभी कल तक इंतज़ार था। अब तारबंदी के बाद ये इंतज़ार पूरी तरह ख़त्म हो गया... साथ ही ये आखिरी ख्वाहिश भी स्वाहा हो गयी कि बाद मरने की ख़बर तार से रिश्तेदारों को रवाना हो.....
मित्रों, आप भी अपना इतिहास खंगालिए। आपमें भी बहुत से होंगे जिनके जीवन का तार ’तार’ से जुड़ा होगा। अगर हां तो शेयर करिए। अभी तारबंदी की बरसी में वक़्त बाकी है।
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