Wednesday, June 25, 2014

वो भूतनी के छा.…जी भौंक रहे हैं !

-वीर विनोद छाबड़ा

मैंने यूपी के पावर सेक्टर के हेडक्वार्टर शक्ति भवन में साढ़े छत्तीस साल गुज़ारे हैं। एक से बढ़ कर एक मुरहे बाबुओं और अफसरों से पाला पड़ा।
ऐसे ही एक जमुना जी (असली नाम नहीं) थे। मैं उप महाप्रबंधक था और वे मेरे अनु सचिव थे। कभी हम सब यूडीए थे। वरिष्टता के अनुसार कोई पहले प्रमोट हुआ तो कोई बाद में।
जमुना जी की खासियत यह थी कि जब भी सामने पड़ते तो मुंह से सारी चाशनी झर झर कर बहने लगती थी। इतना मीठा बोलते थे। लेकिन पीठ पीछे सबकी ऐसी काम तैसी किया करते थे। अपने कंधे का बोझ दूसरे पर डालने में महारथी थे।  
मैं उत्पादन निगम के मानव संसाधन और औदयोगिक संबंध का काम देख रहा था। नीचे के कर्मचारियों से लोग असंतुष्ट रहते थे। सब सीधे मेरे पास ही आते थे। उच्चधिकारिओं के फ़रमान भी आते थे कि फलां का केस जल्दी निकालो, शासन को जवाब जाना है या यूनियन वाले बवाल करने वाले हैं।
जमुना जी को मैं बुलाकर आदेश का पालन शीघ्रातिशीघ्र करने की हिदायत देता। वो मेरे  सामने बैठे कर अनुभाग में फ़ोन करते कि फलां केस फ़ौरन करो, छाबड़ा जी नाराज़ हो रहे हैं। कभी नाराज़ के स्थान पर बिगड़ने शब्द का भी प्रयोग करते थे।
मैं जमुना जी को अक्सर समझाता था कि ऐसा मत कहा करों कि मैं नाराज़ हो रहा हूं या बिगड़ रहा हूं। इससे स्टाफ पर विपरीत प्रभाव पड़ता है कि जैसे मैं कोई क्रोधी आदमी हूं। इससे स्टाफ और अफसर में दूरी बढ़ जाती है। लेकिन जमुना जी अपनी आदत से मज़बूर थे।
एक दिन ऊपर से फ़रमान कि फलां ट्रांसफ़र केस में माननीय मंत्री जी इंटरेस्टेड हैं। तुरंत अनुपालन सुनिश्चित हो।
मैंने जमुना जी को बुलाया और इस अर्जेंट फ़रमान से अवगत कराया। उन्होंने आदतन टेलीफोन उठाया तो मैंने कहा- नहीं आप स्वयं अनुभाग में जाएं और केस लेकर आएं। वो चले गए।

अचानक मुझे सूझा। मुझे भी अनुभाग में जाना चाहिए। मामला बहुत अर्जेंट है। लंच टाइम होने वाला है। सब भागने के मूड में होंगे। मेरी मौजूदगी में सब बैठे रहेंगे। इससे स्टाफ को अर्जेंसी का भी अहसास होगा और जल्दी मामला सुलट जायेगा।
मैं चल पड़ा। अनुभाग में पहुंचा। दरवाज़ा खोला तो देखा कि जमुना जी स्टाफ को मुख़ातिब होकर कह रहे थे - फलां केस जल्दी निकालो, वो भूतनी के छाबड़ा जी भौंक रहे हैं।
स्टाफ़ मुझे अचानक वहां देख कर हक्का-बक्का रह गया। फिर परंपरा स्वरुप आदर देने के लिए उठ कर खड़ा हो गया।
लेकिन जमुना जी को आभास नहीं हो पाया कि पीछे मैं खड़ा हूँ। वो धाराप्रवाह मेरे लिए असंसदीय शब्दों का प्रयोग कर रहे थे। मैं पीछे खड़ा ज़बरदस्ती मुस्कुरा रहा था। और कर भी क्या सकता था। दरअसल जमुना जी थे ही ऐसे। मुझे कोई खास हैरानी नहीं हुई।
बहरहाल, ऐसी स्थिति में स्टाफ की भी हंसी छूटनी स्वाभाविक थी।
लेकिन जमुना जी नहीं समझ पा रहे थे। स्टाफ में से एक ने उनको इशारे से बताना भी चाहा कि पीछे मैं खड़ा हूँ। लेकिन वो फिर भी नहीं समझ पाये।
अंततः मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा तो वो चौंके। पीछे मुड़े तो मुझे देखा तो पानी-पानी हो गए। उनकी स्थिति साप छछूंदर वाली हो गयी।
खैर, आधा घंटे में काम निपटाया। टेंशन को थोड़ा रिलीज़ करने के लिए चाय भी मंगाई गई। लेकिन मैं देख रहा था कि जमुना जी इस दौरान अत्यधिक ग्लानि से ओतप्रोत रहे। कुछ खास बोल भी नहीं पा रहे थे। बस जी सर, जी सर ही कर रहे थे।
मैं अपने कमरे में पहुंचा। जमुना जी मेरे पीछे-पीछे चले आये। और आते ही सॉरी सर, सर सॉरी और माफ़ी के अनेक शब्द, जो उन्हें उस वक़्त याद थे, कह डाले।
मैंने उन्हें समझाया कि कोई बात नहीं, काम के प्रेशर में ऐसा कभी कभी  होता है। आखिर हम सब साथ-साथ काम करने वाले हैं। यह भी यकीन दिलाया इस मुद्दे पर मैं कोई एक्शन नहीं लूंगा। उनकी एसीआर भी ठीक लिखूंगा।
लेकिन जमुना जी को इससे संतोष नहीं मिला। वो मेरे रिटायरमेंट तक मेरे साथ रहे। इस बीच वो बराबर शर्मिंदा रहे। मैंने उन्हें नार्मल करने की बहुतेरी कोशिश की। मगर ये हो न सका। मेरे रिटायर होने पर सबसे प्रसन्न व्यक्ति शायद वही रहे होंगे।
आज लगभग तीन साल हो गए हैं मुझे रिटायर हुए।
जब कभी किसी काम से शक्ति भवन जाता हूँ तो जमुना जी से मुलाक़ात ज़रूर होती है। अब वो मेरी पोस्ट होल्ड करते हैं यानी उप महाप्रबधक हैं। मेरे कमरे में मेरी वाली कुर्सी पर ही बैठते हैं। हो सकता है कि उनका कोई मातहत उनके लिए पीठ पीछे असंसदीय शब्दों का प्रयोग करता हो।
वो मुझे लगभग खींचते हुए अपने कमरे में ले जाते हैं। खूब आव-भगत करते हैं। और शर्मिंदा होते हुए फिर उस दिन की घटना के लिए माफ़ी मांगते हैं।
वो अभी तक उस ग्लानि के 'मोड' से बाहर नहीं आ पाये हैं।
मैं इतना ज़रूर उनसे कहता हूं कि याद रखें कि कहे हुए शब्द वापस नहीं आते। आप लाख कोशिश करें। इसलिए कहने से पहले आगे पीछे देख लिया करें।
कभी-कभी ऐसा होता है कि अनजाने में ही सही हम ऐसी ग़लती करते हैं जिसका अफ़सोस हमें ज़िंदगी भर रहता है। 

---

-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290, इंदिरा नगर
लखनऊ - 226016
मोबाईल 7505663626

दिनांक 26 6 2014  

No comments:

Post a Comment