-Vir Vinod Chhabra
हमें याद है कि हमारे परिवार में एक बच्चे को
'पंडत' अर्थात पंडित कहा जाता था। कारण यह था कि न
वो मीट-मच्छी खाता था और न ही अपशब्द बोलता था। और इन सबसे दूर रहने वाली बच्ची 'ब्राह्मणी' कहलाती थी।
खराब काम करने पर हमें 'मलिच्छ' की उपाधि से विभूषित किया जाता था।
हमारे सीनियर मित्र Ravindra Nath Arora रवींद्र नाथ अरोड़ा जी बताते हैं कि उन्होंने जब होश संभाला था तो उनकी पहचान 'शुक्ला जी' के बेटे के
तौर पर थी। कारण वही था कि उनके पिता पूर्णतया वेजेटेरियन थे। मदिरा से घृणा तो थी
ही, मदिरा सेवन करने वालों से भी दूर रहा करते
थे। सदैव ज्ञान-ध्यान और पांडित्य की बातें करते थे। गीता, रामायण और
महाभारत सहित अनेक पुराणों का भी ज्ञान था। धार्मिक मुद्दों के अलावा सोशल
समस्याओं पर भी लोग सलाह-मश्विरा करने आते थे। कर्म से पक्के
ब्राह्मण और विद्वता में पंडित जी थे।
नोट - कभी कभी आदमी
अपने कर्मों से पहचाना जाता है, धर्म और जाति सेकंडरी बात है।
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