Monday, August 7, 2017

हम गरीबों का हेल्थ बुलेटिन


- वीर विनोद छाबड़ा
चूंकि मैं बहुत बड़ा व्यापारी नहीं हूं। प्रशासनिक अधिकारी या वरिष्ठ लेखक नहीं हूँ और न नेता हूं। इसलिए मुझे अपना हेल्थ बुलेटिन खुद जारी करना पड़ता है।
आगे खबर यह है कि सेहत में सुधार के लक्षण हूं। चल-फिर रहा हूं। स्कूटी - कार चला लेता हूं। अब यह बात दूसरी है कि कहां के लिए निकला और कहाँ जा पहुंचा। मेरी दिमागी हालत भी ठीक ही है। इसका अंदाजा मैं इससे लगाता हूँ कि फेस बुक पर एक्टिव हूं, उंगलियां कुछ धीमे चलती हैं। लिखते लिखते कभी रुक जाती हैं। क्या लिख रहा हूँ? बार बार पढता हूं। मेरी इस हालत के कारण कोई मित्र मुझे सीरियसली लेने को तैयार नहीं है।
अपनी लिखी सेलेक्टिव पोस्ट्स डाक्यूमेंट्स और ब्लॉग में नहीं डाल रहा हूँ। बेटा आया हुआ है। उसने मुझे कई बार समझाने की कोशिश की। भांजे ने भी कई बार कोशिश की। वो रायबरेली में है। कभी कभी वो आ जाता है। मगर मैं भूल जाता हूँ। नई पीढ़ी के बच्चे हैं। फटाफट समझाया और निकल लिए। मेरी परेशानी की यह भी एक वजह है।
मुझे हैरानी होती है कि पहले कितनी सहजता से ये सब काम करता था मैं। बल्कि कई लोग मुझसे समझने आते थे।

पहले जैसे धाराप्रवाह विचार नहीं आते हैं। कोई सब्जेक्ट दिमाग में आता है तो इससे पहले कि मैं उसे नोट करूं कहीं गुम हो जाता है। फुर्र से उड़ जाते हैं। मजबूरन राजनीती की राह पकड़नी पड़ती है। यह तो चौबीस घंटे चलती है, रंग बदलती है। चलता हूं। अगला मेडिकल बुलेटिन कल लगभग कल इसी। मैं खुद ही बताऊंगा। इसी बहाने आईडिया हो जाएगा कि मेरे दिमाग की कितनी प्रोग्रेस हुई।
डॉक्टर कहता है सब ठीक हो जाएगा। माइनर सी प्रॉब्लम है। कल फिर जाऊँगा।
यह सब मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्यूंकि मुझे लगता है कि मेरा समय मेरे जाने के बाद आएगा। मेरी दुनिया तो यही फेस बुक है। मेरे पर कोई किताब या लेख लिखना चाहे तो उसको कुछ मटैरियल चाहिए होगा। यहीं फेस बुक पर ही मिलेगा। श्रीमान छाबड़ा जी अंतिम समय दिमागी अवस्था क्या थी। क्या सोचते थे और देश की आर्थिक और सामाजिक अवस्था के बारे में क्या विचार थे? इसके लिए कोई डॉक्यूमेंटरी विवरण और सबूत भी होना चाहिए। ऐसे में यह मटैरियल उपयोगी होगा। हा हा हा।
गुड नाईट। बाकी कल। इसी समय।
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०९ अगस्त २०१७

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