- वीर विनोद छाबड़ा
मोटे व थुलथुल आदमी को देख कर अनायास हंसी आती है। हालांकि कुछ का मानना
है कि यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। परंतु वास्तव में यह है विकृत सामाजिक मानसिकता
का प्रतीक। ऐसा आदमी किस मानसिक यंत्रणा को से गुज़रता होता है, यह वही जानता है। इनमें
विरले ही ऐसे रहे हंै जो अपने पर दूसरों को हंसता देखकर उनके साथ हंसे हैं। तीस से
पचास के दशक के हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े मोटे व थुलथुले तथा गोल-मटोल चेहरे वाले मशहूर
कामेडियन गोप ऐसी एक विरली शख्सियत थे। वह इस सच से भली-भांति परिचित थे कि वह हंसी
के पात्र हैं। हर किसी का मुंह बंद नहीं कर सकते। इसलिये उन्होंने बेहतर समझा कि भनभनाते हुए अपना खून जलाने की बजाये दूसरे की खुशी
में शामिल हो कर आनंद लूटो। माना जाता है कि उदास को हंसाना यों भी दुनिया का सबसे
मुश्किल काम है। हंसाने वाले ऐसे लोग खुद अंदर से भले ही बेइंतेहा तकलीफ से क्यों न
गुज़रते हों मगर दूसरों को हंसाना अपना पहला फर्ज़ समझते है। द शो मस्ट गो आन। इसका फ़ायदा
भी है कि दूसरों को हंसाने से अपनी तक़लीफ़ का अहसास कमतर होता जाता है। ये सारी बातें
शायद ये फ़लसफ़ा गोप की जिं़दगी की किताब को पढ़ कर ही किसी ने लिखा था।
गोप इतने मशहूर थे कि किसी मोटे आदमी को देखकर लोग कहते थे-‘‘वो देखो
गोप!’’ यानि गोप और मोटापा एक दूसरे के पर्याय थे। उनका जन्म 11 अप्रेल 1914 को हैदराबाद
सिंध (अब पाकिस्तान) के एक सिंधी परिवार में हुआ था। वो नौ भाई-बहन में से एक थे। उनका
पूरा नाम था गोप कमलानी। गोप ने ही साबित किया था कि खूबसूरत-दिलकश चेहरे व जिस्म भले
ही आकर्षण का केंद्र होते हैं, मगर दिलो-दिमाग पर छा जाने की कूवत सिर्फ़ मोटे-थुलथुले
जिस्म और बड़े गोल चेहरे में ही होती है। इनके चेहरे पर टपकता भोलापन कुदरत की नायाब
देन है जिससे इंकार करना मुश्किल है। दूसरा सच ये है कि ऐसे लोग पैदाईशी नेचुरल आर्टिस्ट
होते है। गोप को अपनी इस खूबी का पूरा अहसास था। इसीलिये वे कभी अहसासे-कमतरी का शिकार
नहीं हुए। बल्कि आईने में अपनी शक्लो-सूरत देखकर खुद पर हंसते ही नहीं फ़िदा भी रहते।
उन्हें दूसरों पर गुस्सा नहीं आता था। आता भी था तो भी लोग हंसते थे-क्या कमाल की कामेडी
कर रहा है गोप भाई!