Tuesday, July 22, 2014

क़लम की ताकत - हीरो को बनाया कुत्ता!

-वीर विनोद छाबड़ा

बात उस ज़माने की है जब फिल्में गूंगी थी। फिल्म का कथ्य और उसका असर डायलाग के ज़रिये की बजाय चेहरे की भाव-भंगिमाओं से नुमांया होता था। यानि आर्टिस्ट की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी। लेकिन इसके बावजूद सबसे ताकतवर स्टूडियो का मालिक होता था। दरअसल वो स्टूडियो का दौर
था। आर्टिस्ट, डायरेक्टर, लेखक और तमाम तकनीशियन आदि मासिक वेतन पर स्टूडियो के लिये अनुशासित सिपाही की तरह काम करते थे।

लेकिन बाज़ लोग कभी-कभी बेलगाम हो जाते थे। ऐसा ही एक हीरो था जो कभी वक़्त का पाबंद नहीं था और सेट पर सीन बदलवाने के लिये भी खासा बदनाम था ताकि कैमरे के सामने ज्यादा से ज्यादा उसका थोबड़ा रहे। मगर फिल्म का डायरेक्टर भी बड़ा कड़क और घाघ आदमी था। उसके हुक्म के बगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता था। स्टूडियो मालिक ने अनुशासन कायम करने की उसे कुछ भी करने के पूरे अख्तियार दे रखे थे। नाम था, होमी मास्टर। उसका डसा पानी भी नहीं मांगता था। इसलिये पीठ पीछे उसे ‘कालिया नाग’ कहा जाता था।

एक दिन उसने बेलगाम हो रहे हीरो को सबक सिखाने की ठानी। लेखक को बुलाया और हुक्म सुनाया - ‘‘अभी के अभी स्क्रिप्ट बदलो। सीन यों है। एक अंतर्यामी साधु बाबा की एंट्री करो। हीरोइन को होश नहीं है। वो अपने प्रियतम (हीरो) की याद में बेतरह डूबी है। उसने साधु बाबा की देखा तक नहीं। इस घोर उपेक्षा से क्रोधित साधु बाबा ने हीरोइन को श्राप देते हैं - तू जिसकी याद में खोयी है वो कुत्ता बन जाये। जा, अब तू कुत्ते से प्यार कर। हीरो का फिल्म से काम खत्म।’’


यह सुन कर लेखक सहित वहां मौजूद तमाम लोग हैरान और परेशान। यह कैसा अजीबो-गरीब फरमान? यह कैसी कहानी? क्या ऐसी फिल्म चलेगी? पब्लिक स्क्रीन पर जूता फेंकेगी, सड़े टमाटर आलू और अंडे भी। स्क्रीन फूंक देगी। स्टूडियो को भी खतरा है। तरह-तरह के संभावित नज़ारे पेश करके होमी मास्टर को खूब डराया गया, चेतावनी दी गयी। ताकि हीरो को श्राप से कुत्ता बनाने के सुझाव से बाज़ आयें। स्टूडियो मालिक से शिकायत हुई। मगर उन्होंने साफ़ कह दिया कि होमी मास्टर ही मुख्तार हैं। वो कुछ नहीं कर सकते।


इधर हीरोइन पसड़ गयी। हद दरजे की ज़िद्दी। कुत्ते से प्यार करूं ? नहीं, कतई नहीं। उसने ऊपर से नीचे तक सब जगह गुहार लगायी। रोते-रोते आसमान सिर पर उठा लिया। मगर होमी मास्टर ने एक न सुनी। बाहर का रास्ता दिखाया।

इधर हीरो को ख़बर हुई। आग-बबूला हो गया। मगर उसे मालूम था कि ईश्वर को मनाना आसान है होमी मास्टर के फैसले को पलटना नामुमकिन। जो कह दिया सो कह दिया, खुद की भी नहीं सुनने वाली नस्ल का आदमी। फिर भी खूब चिरौरी की। नाक रगड़ी। पूरी यूनिट जमा हो गयी। रहम-रहम की दरख्वास्त की।

मास्टर भी इंसान था। आखिरकार दिल पसीज उठा। मगर फैसला नहीं पलटा। हीरो को कुत्ता तो बनना ही पड़ेगा। वो सीन ज्यूं का त्यूं रखा। होमी काबिल आदमी थे। इसीलिए मास्टर कहलाते थे। चक्रव्यूह की रचना करना ही नहीं उससे बाहर निकलने का रास्ता भी जानते थे।

लेखक को बुलाया और फरमान जारी किया- ‘‘साधु की एक बार फिर एंट्री करो। हीरोइन गिड़गिड़ायेगी। माफ़ी मांगेगी। साधु बाबा तरस खा कर ढीले पड़ेंगे। और हीरोइन को श्रापमुक्त करने के लिये वरदान देंगे। हीरो को कुत्ते से इंसान बना देगें।’’ मास्टर के इस फैसले पर सबने वाह-वाह की। इसे कहते हैं- सबक सिखाना। सांप भी न मरा और लाठी भी नहीं टूटी। यह होती है क़लम की ताकत।

होमी मास्टर उर्फ़ कालिया नाग ने 1924 से 1949 तक 74 फिल्मों निर्देशित कीं व लेखन से जुड़े रहे। आज न ऐसा निर्देशक है और न लेखक जिसे हीरो-हीरोइन को अपनी उंगलियों पर नचाने की कला मालूम हो और अगर होगी भी तो हिम्मत नहीं।

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-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290, इंदिरा नगर,
लखनऊ - 226016
मोबाईल नं. 7505663626

दिनांक 23 जुलाई, 2014

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