Sunday, May 11, 2014

जलेबी बनाम समोसा बनाने वाला!

- वीर विनोद छाबड़ा

उस दिन सवेरे-सवेरे सारा दिन खराब करने के वास्ते बंदे के पड़ोसी सांभा जी धमके। सदैव की तरह उखड़े-उखड़े और गुस्से में सुर्ख। हाथ में लिया अखबार पटखते हुए बोले- “हम पहले ही कहा था। लोकतंत्र में कद्र लियाकत और इल्म की नहीं, तिकड़म और बाज़ीगिरी की है। सिर्फ़ कुतर्क बिकता है। हम कहता हूं आज ही निकल लो तीर्थ पर।’’ बंदे को मालूम था कि जब सांभा जी धाराप्रवाह बोलने के मूड में हों तो बीच में किसी अन्य को बोलने की इजाज़त नहीं होती। कोई हिम्मत भी नहीं करता। बीच में सिर्फ़ चाय पर चाय सुड़कते हुए सांस लेते हैं।

हां, तो सांभाजी फरमा रहे थे-‘‘बताईए, अब तो कभी जलेबी बेचने वाला मुखिया बनने का दावा ठोंक रहा है। बोलता है कि मुगलकाल में जलेबी में चाश्नी सिरींज से भरी जाती थी। चाश्नी में डूबो कर खाना उसके पुरखों ने
सिखाया। मां-बाप गाय-भैंस के तबेले में रहते थे। एक टाईम भूखा रहा। अमां यह चुनाव में वोट मांग रहा है या भीख। एक नंबर का झूठा है। अरे हम उसे बचपन से जानता हूं। बाप मिठाई वाला था। खूब बड़ी दुकान थी। कई बार छापा पड़ा। मिठाई में मिलावट पकड़ी गयी। बाप को पुलिस ने अंदर कर दिया। घूस देकर छूट गया। मिलावटी मिठाई बेच-बेच कर आलीशान महल खड़ा किया। हाहाकारी होटल बनवाया। कहता है अगर आपका प्यार मिला तो फिर से फुटपाथ पर जलेबी बेचेगा और वहीं सोयगा भी। फेंकता है, यार। यह क्या खाक जलेबी बनायेगा! इसे कुछ भी जानकारी नहीं। पेटू है यह। जलेबी-मिठाई बनाने का काम तो कारीगर करते हैं।’’

सांभाजी ने मेज थपथपायी- “आप कांटेक्ट करो उस अमरीकी कंपनी से जो मदारी को हीरो, पत्थर को पारस और रजनीकांत को सुपर स्टार बनाया। हम भी बचपन में कोई घास नहीं छीला। अगर ये जलेबी बनाता था तो इसके बगल वाली दुकान में हम समोसा बनाया था। समोसे में आलू कैसे घुसा? दर्जन भर अमरीकी शैफ आये थे हमसे जानने। हमीं बताया था कि समोसा आलू का ही नहीं कीमा, मटर, गोभी, छोले, भिंडी, लौकी, करेले का भी होता है। तब पांच लाख समोसा अमरीका एक्सपोर्ट किया था। तब यह जलेबी वाला चिरौरी करता था कि
समोसे के साथ हमारी भी जलेबी चलवा दो। हमारी ही सिफारिश पर पांच क्विंटल जलेबी का आर्डर जापानी दिया था। ये जलेबी क्या सोचता है सिर्फ इसी का अतीत है। हमारा इस जलेबी से ज्यादा गौरवशाली अतीत है। इसे खंगालिये तो कई उपन्यास, कहानियां, ट्रेजडियां, नौटंकिया, गीत झरझरा कर गिरेंगे। लिखूं तो सब कालजई बन जायेंगे। नोबुल प्राईज़ वाले ढूंढ़गे। हम खुद एक किवदंती बन जायें। इनके फिल्म और टीवी राईट्स पर तो करोड़ों डालर की बारिश हो जाये।’’

सांभाजी बदस्तूर जारी थे- “भईया एक इम्पार्टेन्ट प्वाइंट नोट कर लो। ईमानदारी किसी काम की नहीं अगर कायदे-कानून का तोड़ नहीं मालूम। हम इसी में मात खा गया और वो जलेबी आगे निकल गया। हमने तो समोसे पैक करने के लिये डिज़ाईनर लिफाफे भी खुद बनाया। हमें चुनो मुखिया तो दो रुपये में पाव भर वजन का समोसा बेचूंगा। रामकसम महंगाई को तेल खरीदने वालों की लाईन पर लगा दूंगा। जलेबी वाले को तो अपनी जलेबी फाईव स्टार होटल में बेचनी है। देखना जीता तो दाम बढ़ा देगा।’’

सांभा जी हांकते ही जा रहे थे। और बंदा सांभाजी उर्फ समोसा और जलेबी के अतीत को याद कर रहा था दोनों में गहरी दोस्ती थी। जब एक बार दोनों सिनेमा के टिकट ब्लैक करते हुए दबोचे गये थे। बड़ी मुश्किल से पुलिस के हाथ-पैर जोड़ कर इनके बाप छुड़वा कर लाये थे। समोसे को सद्बुद्धि आयी तो लिफाफे बनाने लगा ताकि फिल्म देखने का चस्का पूरा हो सके। पढ़ता भी खूब था। बी00 कर गया। बढ़िया नौकरी मिल गयी। क्लास वन पोस्ट से रिटायर हुआ। बढ़िया निजी मकान है। मोटी पेंशन है। भारी बैंक बैलेंस है। फिर भी जाने क्यों....

तभी सांभा जी का समोसा पार्ट-टू एक्टशरू हो गया- ‘‘डिसाईड कर लिया है कि हम भी चुनाव लड़ूंगा। ये हमारी नहीं समोसा भैया की इच्छा है। वो सपने में आता है कि भैया हमें सस्ता करके घर-घर पहुंचा दो। बेरोजगारी समस्या छू-मंतर हो जायेगी। बेरोजगार घर-घर, गली-गली और शहर-शहर समोसा बनाएंगे। सारी दुनिया में
एक्सपोर्ट करेंगे। अगर दुश्मन ने ललकारा तो समोसे में बारूद भरकर उस पर फेंकेंगे। सारी दुनिया में हमारे समोसे की दहशत होगी। अरे चांद पर तो क्या मंगल तक समोसा पहुंचा देंगे। जो काम रजनीकांत नहीं कर पाया हमारा समोसा कर देगा।’’

तभी सांभाजी को बंदे का छोटा सा सफेद पैमेरीयन कुत्ता डिक्की दिख गया। सांभा जी और किसी भी ब्रांड के कुत्ते को एक-दूसरे से सख्त एलर्जी है। सांभाजी मारे डर कर थर-थर कांपने लगे। फिर झट से बंदे से लिपट गये। बंदे ने डिक्की को बामुश्किल संभाला और जंजीर से किनारे बांध दिया। जंजीर से बंधा डिक्की लगातार सांभा जी को घूरे जा रहा था। बंदा समझ गया कि अब सांभा जी ज्यादा देर नहीं रुकेंगे। कुत्ता उनकी कमजोरी है। सांभा जी दुम दबा कर किसी तरह वहां से खिसक लिये।

बंदे को अच्छी तरह मालूम है कि जो गरजते है, बरसते नहीं। सांभाजी उर्फ़ समोसा और जलेबी इसका नमूना हैं। खरीद कर ये जलेबी खाते हैं और समोसा। फ्री का मिले तो इतना डकारें कि तीन दिन जुगाली करते घूमें। नज़र बचा कर जेब में भी भरने से नहीं चूकते। सालाना मोटी आमदनी है। खर्चने और प्यार में लुटाने के लिये मोटा खुला दिल होना चाहिये। जो इनके पास है नहीं।

-----
- वीर विनोद छाबड़ा
डी0 - 2290, इंदिरा नगर
लखनऊ - 226016
मोबाईल 7505663626

दिनांक  12. 05. 2014                                                                   

No comments:

Post a Comment