- वीर विनोद छाबड़ा
बंदा पहले ही क्लीयर कर दे कि न तो उसे राम से कोई शिकायत है और न गांधी से। मगर जबसे सुना कि फलां नेता ने गांधी का रामराज्य लाने का संकल्प लिया है तो कन्फ्यूज़न हो गया। राम के
राज्य और गांधी के रामराज्य में कोई अंतर है क्या? कुछ भी हो हमें तो अपने राम से मतलब। हैरानी है कि ये किस रामराज्य की बात हो रही है? यहां तो आलरेडी सब कुछ रामभरोसे चल रहा है, ज़िंदगी भी और सिस्टम भी।
अब देखिये, शहर की सड़कें कितनी टूटी-फूटी हैं!
कुछ एक्सपर्ट बताते हैं कि यहां गड्डों में सड़क बनी है। ये सड़कें प्रसूती अस्पताल भी जाती हैं। कुछ
ज़िंदगियां तो इन टूटी-फूटी सड़कों के कारण प्रसूती अस्पताल पहुंचने से पहले ही गर्भ में दम तोड़ देती हैं, वो दुनिया देख ही नहीं पाती हैं। और हम कहते हैं-
अब रामजी को ही यही मंजूर था तो टूटी सड़क का क्या दोष? हर जगह धूल-मिट्टी है, जो उड़-उड़ कर टनों की मात्रा में फेफड़ों में समाती है। हम सब बेतरह खांसते हैं। फिर भी रामभरोसे जी ही रहे हैं।
शहर भर के हलवाई गंदा पानी और बचा-खुचा सड़क पर फेंकते हैं। जनता जनार्दन भी घर का कूड़ा और झूठन बाहर डालती है। आवारा कुत्ते, गऊमाता व बैल यहां दिन भर दावत उड़ाते हैं। सीवर और पानी की लाईन जादू-मंतर से किसी स्थान पर संगम करते हैं। ये स्थिति हर शहर की हर गली-सड़क की है। सरकार को चिंता नहीं। रामभरोसे पर सिस्टम चल जो रहा है। पड़ोसी बबूआ बोल रहा है कि नेताजी के रामराज्य में नानवेज नहीं होगा। सूअर, बकरी, मुर्गी और बत्तख भी सड़क पर खुलेआम विचरेंगे। कुत्तों की मौजां ही मौजां होगी। कोई भी कुत्ता, चाहे आलतू हो या फालतू, जब चाहे किसी की मुर्गी दबोच लें। सब एक-दूसरे से भिड़े रहेंगे। मेरी मुर्गी, तेरा कुत्ता। फालतू की टेंशन रहेगी। हरे राम!
नेता जी को बोलो हम ऐसे ही भले हैं।
अभी कुछ दिन हुए कि एक मशहूर ब्रांड का दूध मिलावटी मिला। अभी तक बंदा यही सोचे था कि कम से कम सरकार का यही ब्रांड बचा है जो राम नाम की रपूटेशन पर नहीं चल रहा है। अब ये भरोसा भी खत्म। अब तो आंख बंद करके केला छीलने में भी डर लगता है। स्वाद व मिठास तो बरसों
से ही सारे फलों में से गायब है। बंदा इसी पर इत्मीनान करके बैठा है कि राम जी की कृपा से मिल तो रहा है। वरना एक ज़माना था जब बाजार से गेहूं, घी, तेल, चीनी, साईकिल का टायर वगैरह रोजमर्रा के अनेक आईटम गायब थे। अमरीका का लाल गेहूं पी0एल0 480 और आस्ट्रेलिया वाला सफेद वाला गेहूं राशन पर मिलता था। घी और चीनी भी। खूब लंबी-लंबी दुकानें लगती थी। फिर रामजी की कृपा हुई कि दिन अच्छे आये और सब कुछ प्रचुर मात्रा में मिलने लगा। महंगा है तो क्या मिल तो रहा है। दूसरे का महंगा माल खरीदने हो तो अपना माल महंगा कर दो। सरकारी बाबू का महंगाई भत्ता तो सरकार बढ़ाती ही रहती है। ये रामजी की कृपा है कि टमाटर, गोभी आदि तमाम बेमौसमी सब्जियां अब तो सारे साल मिल जाती हैं। महंगी होने के कारण इन्हें रोज़ भले खरीद न सकें, मगर शादी आदि की दावतों में तवे पर भरपूर दिखती हैं।
अब देखिये न सड़क पर बेशुमार कारें, बाईकें-स्कूटरें, आटो-टेम्पो की चिल्ल-पौं और रात में इनकी तेज हेडलाईट्स। अच्छे चंगे आदमी का दिमाग खराब हो जाये। किसी तरह जान की सलामती के लिये राम-राम कहते घर पहुंचते है। अभी कुछ दिल पहले बंदा गोरखपुर से वाया बस लौटा था। ड्राईवर के बगल वाली सीट पर था बंदा। घुप्प अंधेरा था। सामने से आ रहे वाहनों की हैडलाईट्स से आंखें चैंधिया रही थीं। कुछ भी दिखता नहीं था। मारे डर कर आंख बंद कर राम जी को याद करना शुरू कर देता था। लेकिन ड्राईवर पर कोई असर नहीं था। वो मजे से गाड़ी चलाता रहा। एक ढाबे पर बस रुकी। बंदे ने हैरत से पूछा-
‘‘हैडलाइट्स के विरूद्ध कुछ दिखता है तुम्हें? बस कैसे चलाते हो?’’
वो मुस्कुराया। बीड़ी सुलगाई। बोला-‘‘सब राम भरोसे है जी।’’
सुन कर कलेजा मुंह पर आ गया-
‘‘यानी सारे यात्रियों की ज़िंदगी राम भरोसे चलती है?’’
वो हंसा-
‘‘तजुर्बा भी कोई चीज होती है जी। रोज का आना-जाना है। कहां गड्डा, कहां खाई? कहां सड़क चौड़ी, कहां संकरी? सब मालूम रहता है रामजी की कृपा से। जिस दिन उनकी कृपा हटी ज़िंदगी खत्म!’’
बंदा कराह उठा-
‘‘मगर तुम्हारे साथ हमारी ज़िंदगी का
राम जी क्या करेंगे? हमारा क्या कसूर है?’’
वो जवाब में सिर्फ़ हंस दिया था। जोरदार
अठ्ठहास। बंदे को यमराज जी का वीभत्स अठ्ठहास करता हुआ किरदार याद आ गया था जो उसने कुछ दिन पहले एक फिल्म में देखा था।
अब जब से सुना है कि राम-राज्य आ रहा है तो बंदा सोच रहा है कि फर्क क्या पड़ेगा? यहां तो सिस्टम आलरेडी रामभरोसे चल रहा है, यहां तक कि जिंदगी, सड़क, घर, खाना-पीना, अस्पताल तक। जो बचा-खुचा है अगर वो भी राम भरोसे हो गया तो बेड़ा पार होने की जगह असमय डूब जायेगा। जिस राम को हम जानते हैं और जिनके भरोसे सब कुछ चल रहा है, क्या उससे बड़े या अलग रामजी के राज्य को लाने की बात हो रही है?
बहरहाल, कोई आये या जाय, हमारी बलां से। बस चलती रहे ज़िंदगी। मौजूदा से बेहतर न कर सको तो कम से कम बद्दतर न करना। आप सुन तो रहे हैं न मेरे राम जी?
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-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290 इंदिरा नगर
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दिनांक 14. 05. 2014
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