सिनेमा
वीर विनोद छाबड़ा
मूंछें हो तो नत्थूलाल जैसी वरना न हों...। आपको प्रकाश
मेहरा की ‘शराबी’ (1985) में अभिताभ बच्चन का यह डायलाग अच्छी तरह याद होगा। जन-जन
की जुबान पर चढ़ा था ये। तब तो यह भी याद होगा कि अमिताभ ने इसे नत्थूलाल का चरित्र
जी रहे मुकरी के लिये बोला था। नत्थूलाल का यह चरित्र और इतना
लोकप्रिय हुआ था कि प्रकाश
मेहरा ने अपनी अगली फिल्म ‘जादूगर’ में भी मुकरी और उनके नत्थूलाल के चरित्र को रिपीट
किया। जादूगर तो शराबी जितनी नहीं चली। मगर मुकरी नत्थूलाल ज़रूर पहले की तरह पसंद किये
गये। दो राय नहीं कि मुकरी के नत्थूलाल को आसमान तक की बुलंदियों तक पहुंचाने में अमिताभ
के अभिनय का भी कमाल था। लेकिन यह मुकरी की एक शानदार एक्टिंग के बिना मुमकिन नहीं
था।
अमिताभ बच्चन
के साथ भी मुकरी की जोड़ी खूब जमी। ‘शराबी‘ से पहले ‘अमर अकबर अंथोनी’ में मुकरी छह
बेटियां के सख्त बाप तैयब अली थे। वो अकबर (ऋषि कपूर) के अपनी डाक्टर बेटी नीतू सिंह
से निकाह के सख्त खिलाफ थे। अकबर के दोस्त अंथोनी (अमिताभ बच्चन) ने एक मजेदार गाना
गाया- तैयब अली प्यार का दुश्मन हाय हाय...यह सुपर हिट रहा। मुकरी को लोग तैयब अली
के रूप में पहचानने लगे। फिल्म में अमिताभ और मुकरी के कई और भी मजेदार सीन थे। इस
फिल्म के सुपर डुपर हिट होने के जो कारण चिन्हित किये गये तो उसमें अमिताभ-मुकरी के
तमाम सीन का ज़िक्र भी हुआ।
05 जनवरी
1922 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के अलीबाग में जन्मे मुकरी का असली नाम मोहम्मद उमर
मुकरी था। मुकरी बांबे टाकीज़ में सहायक निर्देशक थे। दिलीप कुमार की ‘प्रतिमा’ की शूटिंग
चल रही थी। बांबे टाकीज़ की मालकिन मशहूर अभिनेत्री देविका रानी अक्सर मुकरी को देखा
करती थीं। उनका छोटा कद, गोल-मटोल चेहरा और सहज दंतविहीन मुस्कान देखते ही देविका रानी
हंसे बिना न रहती। मुकरी को देखते ही उनकी टेंशन हवा हो जाती। वो सोचती कि यह आदमी
कैमरे के पीछे की बजाये परदे पर ठीक रहेगा। इसमें दूसरों को बिना बोले ही हंसाने की
भरपूर कूवत है। बस मुकरी परदे पर आ गये। उनको ज्यादा संवाद बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
दर्शक निहाल हो गये। ऐसा नहीं था कि उनके मुंह में दांत नहीं थे। थे, पूरे बत्तीस।
लेकिन कुदरत ने ऐसा चेहरा-मोहरा दिया कि मुंह खोल कर हंसने पर भी कभी दांत नहीं दिखे।
दिलीप के साथी थे मुकरी उस फिल्म में। जल्दी ही फिल्म में ही नहीं रीयल लाईफ में मुकरी
दिलीप कुमार के दोस्त बने। यह दोस्ती ताउम्र कायम रही। दिलीप की हर फिल्म में मुकरी
का होना ज़रूरी हो गया। दिलीप के साथ उनकी यादगार फिल्में रहीं- अनोखा प्यार, आन, अमर,
कोहिनूर, आज़ाद, गंगा जमुना, राम और श्याम, बैराग, गोपी, विधाता, कर्मा, इज़्ज़तदार आदि।
मुकरी ने लगभग
600 फिल्मों में काम किया। यह दर्शाता है कि मुकरी का फिल्म इंडस्ट्री में योगदान कितना
महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने अपने लिये एक निश्चित मुकाम बनाया था। पचास, साठ और सत्तर
के दशक में कोई फिल्मकार ऐसा नहीं था जो मुकरी को फिल्म में कास्ट करने के लिये लालायित
न रहा। फिल्म की कहानी में
मुकरी के लिये भले ही गंजाईश नहीं रही मगर फिल्म में उनकी
जगह पक्की रही। मुकरी का काम फिल्म में चाहे छोटा रहा हो या बड़ा, महत्वहीन हो या महत्वपूर्ण,
जैसा भी रहा उन्होंने बड़े दिल से और पूरी ईमानदारी से निर्वाह किया। यही कारण है कि
उनकी परदे पर जब तक मौजूदगी रही, दर्शकों का ध्यान खिंचती रही। उन्होंने कभी ये नहीं
देखा कि फिल्म बड़ी है या छोटी, स्टंट है या पौराणिक कास्टयूम ड्रामा। यह भी नहीं देखा
कि फिल्म में नामी गिरामी सितारे हैं या छोटे-मोटे। भूमिका अच्छी लगी तो कभी मना नहीं
किया।
मुकरी परदे से
बाहर की दुनिया में भी बहुत मजेदार आदमी थे। एक बार ‘आन’ की शूटिंग के लिये गधे की
ज़रूरत पड़ी। चारों और बंदे दौड़ाये गये। पर गधा नहीं मिला। निर्माता-निर्देशक महबूब खान
झल्ला कर बोले- क्या वाकई दुनिया में गधों का अकाल पड़ गया है या मैं ही ऐसा सबसे बदकिस्मत
आदमी हूं जिसके नसीब में एक गधा तक नहीं है। वहीं मुकरी भी खड़े थे। अनायास ही उनके
मुंह से निकला- ऐसा न कहिए हुजूर। इस बंदे में गधा बनने की सारी खूबियां मौजूद हैं।
दिलीप कुमार के भाई रंजन-नसीमबानो के साथ ‘बागी’ बना रहे थे। अचानक हल्ला हुआ कि पानी
में किसी ने गंदगी मिला दी है। इसे कोई न पिये। तब मुकरी ने कमान संभाली और सबसे पूछते
फिरे की कि ‘इरीगेटेड वाटर सप्लाई’ कहां से मिलेगी। महीनों तक लोग मुकरी से चुहल करते
रहे- मुकरी भाई, इरीगेटेड वाटर मिला कि नहीं। मुकरी का हाथ अंग्रेजी में काफी तंग रहा।
उन्हें इसका इल्म था। मगर इसे लेकर काम्पलेक्स कतई नहीं था। बल्कि वो अपने इस अज्ञान
पर लुत्फ उठाने की पहल खुद ही करते। सेट पर फन्नी किस्म की इंग्लिश बोल कर सबको हंसाते
रहते। अमिताभ बच्चन ने ‘नमक हराम’ में इंग्लिश इज ए फन्नी लैंग्वेज...आई कैन टाक इंग्लिश,
आई कैन वाक इंग्लिश... बोल कर खूब वाहवाही लूटी। यहां वो शायद मुकरी से ही प्रेरित
थे। सुनीलदत्त के अंजता आर्टस के स्थाई सदस्य थे मुकरी। एक कार्यक्रम में धन्यवाद देने
के लिये मुकरी मंच पर खड़े कर दिये गये। वो इसके लिये कतई तैयार नहीं थे। कार्यक्रम
के चीफ गेस्ट विदेशी राजदूत थे। लिहाज़ा स्पीच अंग्रेजी में होनी थी। मुकरी अपने साथ
हुई शरारत को समझ गये। परंतु घबराये नहीं। पूरे आत्म विश्वास से चिर परिचित अंदाज़ में
अपनी फन्नी अंग्रेजी में बोले- ‘‘सर, वी होप यू एनजाय प्रोग्राम। वी टू एंज्वाय यू।’’
ये सुनते ही चीफ गेस्ट सहित सभी हंसते हंसते लोट पोट हो गये।
मुकरी की जोड़ी
सिर्फ दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन के साथ ही नहीं बल्कि कई दूसरे कलाकारों के साथ
भी हिट रही। जानी वाकर के साथ मुकरी ने 15 फिल्में की। शेख मुख्तार का कद और शख्सियत
सवा छह फुटा थी जबकि मुकरी बामुश्किल साढ़े चार फुटे। दोनों दर्जनों फिल्मों में साथ
रहे। इसमें सबसे चर्चित फिल्में थीं ‘बड़ा आदमी’ और ‘उस्ताद पेड्रो’। हालीवुड के लारेल
हार्डी के समान इनकी भी लोकप्रियता थी। हंसाने के लिये एक महमूद ही इतने भारी पड़ते
थे कि हीरो भी बेकार दिखने लगता था। लेकिन कामेडी में तड़के के लिये मुकरी के बिना उनका
भी काम नहीं चलता था। अनगिनित फिल्में की दोनों ने साथ साथ। किशोर कुमार भला क्यों
पीछे रहते। ‘पड़ोसन’ और ‘साधु और शैतान’ में किशोर कुमार की संगीत मंडली मुकरी के बिना
अधूरी रहती। अपने दौर के तकरीब सारे मशहूर कलाकारों के साथ काम किया। सिर्फ दिलीप कुमार
अमिताभ व सुनील दत्त ही नहीं राज कपूर, देवानंद, संजीव कुमार और प्राण भी मुकरी के
गहरे मित्र रहे हैं।
मुकरी की कुछ
अन्य चर्चित फिल्में हैं- परदेस, सजा, मिर्जा गालिब, मदर इंडिया, कालापानी, अजी बस
शक्रिया, कै़दी नंबर 911, काली टोपी लाल रूमाल, बरखा, अनाड़ी, बेवकूफ, अनुराधा, मनमौजी,
असली नकली, फूल बने अंगारे, आशिक, बहुरानी, पूजा के फूल, मेरा साया, दादी मां, सूरज,
मिलन, फर्ज़, मेहरबान, अनीता, राजा और रंक, इज्जत, पिया का घर, अनोखी रात, चिराग, सुहाना
सफर, देवी, बचपन, प्रेम पुजारी, मस्ताना, लाखों में एक, पारस, हंगामा, बांबे टू गोवा,
हीरा, लोफर, नया दिन नयी रात, अर्जन पंडित, फकीरा, साहेब बहादुर, गंगा की सौगंध, दि
बर्निंग ट्रेन, कर्ज़, उमराव जान, नसीब, लेडीज़ टेलर, लावारिस, खुद्दार, हवालात, काश,
गंगा जमंना सरस्वती, राम लखन, दाता, गैर कानूनी आदि। मुकरी को कभी हीरो के लिये विचारित
नहीं किया। छोटे कद के गोल मटोल वालों के लिये फिल्म इंडस्ट्री हमेशा बेरहम रही। क्या
उनके सीने में दिल नहीं होता? हीरो की तरह हीरोईन संग बाग-बगीचों में पेड़- पौधों के
पीछे छुप छुप कर उनका भी दिल गाना गाने के लिये करता है। उनकी मोहब्बत मज़ाक नहीं सीरीयस
भी हो सकती है। लेकिन मुकरी को इसका कभी मलाल नहीं रहा। उनको अपनी सीमाओं का ज्ञान
था।
मुकरी के अंतिम
दिन शारीरिक कष्ट में गुज़रे। उनके गाल ब्लैडर में तकलीफ़ थी। इसका आपरेशन भी हुआ। मगर
इसके बावजूद उनकी तकलीफ बनी रही। उन्हें अक्सर बुखार रहने लगा। इस दौरान एकता कपूर
ने एक सीरीयल में उन्हें एक महत्वपूर्ण भूमिका का आफर दिया। मगर मुकरी ने मना कर दिया।
वो नहीं चाहते थे कि उनकी खराब सेहत के कारण एकता को शूटिग कैंसिल करके आर्थिक नुक्सान
उठाना पड़ा। पार्टियों में मोटा शाल ओड़ कर जाते। तकलीफ़ बढ़ती ही रही। अस्पताल में भर्ती
होना पड़ा। उनके पारिवारिक मित्र दिलीप कुमार, सायरा बानो, जानी वाकर हर वक्त साये की
तरह उनके साथ ही बने रहे। मनमोहन देसाई, देवानंद, सुभाष घई, प्रकाश मेहरा आदि तमाम
नामी गिरामी निर्माता-निर्देशकों की फिल्मों में मुकरी का स्थाई स्थान रहा। उसी तरह
उनके दिलों में भी। प्रकाश मेहरा ने अस्पताल में बैठ कर एक नयी फिल्म प्लान की जिसमें
मुकरी को शराबी के नत्थूलाल जैसी एक अहम भूमिका भी रखी। उन्होंने अमिताभ के डायलाग
‘मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी’ सुना कर खूब हंसाया मुकरी को।
मुकरी फिल्म
इडस्ट्री में दाखिल होने से पहले काज़ी थे। इसलिये वो बहुत धार्मिक, खुदा से डरने वाले
और वक्त के पाबंद इंसान थे। वो दो लड़कियां और तीन लड़कों के पिता थे। इनमें से सिर्फ
एक बेटी नसीम मुकरी ने ही फिल्मों में रुचि ली। अनेक पाकिस्तानी फिल्मों की स्क्रिप्ट
और संवाद लिखे। बालीवुड के लिये ‘हां मैंने भी प्यार किया’ और अक्षय कुमार-शिल्पा शेट्टी
की ‘धड़कन’ के संवाद लिखे। एक जबरदस्त हार्ट अटैक ने 04 सितंबर, 2000 को मुकरी की जीवनधारा
का प्रवाह रोक दिया। उस समय वह 78 साल के थे।
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वीर विनोद छाबड़ा
डी 2290 इंदिरा
नगर
लखनऊ-226016
दिनांक
04.09.2014
मुकरी एक मनः कलाकार थे अपने समय के ...नमन है उन्हें ...
ReplyDeleteTribute to Mukari ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी
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