-वीर विनोद छाबड़ा
आज आशा भोंसले जी का ८१वा जन्मदिन है।
आशा दी आज जिन बुलंदियों पर खड़ी हैं वहां तक पहंचने के लिए निसंदेह उन्होंने कड़ी मेहनत की है। अगर गुरु अच्छा
मिल जाये तो प्रतिभा में चार चंद लग जाते हैं। आशा दी ने जब गायन क्षेत्र में कदम रखा तो बहुत बड़ी चुनौती थी उनके सामने। बड़ी बहन लताजी की छोटी बहन होने का उनको कोई लाभ नहीं मिला। इसके अलावा शमशाद बेगम व् गीता दत्त का भी बोलबाला था। ख़राब औरत या खलनायिका पर फिल्माए जाने वाले गानों के लिए उन्हें मौका मिला। क्योंकि बड़ी गायिकाएं इंकार चुकी थीं। ज्यादातर बी और सी ग्रेड की फिल्मे उनके हिस्से आयीं।
उनके मुकददर में बदलाव तब आया जब ओ.पी.नैय्यर से उनकी मुलाकात हुई। सीआईडी के युगल गीत - ले के पहला पहला प्यार… में उनको रफ़ी और शमशाद बेगम के साथ कुछ पंक्तियां मिलीं। नैय्यर उनसे बेहद प्रभावित हुए। नैय्यर और लताजी में अनबन चल रही थी। शायद इस कारण से नैय्यर ने मानो ठान ली कि आशा को लता से बड़ा बना कर रहेंगे।
नैय्यर ने आशाकी आवाज़ और सुर को सुधारना और संवारना शुरू किया। उनकी इस नई प्रतिभा को उपयोग बीआर चोपड़ा की 'नया दौर' में किया। हालांकि उसमें कोई सोलो नहीं था। लेकिन रफ़ी के साथ युगल गीतों में उनकी जोड़ी जम गयी। साथी हाथ बढ़ाना…उड़े जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी…मांग के साथ तुम्हारा…ने तहलका मचा दिया। इसी के साथ आशा दिलों छा गई। इसके बाद रफ़ी के साथ नैय्यर ने उन्हें - मैं प्यार का राही हूं (में मुसाफिर एक हसीना).…इशारों इशारों में दिल लेने वाले…और दीवाना हुआ बादल (कश्मीर की कली)…आये हैं दूर से मिलने हुज़ूर से…सर पे टोपी लाल हाथ में रेशम का रुमाल…और देखो कसम से देखो कसम से…(तुमसा नहीं देखा) गवाया।
सोलो में -आइये मेहरबान (हावड़ा ब्रिज) …ये है रेशमी ज़ुल्फ़ों का अंधेरा…और जाइए आप कहां जायेंगे (मेरे सनम)…में नैय्यर ने आशा दी को बुलंदियों पर पहुंचाया।
बताया जाता है कि आशा के पारिवारिक जीवन में उन दिनों भारी उथल पुथल थी। ऐसे में नैय्यर ने उन्हें न सिर्फ इमोशनली मज़बूत किया बल्कि प्रोफेशनली भी मज़बूत किया। बाद में कतिपय कारणों से नैय्यर और आशा में १९७२ में अलगाव हो गया।
नैय्यर के साथ आशा ने आख़री दफ़े 'प्राण जाये पर वचन न जाये( रिलीज़ १९७३) के लिए ये गाना रेकॉर्ड किया था - चैन से हमको कभी जीने न दिया… मज़े की बात ये है कि आख़िरी लम्हे पर ये गाना फिल्म से हटा दिया गया। परंतु आशा को सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर अवार्ड इसी के लिए मिला।
ज्योतिष विद्या में यकीन करने वाले नैय्यर ने एक इंटरव्यू में बताया था - मुझे शुरू से मालूम था कि मैं और आशा हमेशा साथ नहीं रहेंगे। हमें अलग होना ही होगा। आशा से अच्छा कोई दूसरा मेरी ज़िंदगी में नहीं आया।
कुछ समय बाद आशा ने एक इंटरव्यू में कहा - मुझे जो कुछ मिला मेरी प्रतिभा के दम पर। 'नया दौर' में कैरियर के बूस्ट का कारण प्रोड्यूसर-डायरेक्टर बीआर चोपड़ा हैं न कि कोई और।
मुझे आशा दी का ओपी नैय्यर के संगीत निर्देशन में सैय्यद हुदा बिहारी का लिखा ये नग़मा बहुत पसंद हैं। इसे 'किस्मत' (१९६८) के लिए बबिता पर फिल्माया गया था। मैंने बबिता को इससे पहले और बाद में किसी गाने के फिल्मांकन में इतना इन्वॉल्व नहीं देखा।
हमसे रोशन हैं चांद और तारे
हमको दामन समझिए ग़ैरत का
उठ गए अगर ज़माने से
नाम मिट जायेगा मुहब्बत का
दिल है नाज़ुक कली से फूलों से
ये न टूटे ख्याल रखियेगा
और अगर आपसे टूट गया
जान-ए-जानां इतना ही समझियेगा
फिर कोई बांवरी मुहब्बत की
अपनी ज़ुल्फ़ें नहीं संवारेगी
आरती फिर किसी कन्हैया की
कोई राधा नहीं उतारेगी
आओ हुज़ूर तुमको बहारों में ले चलूं
दिल झूम जाये ऐसी बहारों में ले चलूं
हमराज़ हमख्याल तो हो, हमनज़र बनो
तय होगा ज़िंदगी का सफर, हमसफ़र बनो
चाहत के उजले उजले नज़ारों में ले चलूं
दिल झूम जाये ऐसी बहारों में चलूं…
लिख दो किताब-ए-दिल पे कोई ऐसी दास्तां
जिसकी मिसाल दे न सके सातों आसमां
बाहों में बाहें डाले हज़ारों में ले चलूं
दिल झूम जाये ऐसी बहारों में चलूं…
-vir vinod chhabra 08 09 2014 mob
7505663626
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