अर्श से फर्श पर उतारना - 'जानी' स्टाइल!
-वीर विनोद छाबड़ा
सन १९७८ का सूर्यास्त और १९७९ के सूर्योदय के मध्य का काल।
एक पांच सितारा होटल का दूर-दूर तक फैला लॉन। खासी भीड़ है। वहां ज़बरदस्त लेट नाईट फ़िल्मी पार्टी है। तमाम नामी फ़िल्मी सितारे और उससे जुडी तमाम हस्तियां मौजूद हैं।
राजकपूर साब की 'सत्यम शिवम सुंदरम' के कारण ज़ीनत अमान खासी चर्चा में है। उसे हर खासो आम घेरे हुए है। ज़ीनत बेबी को पता चलता है कि पार्टी में उनके हरदिल अज़ीज़ 'जानी' राजकुमार भी मौजूद हैं। मन मचल उठा।
भीड़ बहुत है। जहां चाह, वहां राह। ज़ीनत ने राजकुमार को तलाश कर ही लिया।
ज़ीनत बड़ी देर तक राजकुमार की शख्सियत, उनकी स्टाइल और एक्टिंग की तारीफ़ कर रही है।
राजकुमार बेहद खुश हैं। क्यों न हों? सामने एक हसीना है। और वो भी उनकी तारीफ़ करते नहीं अघाने वाली मशहूर ज़ीनत अमान। राजकुमार भी अपने बारे में ज्यादा से ज्यादा ब्यौरा ज़ीनत को देने में देर नहीं करते हैं।
रात काफी ढल चुकी है। राजकुमार साहब ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में मफलर गले में डाला और बोले - हमारा तो वक़्त हो चला है जानी। चलते हैं।
ज़ीनत का मन नहीं है उन्हें छोड़ने का। बोली - आपसे अभी ढेर बातें करनी हैं। दोबारा जल्दी मिलेंगे।
राजकुमार बेहद खुश हुए- ज़रूर। ज़रूर। बेबी, हम ज़रूर मिलेंगे।
टाटा, बॉय बॉय हुआ।
राजकुमार चलने को हुए कि अचानक पलटे। और ज़ीनत को बड़े ध्यान से ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोले - जानी, तुम हो तो खासी खूबसूरत। चेहरा-मोहरा और कद काठी भी ठीक है। आवाज़ और एक्सप्रेशन भी शानदार है। और नाम हां.…क्या बताया था?.…जो भी हो। तुम फिल्मों में काम क्यों नहीं करती?
ये सुन कर ज़ीनत पर क्या बीती होगी? आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
बहरहाल ज़ीनत बेबी की बाकी पार्टी तो बरबाद हो ही गयी। सबसे पहले तो उन्होंने दिल में सजी राजकुमार की तस्वीर पुरज़े पुरज़े की। फिर घर पहुंच कर गुस्से से ढेर फर्नीचर और क्रॉकरी पर गुस्सा उतारा। फिर ज़ार ज़ार रोई। कान पकड़ कर कसम खायी कि राजकुमार नाम के शख्स को आइंदा ख़्वाब में भी देखना गवारा नहीं करेगी।
अगले दिन चश्मदीदों ने ये किस्सा खूब चटखारे लेकर और बढ़ा-चढ़ा कर दूसरों को सुनाया।
मगर राजकुमार को करीब से जानने वालों को कतई हैरानी नहीं होती। किसी बंदे/बंदी को अर्श से फर्श पर उतारने का जानी का ये अपना खास अंदाज़ है।
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-वीर विनोद छाबड़ा ३०-०९-२०१४ मो. ७५०५६६३६२६
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