वीर विनोद छाबड़ा
उस दिन सुबह जब मुरादाबाद की सुमन सोकर उठी तो उसे नहीं मालूम था कि ये उसकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन साबित होगा।
मुरादाबाद शहर के एक एरिया की पिछले चार बरस से निर्माणाधीन सीवर लाइन के मेनहोल की पिट खुली रह गई है। इस कार्य को संपन्न करने वाली कंपनी की लापरवाही का नमूना था ये।
न जाने क्या हुआ कि सुमन बरास्ता खुले मेनहोल सीवर में गिर जाती है।
वो जान बचाने की गुहार लगाती है- बचाओ बचाओ।
कई लोग भाग कर आगे आते हैं।
मगर इस भीड़ में जांबाज़ सिर्फ दो ही निकलते हैं। नोमान और दानिश।
वो बरास्ता मेनहोल सीवर में कूद जाते हैं।
उन्हें नहीं मालूम वो एक बहुत खतरनाक काम अंजाम देने जा रहे हैं। इसमें जान भी जा सकती है।
और वही हुआ जिसका डर था।
नोमान और दानिश बचा न सके सुमन को।
और अफ़सोस वो इस जद्दोजहद में खुद अपनी भी जान गवां बैठे।
उन दो बाज़ों का जनाज़ा निकला तो मुरादाबाद की सडकों पर जनसैलाब उमड़ आया। सैकड़ों हिन्दू-मुस्लिम उसमे शरीक हुए। हिन्दू महिलाओं ने छतों से फूलों की बारिश की। विगत लंबे अरसे से सांप्रदायिक तनातनी के माहौल से गुजर रहे मुरादाबाद ने हिन्दू मुस्लिम के जज़्बाती एकता का ये हैरतअंगेज मंज़र एक मुद्दत बाद देख रहा है।
इस अफ़सोसनाक और हैरतअंगेज मंज़र को देख रही एक लड़की साक्षी मेहरोत्रा की आंखें नम हो आयीं - वे रियल लाइफ हीरो थे। सिर्फ साक्षी ही नहीं अंदर ही अंदर सारे समाज की आंखें नम थीं। उन जबाज़ों को अश्रपूर्ण आखों से नमन कर रही थीं।
जब कोई बचाओ बचाओ की गुहार लगाता है तो उस आवाज़ से ये नहीं पता चलता कि वो हिन्दू है या मुसलमान। और जो बचाने के लिए जान की बाज़ी लगाते हैं उन्हें भी नहीं मालूम होता कि वो किसी हिन्दू को बचाने का रहे हैं या मुसलमान को। उस वक्त जज़्बा सिर्फ इंसान को बचाने का होता है।
परवरदिगार के बनाये बंदे हैं हम। हिन्दू- मुस्लिम- सिख- इसाई बाद में।
ख़बर ये भी है कि यूपी सरकार ने इस इंसानी जज़्बे को सलाम किया है। जान गंवाने वाले हरेक को पांच पांच लाख रूपए और उनकी फैमिली के एक एक बंदे को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। बहुत बेहतर होता अगर सीवर लाइन बना रही कंपनी के विरुद्ध भी तगड़ी कार्यवाही का ऐलान होता।
लखनऊ के दिनांक २३ -९- २०१४ टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी ये खबर इसकी मिसाल है।
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-वीर विनोद छाबड़ा २३ - ०९ - २०१४ मो. ७५०५६६३६२६
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