-वीर विनोद छाबड़ा
कल मैंने अपनी पोस्ट में लिखा था कि भारत-पाकिस्तान का कोई भी मैच प्रेशर गेम है।
विराट कोहली का बल्ला और धोनी का धैर्य चाहिए। नतीजा कुछ भी हो। मेरा दिल भारत के लिए
धड़कता है। ये भी कहा था कि कमजोर दिल वाले इसे न देखें। और मैंने ये मैच नहीं देखा।
शाम पटाखों की आवाज़ सुनी तो समझ गए कि सैंया छटी बार भी कोतवाल हो गए।
विश्वकप में भारत की पाकिस्तान पर जीत विश्वकप जीतने से कम नहीं। और इस लिहाज़ से
हमने छटी बात विश्वकप जीत लिया। बाकी मैच मात्र महज रस्म अदायगी हैं।
आज की जीत को बहुत बड़ी जीत बताया जा रहा है। है भी। जीत के बाद कमियों की बात कौन
करता है?
पिछले विश्वकप (२०११) में भारत ने सेमी फाइनल में पाकिस्तान को हराया था। इसमें
सचिन तेंदुलकर ने ८५ रन बनाये थे। बेशक रन महत्वपूर्ण थे लेकिन कैसे मर-मर कर बने ये
स्वयं सचिन भी जानते हैं। इस पर पर्दा ही पड़ा रहा।
एडिलेड का मौजूदा मैच भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ। बिना गलती किये कोई भारतीय बल्लेबाज़ नहीं खेला। पाकिस्तान की कमजोर
फील्डिंग ने भी जिताने में मदद की। खैर ये सब क्रिकेट का हिस्सा हैं।
यों पाकिस्तान को हराने के मायने ही कुछ और हैं। क्रिकेट का मैदान न हो गया युद्ध
का मैदान हो गया। मज़ा आता है। बुझे पाकिस्तानी चेहरे देख कर हम बहुत खुश होते हैं।
लेकिन पाकिस्तानी भी इतने ही खुश होते हैं हमें हारा हुआ देख कर। क्या हम भूल पाये
१९८६ वाले शारजाह के उस मैच को जिसमें चेतन शर्मा की आखिरी फुलटॉस गेंद पर मियांदाद
ने छक्का मार कर मैच जीता दिया था।
आज ही एक मित्र मिले। मैंने कहा - मुबारक़ हो यार विश्वकप में पाकिस्तान पर भारत
की छटी जीत यानी छक्के की।
वो बोले - दर्जनों बार हम विश्वकप में पाकिस्तान को हरा दें। लेकिन यार मियांदाद
वाला छक्का आज भी कटोचता है।
मुझे लगता हैं मित्र ठीक कह रहे थे। जब तक वो पीढ़ी ज़िंदा है जिसने आखिरी गेंद पर
मियांदाद को छक्का मार कर पाकिस्तान को जीतते हुए देखा है ये कटोच नहीं ख़त्म होगी।
पाकिस्तान की बदकिस्मती है कि विश्वकप में वो हमें हरा नहीं पाये। आज के उन्मादी
माहौल में हम एक-दूसरे की ख़ुशी भी शायद बरदाश्त नहीं कर पाते हैं। दुःख में शामिल होते हैं तो दूसरे ही दिन कोई वारदात हो जाती है। हमारा दुख में
शामिल होना बेमानी बता दिया जाता है।
किसी को याद नहीं होगा कि हम एक दूसरे की ख़ुशी में शामिल हुए हों। लेकिन १९८३ में
जब भारत ने लॉर्ड्स में अजेय वेस्ट इंडीज को हरा कर जीत का परचम लहराया था तो अख़बारों
में ख़बरें छपीं थीं कि इमरान, ज़हीर और अब्दुल क़ादिर ने भारतीय टीम के ग्रीन रूम में भांगड़ा डांस किया था। क्या
ऐसा आज के मौहाल में संभव है? मैं तो आशावादी हूं।
बहरहाल अभी आगे कई दरिया हैं। वर्तमान टीम ने पाकिस्तान को जीतने नहीं दिया और
इस तरह इतिहास को छटी बार दोहराया। अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई।
लेकिन आगे एक और इतिहास है जिसे दोहराया न जाए, ये ज़िम्मेदारी भी इसी
टीम की है।
विश्वकप में साऊथ अफ्रीका और भारत का मुक़ाबला तीन बार हुआ है (१९९२, १९९९ और २०११) में।
और तीनो बार भारत हारा है। २०११ में हम जीतते-जीतते रह गए।
क्या है उम्मीद?
अभी छह दिन बाकी हैं। हार-जीत की संभावना की बात आगे करेंगे।
यों मेरा अपना ये ख्याल है कि कल जीते थे कि हारे। भूल जाओ। हर दिन एक नया सवेरा
है।
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-वीर विनोद छाबड़ा १६-०२-२०१५ Mob 7505663626
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