-वीर विनोद छाबड़ा
इस सदी के पहले दशक का प्रारंभ। भारत आधुनिकता की और तेज़ी से बढ़ रहा था। टीवी, फ्रिज, बाइक आदि कोई स्टेटस
सिंबल नहीं रह गए थे।
हमारे पड़ोस में एक सज्जन रहते थे,
विकास राय जी। पुरातनपंथी रीति-रिवाजों के घनघोर समर्थक। इसलिए
हम उन्हें विकट बाबू कहते थे।
आधुनिकता के तर्कों सहित मुखर विरोधी। टीवी/फ्रिज जैसे इंसान की मित्र वस्तुओं
की हमेशा दिल से बुराई करते। इसकी कमियों को गिनाते। मटके/सुराही के पानी को सर्वश्रेष्ठ
पेय और टीवी को समय की बर्बादी घोषित करते।
अलावा इसके अन्य विज्ञान के अविष्कारों मसलन पंखा, बत्ती, कूलर, वातानुकूलन, स्कूटर/बाइक, कार आदि संयंत्रों
को कम से कम दो घंटा लताड़ने के बाद मेरे घर से विदा लेते। इस बीच फ्रिज में ठंडी की
हुई दो-ढाई बोतल पानी की गटक जाते। चाय के तो दीवाने थे। दो प्याली, कम से कम। रिमोट से
तमाम टीवी चैनल्स को उलटते-पलटते समाचार के साथ सास-बहुओं वाले सीरियल देखते।
विकट बाबू के विचारों को सुनते हुए अक्सर मुझे हाई स्कूल और इंटर परीक्षा में लिखे
निबंध याद आते थे - विज्ञान के अविष्कार समाज, पर्यावरण और संस्कृति
विरोधी नहीं मित्र हैं।
जब कभी उनके घर मेहमान आते तो विकट बाबू उनको मेरे घर लाकर बैठा देते - यहां बैठ
कर आपको ठंडे पानी की निरंतर आपूर्ति ही नहीं टीवी सुविधा भी २४x७ उपलब्ध रहेगी।
यों भी गर्मी के दिनों में उनकी छोटी सी बेटी भरी दोपहर किवाड़ खटखटाती -आंटी एक
बोतल ठंडा पानी। अबोध बालिका। मना करने का सवाल ही नहीं। एक नही बेटा दो लेजा। ऐसा
सिर्फ मेरा ही नहीं अड़ोस-पड़ोस कई लोगों का एक्सपीरियंस था।
हमें विकट बाबू के विचारों और उनके घंटा-दो घंटा बैठने से कोई परेशानी नहीं थी।
बल्कि हमारी कर मुक्त मनोरंजन की तलब पूरी होती थे। दरअसल दिक्कत थी तो समाचार और सीरियल
के साथ चलती उनकी रनिंग कमेंट्री से। इस दौरान उनके होटों पर टेप लगा कर उन्हें चुप
कराना एक अति विकट समस्या थी।
बहरहाल ये उनका लगभग रोज़ाना का शगल था। कभी-कभी किसी कारणवश हमें बाहर जाना पड़ता।
गेट पर बड़ा सा ताला लटकता देख उनको बड़ा गुस्सा आता। दूसरे दिन इस पर लेक्चर देते कि
ज़माना ख़राब है। अड़ोस-पड़ोस को खबर करके निकला करो। इसके पीछे शायद आशय ये था कि बाहर
जाओ तो चाबी देकर जाया करो।
इस आधुनिकता विरोधी श्री विकट महाराज के बैंक खाते में लाखों थे। सरकारी नौकरी।
मोटा वेतन मिलता था। ये पक्का था कि मेज़ के नीचे डीलिंग से उनको सख्त नफरत थी। उनसे
मेरी निकटता का ये मज़बूत पक्ष था।
वो देहात से संबंधित थे। खेती-बाड़ी खूब अच्छी थी। ट्रैक्टर आदि सभी आधुनिक कृषि
सयंत्र थे उनके गांव स्थित फार्महाउस पर। खेती के बारे में अपनी विशाल जानकारी से वो
हमें हतप्रद कर देते। कभी-कभी हम उन्हें ट्रेक्टर वाला किसान भी कहते थे।
एक दिन उनका आना अचानक बंद हो गया।
मेरी ही नहीं सभी की पत्नी को जानकारी रहती है फलां कहां गया/गई और उनकी आमद कब
होगी। अतः पत्नी से पूछा - वो विकट महाराज इधर तीन-चार दिन से नहीं दिखे। गांव गए हैं
शायद?
पत्नी ने आश्चर्य से देखा मुझे - आपको मालूम नहीं? टीवी और फ्रिज जो आ
गया है। अब भला क्यों आएंगे?
एक व्रजपात सा हुआ। अरे वाह ये तो बहुत ही अच्छी खबर है। मैंने मन में ये सोचा
ही था कि तभी बिना खटखटाये अंदर घुस आने के आदी विकट बाबू दाखिल हुए।
विकट बाबू के हाथ में एक पीले रंग की मोटी पोलीथीन की छोटी सी थैली थी। उसमें चार
लड्डू थे - लो भाई छाबड़ा जी, मिठाई खाओ। हालांकि मिठाई खाने से दांत ख़राब होते हैं। पेट और लीवर भी। लेकिन रसम
है। निभानी तो पड़ेगी। पता तो चल गया होगा कि हमारे घर फ्रिज और टीवी आया है।
वो फिर बैठ गए। लेकिन जल्दी उठ भी गए। इस बीच उन्होंने टीवी और फ्रिज के अनेक फायदे
गिना डाले। इनकी जानकारी मुझे भी नहीं थी। जबकि पिछले लगभग बीस वर्षों से इनका उपभोग
कर रहा था।
विकट बाबू चलने लगे तो कौतूहलवश मैंने पूछा - महाराज ये परिवर्तन कैसे हुआ और ये
ज्ञान की प्राप्ति किस वृक्ष के नीचे बैठ कर हुई?
विकट बाबू बोले - अब आप से क्या छुपाना। चार दिन पहले की बात है। ऑफिस से जल्दी
आ गया। तबियत ख़राब थी। बुखार था और कुछ पेट भी ख़राब। दिल बैठा सा जा रहा था। मेमसाब
पड़ोस में टीवी देखने गयी थी। बार-बार प्यास लगती थी। बेटी आपके घर से ठंडा पानी ले
आई। ठंडा पानी पीते ही कलेजे पर ठंड पड़ गई। यार उस दिन आंख में आंसू आ गए जब छोटी सी
जां मेरी बेटी गर्म दोपहर में आपके घर पानी लेने गयी। बस अगले ही दिन टीवी और फ्रिज
आ गया। अपने सिद्धांतों पर अपनी पत्नी और बच्चों को क्यों बलि चढ़ाऊं?
यह कहते हुए विकट बाबू की आंखों में आंसू आ गए - यार किसी वस्तु की उपयोगिता उसके
होने पर पता चलती है। मैंने अपना नजरिया बदल दिया है। अब कल बाइक भी आ जाएगी। तुम सबको
लिफ्ट के लिए और परेशान नहीं करूंगा।
और हफ्ते भर बाद विकट बाबू के घर से डबल मिठाई आई। बाइक के साथ-साथ बढ़िया सी कार
भी ले आये हैं। पिछले दिनों उन्होंने अपने मकान में बड़ा सा हाल बनाया है। कहते हैं
- समाज
सेवा का मन करता है। यहां छोटे मोटे बर्थडे और किट्टी पार्टियां हुआ करेंगी।
सलाम विकट बाबू। नहीं नहीं, विकास राय जी।
-वीर विनोद छाबड़ा 04-02-2015 mob 7505663626
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