Friday, October 3, 2014

ईमानदार अफसर की हूट से बिदाई।

-वीर विनोद छाबड़ा

बात १९९६-९७ की है। यूपी में बहन मायावतीजी का शासन था।

स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के हेडक्वार्टर शक्ति भवन पर रातों रात पंजाब से लाकर एक नया चेयरमैन तैनात किया गया - जी.एस.सोहल।

साधारण शक्ल-सूरत और कद-बुत का सरदार। बात-चीत में भी बड़ा सॉफ़्टी। 

पूरे बोर्ड में हड़कंप मच गया। बाहर से क्यों लाया गया कोई बंदा? बड़ा विरोध हुआ।

मगर इन सब से बाख़बर वो बंदा अपना काम करता रहा। वो काम करने वाले बंदे थे। तुरंत फुरंत एक्शन वाले। बेहद सफाई पसंद और अनुशासित। डे टू डे वर्किंग में यकीन करना। कागज़ पर घोषणाओं वाले नहीं। कुछ ही दिनों में सोहल साब की दहशत और धमक यों पूरे प्रदेश में महसूस की जाने लगीमगर हेडक्वार्टर पर तैनात अधिकारियों/कर्मचारियों ने सबसे ज्यादा झेला।

किसी भी वक़्त वो किसी सेक्शन में पहुंच चुपचाप कोने में बैठ जाते। नज़ारा करते कि कैसे और किस रफ़्तार से काम हो रहा है। चूंकि वो बाहर से आये थे सो उन्हें लोग पहचानते नही थे। जब उन पर नज़र पड़ती और उनका परिचय ज्ञात होता तब तक देर हो चुकी होती थी। सब कुछ सोहल साब के दिलो दिमाग में क़ैद हो चुका होता था।

मज़े की बात तो ये थी कि सोहल साब कोई एक्शन नहीं लेते थे। सिर्फ पूछते थे कि ये चिट्ठी कब रिसीव हुई और इसके डिस्पोजल का सिस्टम क्या है? इसमें  कितना वक्त और चाहिए? ये टाइपराइटर पर, फाइलों पर और कुर्सी पर धूल की परतें कबसे चढ़ी हैं? घर में भी इसी ढंग से रहते हैं? ये इतने सारे कागज़ रैक्स  में ठूंसे नज़र क्यों आ रहे हैं? वो किसी भी वक़्त कैंटीन पहुंच जाते थे। खड़े होकर चाय पीते। कर्मचारियों से गप-शप करते। जब उनको कोई पहचान लेता तो सबकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती।

अधिकारियों को सुझाव देते कि आपकी टेबुल खिड़की के पास होगी और पर्दे हटे होंगे तो भरपूर नेचुरल रौशनी मिलेगी। इससे बिजली की बचत होगी।

और कुछ ही दिनों में हमारे बोर्ड ऑफिस का काया कल्प हो गया। ठीक दस बजे १००% मौजूदगी। कैंटीन में सन्नाटा। कुर्सी-मेज़, अलमारियां, खिड़कियों के शीशे, फर्श आदि सब टनाटन।

फाइलों का डिस्पोजल जल्दी होने लगा। ऑफिस आवर्स में दफ्तर में गज़ब का सन्नाटा। यकीन करें की सोहल साब ने इस बावत कोई आदेश नहीं दिया म स्पीच दी। मातहत अधिकारी और कर्मचारी स्वतः स्फूर्त और दुरुस्त हो गए। सफाई और मौजूदगी के मुताल्लिक जो भी आदेश हुए वो नीचे के अधिकारीयों ने अपने स्तर से मातहत कर्मचारियों पर चड्डी गांठने के लिए किये।

एक बात और याद आती है। दर्जनों ट्रक लोड रद्दी निकली, जिसमें सैकड़ों शराब की खाली बोतलें, सैकड़ों चूहों के कंकाल, टूटे कांच आदि भी शामिल थे। सोहल साब का जलवा ज्यादा दी  नहीं चला। कुछ ही महीने बाद बहन जी ने उन्हें नामालूम कारणों से हटा दिया। लोगों का कहना था कि वो ईमानदार ही नहीं कड़क भी थे। ऊपर वालों के निर्देश भी नहीं मानते थे। इसलिए सोहल साब को बिदा होना ही था।

नए चेयरमैन आये। सोहल साब को हूट किया गया। सुना था उनके ब्रीफ केस की तलाशी भी हुई थी। उसमें स्वामी विविकानंद की एक तस्वीर भर निकली जिसे सोहाल साब अपने साथ लाये थे। वो भारी क़दमों से लिफ्ट की ओर चल पड़े।

तमाम अधिकारीयों और कर्मचारियों ने राहत की सांस ली और दूसरे ही दिन बिजली बोर्ड अपनी चिर-परिचित सुस्त चाल और बेढंगे ढर्रे पर लौट आया।


-वीर विनोद छाबड़ा  03-10-2014 mob 7505663626

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