-वीर विनोद छाबड़ा
वो एक करिश्मा है। निर्देशक की नायिका है। उसे मालूम है कि कब और
कैसे परफार्म करना है और किस गहराई और ऊंचाई के स्तर तक। बात जब स्टाईल, सेक्सी और
आकर्षक दिखने और अपनी मौजूदगी की अहसास कराने की होती है तो सिर्फ और सिर्फ उसी का
ही नाम याद आता है। उसने खुद की पुनः खोज की है। शून्य से शिखर तक की यात्रा उसने अकेले
और अपने बूते की है। पुरुष बन कर पुरुषों वाले काम पुरुष से
भी बेहतर ढंग से किये हैं।
उनकी तुलना हालीवुड की लीजेंड ग्रेटा गोर्बा से होती है। अगर हालीवुड की मर्लिन मुनरो
शार्टहेंड में सेक्स हैं तो बालीवुड में वो शार्टहेंड में चमत्कार है। उसके नाम के
बाद महान की सूची बंद हो जाती है। इस तरह की जब कहीं वार्ता हो रही हो तो यकीन जानिए
यह सिर्फ और सिर्फ रेखा की बात हो रही होती है, जिन्होंने गुज़री 10 अक्टूबर को 60 साल
पूरे किये हैं।
ये फिल्मी दुनिया भी विचित्र शै है। किस्मत मेहरबान हो तो बंदा पल
भर में कहां से कहां पहुंच जाए। लेकिन रेखा को महज किस्मत ने फर्श से अर्श तक नहीं
पहुंचाया। इसमें उनकी अपनी भी मेहनत शामिल है। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि मोहन सहगल
की ‘सावन भादों’(1970) की वो पच्चासी झटके वाली थुलथुली सी भोंदू रेखा, जिसको नाक तक
पोंछने की तमीज नहीं है, एक दिन किवदंती बन जायेगी। इसकी वजह सिर्फ यह है कि रेखा बचपन
से अब तक की जिंदगी में बेशुमार पतझड़ों से गुज़री और अग्नि परीक्षाओं की भट्टी में पकी
है जिसे उसने आत्मसात करके मंथन किया है। इससे आगे अब शायद कुछ बचा भी नहीं है।
रेखा दक्षिण भारत के मशहूर अभिनेता जैमिनी गणेश और अभिनेत्री पुष्पावली
की पुत्री है। उनकी मां और पिता चूंकि विधिवत शादीशुदा नहीं थे अतः उसके जन्म पर पिता
ने उसे अपना मानने से इंकार कर दिया और जब वो लोकप्रियता की ऊंचाईयों पर पहुंची तो
पिता ने ‘वापसी’ की कोशिश की। लेकिन रेखा ने इंकार कर दिया। शायद इसी ये प्रभावित होकर
‘जीवनधारा’ (1983) बनी थी। इस फिल्म में बेहतरीन परफारमेंस के लिये उसे फिल्मफेयर पुरुस्कार
के लिये भी नामांकित किया गया।
परिवार को आर्थिक संकट के उबारने के लिये रेखा को बचपन से ही फिल्मों
में काम करने के लिये मजबूर होना पड़ा था जबकि वो सखियों संग खेलने-कूदने और पढ़ने के
दिन थे। सुनहरे सपने और एक खूबसूरत भविष्य का ताना-बाना बुनने के दिन थे। उसकी पहली
हिंदी फिल्म ‘सावन भादों’ में उसे दक्षिण से आया सेक्स और ग्लैमर का बम करार दिया गया।
रामपुर का लक्ष्मण, गोरा और काला, कहानी किस्मत की, धर्म-कर्म, आक्रमण आदि अनेक फिल्में
इस तथ्य की गवाह हैं।
दुलाल गुहा की ‘दो अंजाने’ (1976) में अमिताभ बच्चन की लालची पत्नी
की जोरदार भूमिका में रेखा ने पहली बार झलक दिखायी कि एक बेहतरीन अदाकारा के उसमें
तमाम गुण हैं। सन 1978 में रिलीज़ ‘मुकद्दर का सिंकंदर’ और ‘घर’ ने इस तथ्य को अग्रतर
पुख्ता किया। इसके बाद रेखा ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। एक से बढ़ कर एक ईनामी भूमिकाओं
में वो दिखने लगीं। ऋषिकेश मुकर्जी की ‘खूबसूरत’ (1980) ने उसे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
का फिल्मफेयर एवार्ड दिलाया। अगला एवार्ड राकेश रोशन की ‘खून भरी मांग’ (1988) के लिये
मिला। यह उस वक्त मिला जब माना जा रहा था कि रेखा का जादू अब उतार पर है। उसका सर्वश्रेष्ठ
गुज़र चुका है। फिल्म फेयर का अगला अवार्ड (सहायक अभिनेत्री) उसे 1996 में ‘कालिलों का कातिल’ में इंटरनेशनल
नूराकुश्ती का गैंग चला रही खुंखार लेडी की नकारात्मक भूमिका के लिये मिला।
मुज़फ्फर अली जब ‘उमराव जान’ (1981) की तवायफ़ की तलाश कर रहे थे तो
उन्हें ‘मुकद्दर का सिकंदर’ और ‘सुहाग’ की तवायफों की भूमिका में रेखा देखने का सुझाव
दिया गया। और उनकी तलाश पूरी हो गयी। रेखा उमराव की जान बन गयीं। इसके लिये सर्वश्रेष्ठ
नायिका का राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला। एक इतिहासकार का कथन था कि गो उसने इतिहास में
दर्ज उमराव जान को देखा तो नहीं है लेकिन रेखा को देख कर दावे से कह सकता हूं कि उमराव
जान ऐसी ही रही होगी।
परदे की दुनिया से बाहर रेखा लव अफेयर्स के लिये कई बरस तक खासी
चर्चा में रही। सबसे पहले वो विनोद मेहरा से जोड़ी गयी। फिर किरन कुमार, जीतेंद्र और
आखिर में अमिताभ बच्चन से उसके करीबी रिश्तों को लेकर गासिप की दुनिया चटखारे लेती
रही। हालांकि रेखा इन सबसे इंकार करती रही। बताते हैं कि जया बच्चन से मिली फटकार के
बाद रेखा मान गयी कि वो किसी का घर उजाड़ कर और किसी पत्नी का दिल तोड़ कर कदापि घर नहीं
बसायेगी। मगर फिल्म इंडस्ट्री की टाप दस प्रेम किस्सों में से एक इस विवादित और चर्चित
अफ़साने का दि एंड भी खासा चर्चित रहा। यशचोपड़ा ने ‘सिलसिला’ में रेखा-अमिताभ-जया के
प्रेम त्रिकोण को एक खूबसूरत मोड़ देकर दफ़न कर दिया। रेखा ने 1990 में दिल्ली के व्यवसायी
मुकेश अग्रवाल से शादी करके सारी अफवाहों पर पूर्ण विराम लगा दिया। मगर कोई साल भर
बाद मुकेश ने व्यापार में घाटे के कारण आत्महत्या कर ली। रेखा फिर तन्हा हो गयी।
रेखा ने अमिताभ बच्चन के साथ कुल नौ फिल्में कीं। उन दोनों की जोड़ी
बाक्स आफिस पर तत्काल सफलता की गारंटी माना जाता था। जीतेंद्र के साथ रेखा ने रिकार्ड
छब्बीस फिल्में कीं। रेखा को उनके परदे पर शानदार योगदान के लिये अनेक संस्थाओं ने
लाईफटाईम एवार्डों से नवाज़ा। भारत सरकार ने 2010 में उन्हें पद्यश्री से और 2013 में
राज्यसभा की सदस्य के लिये नामांकित किया।
रेखा की कुछ अन्य हिट फिल्में हैं-डबल क्रास, धर्मा, नमक हराम, प्राण
जाये पर वचन न जाये, जानी दुश्मन, ईमान धरम, गंगा की सौगंध, खून-पसीना, नटवरलाल, कालीघटा(डबल
रोल), प्रेम बंधन, कर्तव्य, कलयुग, एक ही भूल, विजेता, अगर तुम न होते, उत्सव, मुझे
इंसाफ चाहिए, बाज़ी, फासले, जाल, इजाज़त, बीवी हो तो ऐसी, भ्रष्टाचार, मेरी पति सिर्फ
मेरा है, फूल बने अंगारे, आस्था, कामसूत्र, किला, बुलंदी, लज्जा, कोई मिल गया, क्रिश,
यात्रा, सदियां आदि।
रेखा ने लगभग 150 फिल्में की हैं। लेकिन ये यात्रा अभी खत्म नहीं
हुई है। उम्र बढी है लेकिन उमंगे अभी जवां हैं। वो कतई थकी नहीं है। वो फिटनेस की भी
एक चर्चित मिसाल हैं। आज की पीढ़ी पूछती है वो क्या खाती है? क्या पीती हैं? कौन सा
योगासन करती है? किस मोहल्ले में है वो जिम जिसमें वो जाती है। रेखा की अब तक की चार
दशक की फिल्मी यात्रा की अगली फिल्में हैं- सुपरनानी, फितूर आदि। मुझे नहीं लगता कि
रेखा का सर्वश्रेष्ठ हम देख चुके हैं। ऐसा इसलिये कि ‘मदर इंडिया’ में नरगिस और ‘साहब
बीवी और गुलाम’ में मीना कुमारी जैसे कालजई किरदार तो उसमें अभी देखने बाकी हैं।
रेखा का जन्म 10 अक्टूबर 1954 को हुआ था।
शुभकामनायें!
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-वीर विनोद छाबड़ा 13.10.2014 मो. 7505663626
"भारत सरकार ने 2010 में उन्हें पद्यश्री से और 2013 में राज्यसभा की सदस्य के लिये नामांकित किया।" बंधुवर मैंने 'रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना' 19 अप्रैल को व्यक्त की थी और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने उनको 26 अप्रैल 2012 को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html
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