ओ चाल भाई चाल!
-वीर विनोद छाबड़ा
कल आदरणीय श्री दिनेशराय द्विवेदी जी का कान में जनेऊ पहन मल-मूत्र त्याग करने संबंधी एक मज़ेदार संस्मरण पढ़ा। मुझे भी ऐसी ही एक घटना याद आ गयी।
१९५७-५८ की घटना है ये। चाचाजी की ससुराल दिल्ली के किंग्सवे कैंप (गुरु तेग बहादुर नगर) में थी। मेरा ददिहाल कुतब रोड पर था।
एक दिन मैं चाचाजी के साथ उनकी ससुराल गया। सात-आठ साल की उम्र रही होगी मेरी। रात ज्यादा हो गयी। सो वहीं रुकना पड़ा।
उन दिनों शौचालय पंचायती थे, जिन्हें शायद बम-पुलिस भी बोला जाता था। सुबह-सुबह चाचाजी पकड़ कर ले गए। एक लाइन से दस शौचालय थे। हर शौचालय के बाहर दस-पंद्रह लोगों की लाइन थी। सबके हाथ में पानी से भरा टीन का डिब्बा।
जब भी कोई शौचालय के भीतर जाता तो हर आधे मिनट के बाद बाहर खड़ा अगला बंदा दरवाज़ा पीट-पीट कर चिल्लाता - ओ, चाल भाई, चाल।
ऐसा वो तब तक हर आधे मिनट बाद दोहराता, जब तक कि भीतर गया आदमी बाहर नहीं आ जाता। इसके बाद 'चाल भाई चाल' कहने वाला बंदा भीतर जाता और 'चाल भाई चाल' की ड्यूटी बाहर खड़ा वो बंदा संभाल लेता जिसका नंबर लगा होता था।
सबसे बड़ी दिक्कत तो आखरी बंदे की होती। तब उसे किसी से गुजारिश करनी होती थी कि बाहर खड़े होकर हर आधे मिनट पर 'चाल भाई चाल' करता रहे। मुझे याद है ये देख कर मुझे तो 'उतरी' ही नहीं। बस दूर खड़े होकर तमाशा देख खुश होता रहा, जब तक कि चाचाजी बाहर नहीं आ गए।
लखनऊ लौट कर कई मित्रों को मैंने ये घटना सुनाई। हम खूब हंसे। कई दिन तक तो इस घटना को याद करके मैं अकेले ही हंसता रहा।
फिर कई बरस गुज़र गए। मैं उस घटना को भूल गया। ज़माना कहीं से कही पहुंच गया। बम-पुलिस ख़त्म हो गए। चाचाजी में मॉडल टाउन में कोठी खड़ी कर ली।
उस घटना के करीब पंद्रह साल बाद चाचाजी हमारे घर आये। सुबह वो टॉयलेट गए। करीब दस मिनट बाद निकले। थोड़े परेशान दिखे। करीब आधे घंटे बाद वो फिर टॉयलेट गए। दस मिनट बाद निकले। इस बार भी परेशान दिखे। मैंने पूछा- चाचाजी पेट तो ठीक है न ?
बोले - सब ठीक है। बस कभी-कभी होता है। दो-दफ़े जाना पड़ता है।
लेकिन जब थोड़ी देर बाद जब उन्होंने फिर टॉयलेट का रुख किया तो मुझसे नहीं रहा गया - चाचाजी ज़रूर कोई बात है। आप छुपा रहे हैं। आप वापस आइये। फिर डॉक्टर के पास चलते हैं।
वो बोले - नहीं बेटा। ऐसी कोई बात नहीं है। अगर मदद ही करनी है तो एक काम करो। मेरे टॉयलेट जाने के हर आधे मिनट के बाद दरवाज़ा पीट कर जोर से बोलना - ओ, चाल भाई, चाल। ये सिलसिला बस दो तीन मिनट तक जारी रखना।
उनके ये कहते ही मैं ज़ोर से हंसा। मुझे वो कैंप वाली बम-पुलिस वाली घटना याद आ गयी, जिसे मैंने बचपन में देखा था।
चाचाजी ने बताया कि दिल्ली में 'चाल भाई चाल' की ये ड्यूटी उनका बेटा करता है। चाचाजी चार दिन रहे। और मैं चार दिन तक 'चाल भाई, चाल' की ड्यूटी करता रहा।
अब चाचाजी ८४ साल के हैं। बेटा बहुत बिजी रहता है। एक सहायक रखा हुआ है, जो अन्य कामों के अलावा 'चाल भाई, चाल' भी कराता है। जब कभी मैं दिल्ली जाता हूं तो ये ड्यूटी मैं करता हूं। बड़ा सुख मिलता है।
चचरे भाई से जब भी फ़ोन पर बात होती है तो हम 'हैलो' नहीं बोलते। 'चाल भाई, चाल' बोलते हैं।
-वीर विनोद छाबड़ा मो.७५०५६६३६२६
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