-वीर विनोद छाबड़ा
सन १९७१. जून का महीना खत्म होने को है। बी०ए०फाईनल के रिजल्ट का शिद्दत से इंतज़ार।
लखनऊ यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार आफ़िस में नोटिस बोर्ड पर रोज़ाना देर शाम को किसी न
किसी विभाग का रिजल्ट चिपका मिलता। उस दिन बी०ए०फाईनल का रिजल्ट चिपकाया गया। मगर दिलजलों
ने फाड़ दिया। कागज़ के चंद टुकड़े ही मिले। इन्हें समेटा। लाख कोशिशें की जोड़ने की। मगर
कुछ हासिल नहीं हुआ।
मन मसोस कर घर पहुंचा। मेहनत के दृष्टिगत पास होना यकीनी था। मगर डिवीज़न? श्योर नही थी। इसलिये
एडवांस में जानने की उत्कंठा थी। रात भर नींद नहीं आएगी। करवट पे करवट बदलूंगा। दिल
की धड़कनें तेज रहेंगी। छत पर और सड़क पर प्यासी आत्मा समान भटकता फिरूंगा। इससे बचने
का एक ही विकल्प था। नेशनल हेराल्ड के अख़बार के दफ़तर चला जाए। वहां प्रेस में एक पहचान
का था। साईकिल उठायी और हेराल्ड प्रेस पहुंचा। पहचान वाले से संपर्क साधा। मैटर कम्पोजिंग
में था। जैसे-तैसे वो खबर लाया - बधाई हो, सेकेंड डिवीज़न।
हेराल्ड प्रेस कै़सरबाग़ में था। नवजीवन और क़ौमीआवाज़ भी वहीं से छपते थे।थोड़ी दूर
पर क़ैसरबाग़ बस अड्डा। सूबे के तमाम ज़िलों से मुसाफ़िर वहां पहुंचते थे। उनका भी बहुत
सा बोझ उठाता था क़ैसरबाग़ चौराहा। अलावा इसके शहर का सबसे बड़ा दवाखाना खालसा मेडिकल स्टोर भी वहीं पर था जो देर रात
तक खुला रहता। जहां हर किस्म की दवा मिलती थी। आस-पास कई सिनेमाहाल भी थे। नाईट शो
खत्म होने पर इसी चौराहे से होकर ज्यादातर लोग घरों को लौटते। लिहाज़ा रिक्शा-टांगे
वालों का जमावड़ा भी हर वक़्त जमा दिखता। चाय, पान-सिगरेट की दुकानें आबाद रहती। लिहाज़ा क़ैसरबाग़ चौराहा रातभर
आबाद रहता था।
उस दिन रात बारह बजे का वक़्त रहा होगा। जब मैं हेराल्ड प्रेस से बाहर निकला। सेकेंड
डिवीज़न में पास होने की खुशी में चाय-सिगरेट तो बनती ही थी। सिगरेट पीने का असली मज़ा
चाय के बाद मिलता था। आमतौर पर यों खुलेआम मैं सिगरेट नहीं पीटा था। लेकिन इतनी रात
गये यहां कौन देखता होगा? यह सोच कर मैंने बेहिचक होंटों में सिगरेट दबा कर सुलगायी।
साईकिल क़ैसरबाग़ से चारबाग की तरफ़ बामुश्किल पचास मीटर ही चली होगी कि पीछे से मुझे
किसी ने पुकारा।
ये आवाज़ तो मेरी रग-रग में समायी है। हे भगवान! ये पिताजी इस वक़्त यहां कहां? इन्हें तो बनारस की ट्रेन में होना था! कहीं ये भ्रम तो नहीं?
मैंने पीछे मुड़कर देखा। पिताजी ही थे। पल भर के लिए सांस गले में अटक गयी। कलेजा
गले तक आ गया। कई सवाल बड़ी तेजी से ज़हन में उभरे। ये पिताजी बनारस जाने वाली ट्रेन
की बजाये यहां क्यों हैं इस वक़्त? मेरे होटों में लगी सिगरेट देखी तो नहीं? अचानक मेरा हाथ होंटों की तरफ बढ़ा। सिगरेट तो वहां थी ही नहीं।
घबराहट में कब होटों से छूट गिर पड़ी,
पता ही नहीं चला था।
इधर चालीस वाट बल्ब की स्ट्रीट लाईट की मद्धिम रोशनी में भी पिताजी मेरे चेहरे
पर आयी घबराहट को साफ़-साफ़ पढ़ गये। बोले - तुम्हारी मां की तबीयत अचानक खराब हो गयी।
बनारस जाने का प्रोग्राम भी इसी कारण कैंसिल करना पड़ा। डाक्टर ने दवा लिखी थी। आस-पास
के सारे केमिस्ट बंद हो गए थे। यहां खालसा
में लेने आया था.… फिर अचानक उन्हें याद आया - और हां,
सेकंड डिवीज़न आई न?
मैंने सर हिला दिया। सेकंड आने की खुशी तो पीछे से पिताजी की आवाज़ सुनते ही हवा
हो चुकी थी। रही-सही कसर मां की बीमारी की ख़बर ने उड़ा दी। मैं चूंकि पिछले तीन घटों
से घर से गायब था, इसलिये मुझे पता ही नहीं चला था कि मां की तबीयत अचानक इतनी खराब हुई कि डाक्टर
को बुलाना पड़ा। ये तो अच्छा हुआ कि पिताजी बनारस जाने के लिए घर से नहीं निकले थे।
सचमुच मुझे बड़ा क्षोभ हो रहा था। गुस्सा आ रहा था खुद पर। क्या ज़रूरत थी और क्या
जल्दी थी रिज़ल्ट पता करने की? सुबह अखबार में तो छप ही जाना था।
बहरहाल घर पहुंचे। जल्दी से मां को दवा दी गयी। आधे घंटे में ही मां की तबियत में
सुधार दिखने लगा। जान में जान आई।
लेकिन अब ये डर सताने लगा कि पिताजी ने सिगरेट पीते तो नहीं देख लिया? मैं उनसे आंख मिलाने
से कतरा रहा था।
कनखियों से देखने से पता चल रहा कि पिताजी बिलकुल नार्मल हैं।
लेकिन मेरे दिल का चोर पक्की तरह से जानता था कि मैं पकड़ा जा चुका हूं। एक अरसे
तक मैं इस ग्लानि में जीता रहा।
मुद्दत गुज़र गई। मेरी शादी हो गयी। दो बच्चों का पिता भी बन गया।
एक दिन अपने दोस्तों संग गप-शप वाली महफ़िल में पिताजी धुआं उड़ाते हुए बता रहे थे
कि उन्होंने अपने बेटे को पहली बार सिगरेट पीते कब देखा था?
और जिस दिन का उन्होंने ज़िक्र किया वो वही दिन था जब मैं रात देर में बीए का रिजल्ट
देख घर लौट रहा था और पीछे पिता जी मां दवा लेकर आ रहे थे।
उनके दोस्त ने पूछा - डांटा नहीं?
उन्होंने कहा - मैंने अपने बेटे को तो बीए पास करने के बाद सिगरेट पीते देखा था
जबकि मेरे पिता जी ने मुझे तब सिगरेट पीते देखा था जब मैंने दसवीं पास की थी। किस मुंह
से डांटता?
मैंने अपनी पीठ थपथपाई। पिता जी ने दसवीं के बाद पी थी और मैंने ग्यारहवीं के बाद।
अलबत्ता पकड़ा गया बीए पास के बाद।
(नोट - सिगरेट पीना सेहत के लिए खतरनाक है।)
-वीर विनोद छाबड़ा, 27-01-2015
D -2290, Indira Nagar,
Lucknow – 226016 (UP), India
Mob 7605663626
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